मुख्यपृष्ठस्तंभजीवदया ही जीवन : मेरी व्यथा-कथा

जीवदया ही जीवन : मेरी व्यथा-कथा

नरेंद्र गुप्ता
मेरे पास आधार कार्ड नहीं है। मेरे पास राशन कार्ड भी नहीं है। पिछड़ों या गरीबी की रेखा के नीचे वालों की किसी सरकारी सूची में भी मैं नहीं हूं। मुझे कोई मुफ्त अनाज भी नहीं देता। पैदा होता हूं, तो जन्म का प्रमाण पत्र नहीं और मरने पर दाह संस्कार नहीं होता। लेकिन यह बता दूं कि मैं कोई घुसपैठिया नहीं हूं। मैं भी आपकी तरह भारत की धरती पर ही पैदा हुआ हूं। मैं ही नहीं, मेरी सैक़ड़ों पुश्तें भी यहीं पैदा हुई हैं। लेकिन मेरे पास भारत की नागरिकता नहीं है।
सुना है कि सरकार की ऐसी अनेक योजनाएं हैं, जिनमें भूखों को खाना मिलता है। मुफ्त पानी मिलता है। और तो और रहने को मकान भी दिए जा रहे हैं। लोगों को चिकित्सा की मुफ्त सुविधाएं भी दी जा रही हैं। लेकिन इन सुविधाओं में मैं कहीं नहीं हूं। मेरे पास न पीने का पानी है, न खाने का सामान। सर्दी, गर्मी या बरसात किसी गली के नुक्कड़ पर, सड़क के कोने में या किसी खाली पड़े मैदान में पड़े हुए जैसे-तैसे अपनी जिंदगी काट रहा हूं। मैंने कितने दिन से कुछ नहीं खाया, किसको परवाह है? चिलचिलाती धूप में दो बूंद पानी के लिए यहां से वहां भटकता हूं। कभी-कभी कोई मानवता की मूरत मिल जाती है, जो दाना-पानी यानी खाने को कुछ दे जाती है। उसी से थोड़ी बहुत भूख-प्यास मिट जाती है। बहुत कम सही, लेकिन ईश्वर-दूत की तरह ऐसे कुछ लोग हैं, जो हमारी व्यथा समझते हैं।
जब कोई रहने का ठिकाना नहीं, तो कहां जाऊं। चिलचिलाती धूप में यदि किसी मकान या दुकान के आगे छपरे की छाया में बैठ जाऊं, तो कोई भी आकर हड़काता है। सर्दी में किसी कोने में दुबक जाऊं, तो वहां भी कोई आकर, भगाता है। जब होती है तेज बारिश, चारों तरफ पानी भर जाता है, तब किसी मकान-दुकान के आगे बैठ जाऊं, तो मोटा सा डंडा मुझ पर पड़ ही जाता है। मैं चिल्लाता हूं, बिलबिलाता हूं पर किसी को मुझ पर तरस नहीं आता है। अब आप पूछेंगे कि तुम जब से अपनी व्यथा-कथा सुना रहे हो आखिर तुम हो कौन? तो सुनो, आप ही की तरह मुझे भी भगवान ने धरती पर भेजा है। आप ही की तरह मेरा भी जन्म हुआ है। मैं आप के ही साथ और आप ही के बीच तो रहता हूं। आपके सामने ही तो सारी पीड़ा सहता हूं, लेकिन मेरी पीड़ा पर आपका ध्यान नहीं जाता है। फर्क केवल इतना है कि मेरे पास न आधार कार्ड है और न मतदान का अधिकार। शायद इसीलिए मुझे जीने का अधिकार नहीं है। अगर मेरे पास आपकी तरह आधार होता, मतदान का अधिकार होता तो छुटभैये नेताओं से लेकर बड़े-बड़े नेता हमारे पास आते। वोटों के लिए हमारी सभा बुलाते। हमारी पीड़ा सुनते, कुछ झूठे, कुछ सच्चे वादे कर जाते। हमारे लिए भी कुछ कल्याणकारी योजनाएं बनाते। लेकिन हमारे पास मताधिकार नहीं है, इसलिए हमारा कोई अधिकार नहीं है। मैं कौन हूं? चलो बता ही देता हूं। मैं आपकी गली में भूख से म्याऊं-म्याऊं करती बिल्ली हूं, भूख-प्यास से तड़पता गली का कुत्ता और अपने पिल्लों को पालती भूखी कुतिया हूं, व कांव-कांव करता मैं एक प्यासा कौआ हूं। तुम्हारी पार्टी के लिए अपनी मौत का इंतजार करता बकरा हूं। तुम जिसे मां कहते हो, जिसका दूध दुहते हो, मैं कचरे में मुंह मारती एक भूखी गाय हूं। मेरे कितने नाम हैं, कहां-कहां तक गिनवाऊं। मेरी तकलीफों की सूची इतनी लंबी है, क्या-क्या तुम्हें बताऊं। मेरा अपना कोई खेत नहीं है। अपने बागान नहीं हैं। मेरा कोई घर नहीं है। मेरे लिए अब तो तालाब भी नहीं हैं। तुम तो अपने घरों में एयर कंडीशनर में चले जाते हो, पर मुझे तो धूप झुलसाती है। जब आती है कड़कती सर्दी, तो छिपने को जगह नहीं मिल पाती है।
जरा सोचो, यह धरती जितनी तुम्हारी है, उतनी मेरी भी तो है। तुम जो खुद को इंसान कहते हो, अपने को सबसे महान कहते हो। थोड़ा तो हमारा भी ख्याल करो। तेज धूप और बारिश में हमें अपने आंगन के किसी कोने में, मकान, दुकान के छज्जे के नीचे बैठने का स्थान तो दो। थोड़ी देर में उठ जाएंगे, आपका क्या ले जाएंगे? कभी हमारी आंखों में झांक कर तो देखो, हमारी बेबसी को जान कर तो देखो। और कुछ न सही, हमारी प्यास बुझाने के लिए अपने आंगन या खिड़की में, कहीं थोड़ा पानी ही भर कर रख दो। ताजा खाना, घास-चारा और दाना वगैरह न दे सको‌ तो, हमारे खाने लायक कुछ बचा-खुचा ही दे दो। कभी चोट लगे तो उस पर मरहम ही लगा दो। हम तो मूक जीव हैं, कुछ कह नहीं सकते, आपके पास तो वाणी है, सरकार तक हमारी आवाज तो पहुंचा दो। हो सके तो हमें मतदान का अधिकार दिला दो। ईश्वर की लीला को किसने जाना है, अगले जन्म में ईश्वर को किसे क्या बनाना है, किसने जाना है? ईश्वर का तो यह पैगाम, जैसे कर्म करोगे वैसा फल देगा भगवान। जो हम जैसे बेबस जीवों पर दया करेगा, वह अगले जन्म में उसका फल पाएगा।
आपके आसपास रहने वाला इस धरती का एक मूक प्राणी।

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