डॉ. रमेश ठाकुर
खैनी, तंबाकू या गुटखा खाने से सेहत को कितना नुकसान पहुंचता है? ये जानने के बावजूद भी लोग तंबाकू खाते हैं और विभिन्न किस्म की बीमारियों को न्योता देते हैं। मुंह का वैंâसर तंबाकू से पैâलता है। इस कड़वी सच्चाई से आज के नौजवान अच्छे से वाकिफ हैं। दिल्ली स्थित ‘एम्स’ अस्पताल की हालिया रिपोर्ट बताती है कि पिछले दो सालों में उन्होंने मुंह के वैंâसर के सबसे ज्यादा केस रिपोर्ट किए, जिनमें युवाओं की उम्र महज १८ से २५ वर्ष के बीच रही। निश्चित रूप से ये आंकड़े रोंगटे खड़े करते हैं। स्कूल-कॉलेज के बच्चों में तंबाकू खाने की बढ़ती लत ने अभिभावकों को खासा परेशान किया हुआ है। मादक पदार्थों की स्कूलों में ब्रिकी की खबरें अब आम हो गई हैं। देश तंबाकू पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाते? इस थ्योरी को समझने की जरूरत है। दरअसल, ये ऐसा कमाई का क्षेत्र है जिस पर सरकार जानबूझकर हाथ नहीं डालती? आबकारी विभाग प्रत्येक सरकारों का कमाऊ विभाग माना जाता है। यहां से दूसरे जगहों से कहीं ज्यादा रेवेन्यू प्राप्त होता है। तंबाकू पर जब छोटा-सा मुल्क ‘भूटान’ कमर कस सकता है तो अन्य देश क्यों नहीं? भूटान विश्व का पहला देश है, जहां तंबाकू की न खेती की इजाजत है और न ही तंबाकू के इस्तेमाल की। वहां तंबाकू की हर विधा पर पूर्ण प्रतिबंध है। सन् २००४ में भूटान तंबाकू की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने और सभी निजी स्थानों पर धूम्रपान पर बैन करने को लेकर अव्वल दर्जा प्राप्त कर चुका है। भूटान जून २०१० में तंबाकू पर रोक लगाकर दुनिया के सबसे सख्त तंबाकू विरोधी कानूनों में से एक को लागू कर चुका है इसलिए वहां तंबाकू से मौतें नहीं होतीं और बीमारियों का लेवल जीरो है। दुनिया के ८० लाख लोग हर साल तंबाकू खाने से मरते हैं, वहीं भारतीय चिकित्सा रिपोर्ट के मुताबिक, तंबाकू से ४ लाख से अधिक लोगों की मौत भारत में होती हैं, जो विश्व के अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक हैं। भारत में तंबाकू की अधिक खपत का एक कारण ये भी है, क्योंकि भारत को तंबाकू के क्षेत्र में दूसरे सबसे बड़े उपभोक्ता और उत्पादक की उपाधि हासिल है। खुलेआम तंबाकू की खेती होती, ब्रिकी भी धड़ल्ले से? तंबाकू का उपयोग वैंâसर, फेफड़ों की बीमारी, हृदय रोग और स्ट्रोक सहित कई पुरानी बीमारियों के लिए एक प्रमुख कारक है। खैनी भारत में मृत्यु और बीमारी के प्रमुख कारणों में से एक है। हुकूमत के स्तर पर तंबाकू इस्तेमाल से होनेवाली तमाम बीमारियों पर रोकथाम की दिशा में वैश्विक ध्यान आकर्षित भी करवाता जाता है, लेकिन नाकाफी है। इस समस्या से सरकारों और समाज दोनों को सामूहिक लड़ाई लड़नी होगी। तंबाकू से बीमारियों के बढ़ते केसों को देखते हुए बच्चों और किशोरों में तंबाकू के सेवन की शुरुआत को कम करने के लिए तंबाकू और निकोटीन उत्पाद की कीमतें बढ़ाई जानी चाहिए। केंद्र सरकार को तंबाकू उत्पाद की बिक्री की आयु २१ वर्ष लागू करनी चाहिए। सभी तंबाकू और निकोटीन उत्पादों में मेन्थॉल सहित सभी स्वाद सामग्री को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, क्योंकि बिना सरकारी सख्ती से बात नहीं बननेवाली? यार्क यूनिवर्सिटी की रिसर्च की मानें तो धुआंरहित तंबाकू के प्रयोग से होनेवाली बीमारियों के सबसे ज्यादा रोगी भारत में बढ़ रहे हैं।