मुख्यपृष्ठस्तंभजीवदया ही जीवन : प्रभु की भक्ति ही जीवदया है!

जीवदया ही जीवन : प्रभु की भक्ति ही जीवदया है!

नरेंद्र गुप्ता
जीवदया एक मानवीय गुण है और सभी धर्मों में इसका महत्व है। जीवों पर दया करना, प्रभु की निस्वार्थ भक्ति के समान है। जीवदया ही सर्वोच्च धर्म है और यही धर्मात्मा की पहचान है। जीवों पर दया करना, सच्चा मानव धर्म है। जीवदया करने से आत्मिक शांति मिलती है। जीवों पर दया करने से दूसरों की रक्षा होती है और उन्हें मारने से बचाया जाता है। जीवों पर दया करने से तीनों लोकों की रक्षा होती है। जीवों पर दया करने से प्रभु की भक्ति होती है। जीवों पर दया करने से धर्म की जड़ मजबूत होती है। जीवों पर दया करने से मानव को इस संसार के हर जीव पर दया करनी चाहिए। जीवों पर दया करने से दूसरों के प्रति कोमलता पैदा होती है। सनातन संस्कृति में जो भी अवतार या संत हुए हैं, उन सभी ने संसार के आगे हमेशा यही आदर्श रखा है कि केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि प्राणिमात्र में परमात्मा का निवास है। सभी प्राणी उस परमात्मरूपी धागे में पिरोए हुए मोतियों के समान हैं, किसीका भी स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए पर्यावरण की दृष्टि से हर प्राणी कुछ न कुछ योगदान देता ही है, जैसे बिल्ली चूहों को मारकर चूहों की वृद्धि संतुलित करती है। गाय के गोबर और मूत्र से पर्यावरण शुद्ध होता है और तो और कोई भी प्राकृतिक आपदा आनेवाली होती है तो पहले पशु-पक्षियों को उसका संकेत मिल जाता है और उनके द्वारा मनुष्यों को भी संकेत मिल जाता है। तो क्या मनुष्य का यह कर्तव्य नहीं बनता कि वो भी इन मूक प्राणियों की कुछ सेवा करे? ये मूक और निर्दोष प्राणी अपनी आवश्यकता हमें शब्दों में नहीं बता सकते हैं। अत: जिस तरह हम अपनी भूख-प्यास को मिटाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं, उसी प्रकार उनके लिए उपयुक्त भोजन तथा पानी की व्यवस्था करके उनका पोषण और रक्षण करना हम सभी का कर्तव्य बनता है। क्योंकि जिस क्षेत्र में पशु-पक्षियों की भूख-प्यास से मौत हो जाती है या जहां बड़े पैमाने पर उनका वध होता है, वह पूरा क्षेत्र अभिशप्त हो जाता है। वहां प्राकृतिक आपदाएं, अकाल मृत्यु और भय की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं।

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