आंखें साफ कर लें अगर
सब कुछ साफ दिख जाएगा
पर मुझे नहीं करना सच का सामना,
मेरी आंखें बंद हैं, उन्हें बंद ही रहने दो।
पोछो मत इन्हें, इन्हे नम ही रहने दो।
क्या करना अपनों के चेहरों से पर्दा हटाकर?
छोड़ो, उन्हें पर्दे में रहने दो।
नहीं देखना इनका असली चेहरा,
वो मेरे अपने हैं, मुझे इसी भ्रम में रहने दो!
क्यों करना किसी को शर्मसार?
उनको खुद पे फक्र ही रहने दो!
सच तो सच सदा रहेगा
झूठ का क्यों ही जिक्र करना
झूठ को अपनी कब्र में ही रहने दो।
झुके न वो कभी किसी के आगे
सर ऊंचा हो हमेशा उनका
ऊंचा ही रहने दो।
क्या खता है झुकने में नैंसी?
मुझे शर्म से झुका हुआ रहने दो।
ये आंखें अपनी बंद ही भली
वो अपने हैं, मुझे इसी भ्रम में रहने दो।
-नैंसी कौर, नई दिल्ली