मुख्यपृष्ठनमस्ते सामना4 फरवरी के अंक नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

4 फरवरी के अंक नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

सफल बनो
सफल बनो सम्मान मिलेगा
कर्मों में भगवान मिलेगा
फूल खिले हैं अब माली को
खुशबू का वरदान मिलेगा
अच्छे कर्मों का फल अच्छा
दिल अंदर इंसान मिलेगा
खुद को जब पहचानोगे तो
आत्मतुष्ट ध्यान मिलेगा
शिक्षा का अंबर पाओगे
लौ का रौशनदान मिलेगा
उद्धम शक्ति संघर्ष धैर्य
हर कार्य परवान मिलेगा
हरियाली में खुशहाली है
हर पौधा धनवान मिलेगा
कर्म बने भक्ति का मार्ग
कृष्ण का फरमान मिलेगा
पतझड़ में जो घबरा जाए
माली वो नादान मिलेगा
मंजिल का रस्ता बतलाना
राही जो अंजान मिलेगा
हर्ष के हार पिरोकर रखना
गम का कब मेहमान मिलेगा
मगर घरौंदा मंजिल होगी
पंखों में अभिमान मिलेगा
रिश्वत के घर घर में अक्सर
बंदा बेईमान मिलेगा
ढलती आयु में है बालम
दिल का मगर जवान मिलेगा
– बलविंदर बालम,
गुरदासपुर, पंजाब

चेहरा
भीड़ का चेहरा नहीं होता
भीड़ में चेहरा होता है
यह दिखाई नहीं देता
संचालित करता है
उन्मादी भीड़ को
कई बार यह चेहरा
मिटा देता है अस्तित्व
कई बेकसूर चेहरों का
कर देता है बेजान
उन चेहरों से जुड़े जिस्म को
यह चेहरा भी
संचालित होता है कई चेहरों से
ये चेहरे उजाले में होते हुए
बिना मुखौटे के भी अक्सर
दिखाई नहीं देते
इन चेहरों पर
भावना के रंग चढ़ते उतरते नहीं
कोई हादसा होने पर
ये चेहरे संवेदनहीन होते हैं
बनाते हैं उन्मादी भीड़ में चेहरा
– सुधीर केवलिया,
बीकानेर (राज.)

गम होता है
कुछ न कुछ सबको होता है
लेकिन सबको गम होता है
हमको दूर करें अपनों से
स्वार्थ बड़ा भीषण होता है
दिल में दर्द दबा रखता है
चेहरे पर सावन होता है
गिने-चुने में गिनती होती
सच पर जो कायम होता है
सच पर कितना पर्दा डालों
सच तो आखिर सच होता है
चारों ओर शतरंज बिछी है
खतरा तो हरदम होता है
अमन-चैन की बातें करता
बारूदी विषधर होता है
हमसे दूर करें अपनों को
क्यों ऐसा मौसम होता है
कलश कंगूरे ढह जाएंगे
जनमत में वह बल होता है
अलख कलम से जगा उमेश
जीवन तो सूरज होता है
– डॉ. उमेश चंद्र शुक्ल

चिट्ठी
चिट्ठी जब-जब आती है
अलग सूचना लाती है
चिट्ठी में सुख-दु:ख की बातें
प्यार भरी इसमें सौगातें
जहाज, रेल, बस, नाव से
मीलों तय कर आती है
चिट्ठी जब-जब आती है
आता डाकिया घर के द्वार
भरकर लिफाफे में प्यार
छोटे से कागज में लिपटी
नए-नए संदेश सुनाती है
चिट्ठी जब-जब आती है
चिट्ठी एक सुंदर उपहार
जोड़े सबके दिल के तार
करके दुनिया भर की सैर
बिना पैर चली आती है
चिट्ठी जब-जब आती है
चिट्ठी में फरमाइश है
रिश्तों की आजमाइश है
हाल-चाल की बात पूछती
प्रेमभाव सिखलाती है
चिट्ठी जब-जब आती है
-डॉ. सत्यवान सौरभ

डराने की मत सोच
हमें तू मौत के किस्सों से डराने की मत सोच
हमको आदत जीत की हमें हराने की मत सोच
बहुत मजबूती से हमने जमा रक्खे हैं पांव सुन
हमें रावण की तरह तू भी डिगाने की मत सोच
दुश्मन चाहे जो तू बीमारी आपदा या भूख
मिटा तुझको हम देंगे हमें मिटाने की मत सोच
किसी भी मसले को हम होने देते नहीं बेहद
हद लांघ जाएगा तू हमें बताने की मत सोच
कितने आए गए हमसे हार यहां से एक दिन
लगा सकेगा हमें कभी तू ठिकाने की मत सोच
– डॉ. एम.डी. सिंह

