एम एम सिंह
पिछले सप्ताह, २५ जून की सुबह श्रीलंकाई नौसेना ने जाफना के पास कांकेसंतुरई के पास श्रीलंकाई जलक्षेत्र में ‘भारतीय अवैध शिकार करने वाले ट्रॉलरों के एक समूह को खदेड़ने’ के लिए एक अभियान चलाया था। इस अभियान में एक ट्रॉलर-पोत जब्त कर लिया गया और १० मछुआरों को पकड़ लिया गया, जिनमें से आठ तमिलनाडु और बाकी आंध्र प्रदेश से थे। भारतीय (तमिलनाडु) मछुआरों के मरने के भी कई मामले सामने आए हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने जहाज और लोगों को छुड़ाने के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हस्तक्षेप की मांग की। गुरुवार को मुख्यमंत्री को भेजे अपने जवाब में जयशंकर ने कहा कि भारतीय उच्चायोग न्यायिक हिरासत में बंद ३४ मछुआरों और सजा काट रहे छह अन्य मछुआरों की शीघ्र रिहाई की मांग कर रहा है।
आश्चर्य की बात है कि विदेश मंत्री इस मौके को दोनों देशों के लिए बातचीत की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने के एक अवसर के तौर पर नहीं देख रहे हैं, जो विशेष रूप से मत्स्य पालन विवाद से निपटने के लिए, अपनी समुद्री सीमा रेखाओं के सीमांकन के लिए द्विपक्षीय समझौतों के मद्देनजर गंभीर हो गया था।
स्टालिन ने जयशंकर को संयुक्त कार्य समूह की बैठक बुलाने की याद दिलाकर अच्छा किया है, जो आखिरी बार, तकरीबन दो साल पहले आयोजित की गई थी। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करने वाले भारतीय मछुआरों के सीमा लांघने के मामले पर पक्षपाती हुए बिना उनके आजीविका के अवसरों की सुरक्षा से संबंधित कारकों को समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के महत्व से अलग नहीं किया जा सकता है। तमिलनाडु के मछुआरों द्वारा उपयोग किए जा रहे बॉटम ट्रॉलर को धीरे-धीरे बदलना जरूरी है। लेकिन मछुआरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने, समुद्री पिंजरे में खेती, समुद्री शैवाल की खेती और प्रसंस्करण और समुद्री पशुपालन के विविधीकरण के लिए तैयारी करने के लिए समय की आवश्यकता होती है, उन्हें एक वक्त लगेगा। केंद्र द्वारा क्रियान्वित की जा रही गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की परियोजना के अनुभव के चलते साफ तौर पर माना जा सकता है कि यह केंद्र सरकार की विफलता है। कार्यान्वयन के लगभग सात वर्षों के बाद, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले केवल ६१ जहाजों को लाभार्थियों को सौंपा गया है, जबकि १९ और निर्माणाधीन हैं। क्या नई दिल्ली और कोलंबो उत्तरी प्रांत के मछुआरों को नहीं चाहिए कि वे और भी अधिक मदद करने के लिए अतिरिक्त योजनाएं तैयार करें।
हमेशा की तरह केंद्र सरकार इस मामले में भी गंभीर नहीं दिख रही है। जो मछुआरे पहले से वैâद में हैं और जो अभी-अभी पकड़े गए हैं उनको वापस लाने के लिए यह जरूरी है कि मामले की नजाकत को समझते हुए त्वरित निर्णय और कार्रवाई की जाए। साथ ही मछुआरों की तकलीफों को समझने की कोशिश की जाए कि आखिर क्यों वे उस इलाके में मछली पकड़ने जाते हैं, जहां पर उन्हें जान का खतरा होता है? यानी यह उनकी मजबूरी है! केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को मिलकर उनकी इस मजबूरी को दूर करना होगा। फिलवक्त उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है मछुआरों की रिहाई।
(लेखक पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)