मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : अथ श्री बुच दंपति कथा!

कॉलम ३ : अथ श्री बुच दंपति कथा!

दीपक शर्मा
माधवी बुच जैसी मनीषी को सेबी का करोबार सौंपना जिनका कभी इस संस्था से कोई लेना देना नहीं था, को अपने आप में अनोखा पैâसला कहा जा सकता है। प्राइवेट सेक्टर से इस पद को सुशोभित करने वाली वह पहली चेयरमैन हैं। सरकार के लिए माधवी बुच इतनी महत्वपूर्ण थी कि उनको सीधे बाहर से लाकर पहले सेबी सदस्य और बाद में चेयरमैन बना दिया गया। दूसरी तरफ उनके पति धवल बुच को, जिन्हें प्रॉपर्टी बिजनेस और न ही फाइनेंस का कोई ज्ञान था को माधवी बुच के सेबी सदस्य बनने से पहले ब्लैकस्टोन ने अपना एडवाइजर बना लिया। (ब्लैकस्टोन दुनिया की सबसे बड़ी आरईआईटी निवेशक और प्रायोजक कंपनियों में से है।) इस दौरान उन्होंने देश में आरईआईटी से संबंधित कई नियामक बदलाव किए। माना जा रहा है कि जिनका सीधा फायदा ब्लैकस्टोन जैसे समूहों को हुआ।
इसी दौरान सेबी ने ब्लैकस्टोन की दो कंपनी माइंडस्पेस और नेक्सस सेलेक्ट ट्रस्ट को आईपीओ की मंजूरी भी दी। सात महीने पहले दिसंबर २०२३ में ब्लैकस्टोन ने एक और आरईआईटी कंपनी एंबेसी आरईआईटी में अपना सारा हिस्सा करीब ७१० करोड़ में बेच दिया। जिस ग्रुप को सेबी के निर्देशों से फायदा हो रहा था, उसी ग्रुप ने सेबी की चेयरमैन के पति को अपना एडवाइजर बना रखा था, इस आरोप के जवाब में माधवी बुच का कहना है कि उनके पति अपनी विशेषज्ञता के चलते एडवाइजर बने थे, उनके सेबी में आने से पहले बन गए थे और उन्होंने ब्लैकस्टोन से संबंधित मामलों से खुद को अलग किया हुआ था। आईआईएफएल नामक एक भारतीय कंपनी ने बरमुडा में एक फंड बनाया जीओएफ। इस जीओएफ ने एक उप-फंड बनाया जीडीओएफ। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी ने जीडीओएफ में पैसा लगाया। जीडीओएफ ने इसे मॉरीशस के एक छोटे, गुमनाम फंड आईपीई प्लस फंड में लगाया। फिर इस पैसे को आईपीई ने भारत के शेयर बाजार में लगाया। आरोप है कि मार्वेâट में इससे बनावटी तेजी आई। आरोप है कि माधवी बुच का भी इस जीडीओएफ और आईपीई में पैसा लगा हुआ था। हालांकि, माधवी का कहना है कि अनिल आहूजा, (जो आईपीई फंड का फाउंडर-चीफ थे) उसके पति के बचपन के दोस्त हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अनिल आहूजा पहले अडानी पावर और अडानी एंटरप्राइजेज दोनों में डायरेक्टर थे। हालांकि, सेबी चेयरमैन माधवी बुच को इस बात की जानकारी नहीं थी। डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक माधवी बुच के सेबी सदस्य बनने से पहले माधवी ने अपने पति को जीडीओएफ का कंट्रोल ट्रांसफ़र कर दिया था। इसके एक साल बाद उनके पति ने सारा पैसा निकाल लिया। एक आरोप ये भी है कि उनका सिंगापुर में एक और फंड है अगोरा पार्टनर जो १०० प्रतिशत उनका है। सेबी चेयरमैन बनने के बाद इसके सारे शेयर उन्होंने अपने पति को ट्रांसफर कर दिए। इसमें कुछ गलत नहीं है पर लोग पूछ रहे हैं कि भारत में दुनियाभर के म्यूचुअल फंड हैं, रोज आप पब्लिक को सलाह देते हैं कि ‘म्यूचुअल फंड सही है’ पर अपना ख़ुद का पैसा सेबी चेयरमैन मॉरीशस, बरमूडा, सिंगापुर की संदिग्ध कंपनियों में लगाती हैं। इस बजट में सरकार ने इस ३६ महीने की अवधि को कम करके १२ महीने कर दिया। अब जांच इस बात की होनी चाहिए कि भारत की आरईआईटी कंपनियों में किस-किस का पैसा लगा है और किसको इस एलटीसीजी पीरियड १२ महीने करने वाले ऑर्डर से फायदा होगा। हालांकि, जैसा विदित था कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पिछली बार की तरह मनगढ़ंत गलत और प्रेरित करार दे दिया जाएगा, हुआ वैसा ही। इस कथा के सभी किरदारों ने और सभी संस्थाओं ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को गलत करार दिया। इति कथा

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