राम राम
अब यह देश चलाओ राम
राम-राज्य अब लाओ राम
अपने प्यारे महा देश में
भाईचारा लाओ राम
कर दो वातावरण सुरक्षित
और प्रेम बरसाओ राम
फूट गई है किस्मत अपनी
बिगड़ी आज बनाओ राम
कहां गलत है कहां सही है
सही-सही समझाओ राम
अंधेरे को दूर हटाकर
नई रोशनी लाओ राम
अफरातफरी मची हुई है
कोई राह दिखाओ राम
नेत्रहीनता दूर करो प्रभु
अब तो धनुष उठाओ राम
चारों तरफ अमन का झंडा
अब जल्दी फहराओ राम
बोल रही है आज अयोध्या
शांति कहीं से लाओ राम
सबके दिल में बसने वाले
अब तो अलख जगाओ राम
राम-राम कहनेवालों को
उसका अर्थ बताओ राम
डूब रहे हैं लोग भंवर में
नैया पार लगाओ राम
वैâसे होगा प्रेम परस्पर
अब यह मंत्र जगाओ राम
ईश्वर हो तुम परम पिता हो
सारा कष्ट मिटाओ राम
परमेश्वर हो जगतनियंता
रघुनंदन रघुनायक राम
अनुकंपा बरसाने वाले
अब मत समय गंवाओ राम
लोकतंत्र में मंगल लाकर
खुशहाली दौड़ाओ राम
– अन्वेषी

बोर्ड
निकला था मैं एक सफर में
जंगल-जंगल झाड़ों में
कुदरत का अद्भुत करिश्मा
पेड़ों और पहाड़ों में
ऊंचे नील गगन में देखा
चिड़ियां थीं चहचहा रहीं
प्रकृति की अद्वितीय गाथा
नदियों की कल-कल गा रहीं
सहसा ही मैं ठहर गया
सामने ही था बोर्ड टंगा
हिंसक पशुओं से खतरा है
आगे जाना है मना
आगे जाना है मना
मन ही मन ये विचार किया
सोचा फिर अंतर्मन में
इस सत्यता को स्वीकार किया
होता काश अपने जग में
चहुं तरफा ही ये होड़ हो
हैवानियत हो बसती जहां
वहशीपन का वहां बोर्ड हो
बचती कहीं तब लाज कली की
बचता किसी का आंगन
कदम न उठते उन गलियों को
लुटता जहां कोई दामन
टांग देता एक बोर्ड वहां
इंसानियत जहां पर मरती
देख-देख आंसू जहां
पत्थर दिल भी न पिघलता
एक बोर्ड होता वहां
जहां खुशियों की बरसात हो
जरूरतमंदों के लिए
जहां दिन न कोई रात हो
होती सिर्फ जग में खुशियां
खुशियों को भी खुशहाली होती
‘विशाल’ ऐसे बोर्ड से
रात न कोई फिर काली होती
– विशाल चौरसिया, आजमगढ़, उ.प्र.

थोड़ा मुस्कुराते हैं
चलो थोड़ा मुस्कुराते हैं
इस दवा को आजमाते हैं
कठिनाई में खिलखिलाते हैं
मुसीबत में भी मुस्कुराते हैं
जिसकी आदत है मुस्कुराना
वो ही जमाने को झुकाते हैं
मायूसी विषाद की जड़ होती है
उदासी को मुस्कुराहट से मिटाते हैं
मुस्कुराना औषधि है बेहतरीन
चलो दवा को भी आजमाते हैं
खरीदी न बेची जाती मुस्कुराहट
अनमोल है ये चलो मुस्कुराते हैं
बेहतरी के नाम मुस्कुराते हैं
सुनहरे कल के लिए मुस्कुराते हैं
– संजीव ठाकुर,
रायपुर, छत्तीसगढ़

वृक्ष बचाओ
विश्व बचाओ
वृक्ष है जब तक ही समझो
चलती यहां सांस हमारी है,
एक-एक वृक्ष का संरक्षण
हम सबकी जिम्मेदारी है!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि

 

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