नौशाबा परवीन
बीती १३ जुलाई २०२४ को पेंसिल्वेनिया की एक चुनावी सभा में हाई-पॉवर राइफल से चलाई गई गोली, रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के कान को बींधती हुई निकल गई। इस खौफनाक हमले में पूर्व राष्ट्रपति की जान तो बच गई, लेकिन प्रतीकात्मक तौर पर इस गोली ने अमेरिकी लोकतंत्र की नाक काट दी, जो पहले से ही गन कल्चर के भयावह घावों के दर्द से कराह रहा है। अब संसार यह देखने व सुनने की प्रतीक्षा में है कि इस घटना का आगामी राष्ट्रपति चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा और गन कंट्रोल के जटिल मुद्दे का कोई जादुई समाधान निकलेगा या नहीं? साल २०१७ के सर्वे के अनुसार अमेरिका में प्रति १०० व्यक्ति में १२० से अधिक गन हैं। यानी यहां जनसंख्या से अधिक बंदूकें हैं। यह अनुपात संसार में अधिकतम है। भारत में प्रति १०० व्यक्ति मात्र ५.३ बंदूकें हैं इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि अमेरिका में हर साल हजारों निर्दोष व्यक्ति इस गन कल्चर की भेंट चढ़ जाते हैं। ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी जुनून की हद तक गन कल्चर की समर्थक है, जिससे इस बात का भी अंदाजा हो जाता है कि अमेरिका में गन लॉबी राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करने में सक्षम है।
चूंकि अमेरिका में गन हिंसा निरंतर बढ़ती जा रही है इसलिए गन तक पहुंच को सीमित करने के प्रयास भी हुए, लेकिन उनका जबरदस्त विरोध हुआ और स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। दूसरा संशोधन हथियार रखने के नागरिकों के अधिकार को सुरक्षित रखता है। यही वजह है कि अमेरिका में ४० प्रतिशत से अधिक घरों में आपको बंदूकें मिल जाएंगी। गन पंजीकरण में निरंतर वृद्धि हो रही है कि २०१० में ८.३ लाख पंजीकरण हुए थे, जो २०२३ में बढ़कर ३५.७ लाख हो गए। यह हाल तब है जब अधिकांश अमेरिकी गन संबंधी सख्त कानूनों के पक्ष में हैं। ५८ प्रतिशत अमेरिकी चाहते हैं कि सख्त गन कानूनों की जरूरत है, २६ प्रतिशत वर्तमान नियमों में परिवर्तन नहीं चाहते हैं और १५ प्रतिशत गन कानूनों को अधिक उदार बनाने के समर्थक हैं। गन लॉबी के दबदबे के कारण बहुमत की उचित बात भी सुनी नहीं जा रही है। नतीजतन, गन हिंसा में हर साल हजारों लोग अपनी जान गवां बैठते हैं। २०१० में गन हिंसा में ३,४१३ व्यक्ति मारे गए थे, जबकि २०२३ में मृतकों की संख्या ४,५६३ पहुंच गई।
जिस पेंसिल्वेनिया राज्य में ट्रंप पर कातिलाना हमला हुआ, उसी में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कसम खाई थी कि राष्ट्रपति बनने के पहले दिन ही वह बाइडेन प्रशासन द्वारा गन अधिकारों पर लगाई गई सभी पाबंदियों को हटा देंगे। ट्रंप ने कहा था, ‘गन मालिकों व निर्माताओं पर बाइडेन के प्रत्येक हमले को मैं ऑफिस में अपने पहले सप्ताह या शायद पहले ही दिन निरस्त कर दूंगा।’ मौत से १/८ इंच से बचने के बाद ट्रंप के गन नजरिए में कोई परिवर्तन आया है या नहीं, अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन अनुमान यही है कि कोई बदलाव नहीं आयेगा; क्योंकि गन निर्माता उनके चुनाव को फंड करते हैं और पार्टी के तौर पर रिपब्लिकन गन कल्चर के समर्थक हैं। पिछले साल की ‘पिउ रिसर्च सेंटर’ की रिपोर्ट के अनुसार, ७९ प्रतिशत रिपब्लिकन और रिपब्लिकन-झुकाव वाले स्वतंत्र मतदाताओं ने कहा कि हथियार रखने से व्यक्तिगत सुरक्षा में इजाफा होता है। दूसरी ओर ७८ प्रतिशत डेमोक्रेट्स गन कल्चर पर विराम लगाने के इच्छुक हैं, उनके अनुसार इससे असुरक्षा बढ़ती है कि कहीं भी कोई भी अंधाधुंध गोलियां चलाकर दर्जनों लोगों को हलाक कर देता है।
इसलिए बाइडेन ने ट्रंप पर कातिलाना हमले के बाद अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि ‘हम राजनीतिक मतभेदों का हल बुलेट से नहीं बैलट से करते हैं।’ इस पृष्ठभूमि में यह अंदाजा लगाना गलत न होगा कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव में गन कल्चर बड़ा मुद्दा होगा। यह बात हैरत में डालती है कि अमेरिका के ४६ राष्ट्रपतियों में से चार- लिंकन, गारफील्ड, मैकइनले व कैनेडी ऑफिस में रहते हुए कत्ल किए गए और रीगन, फोर्ड, ट्रुमैन, रूजवेल्ट आदि आधा दर्जन से अधिक पूर्व व पदासीन राष्ट्रपतियों पर कातिलाना हमले हुए, जैसे कातिल की गोली के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति चुंबक हों, लेकिन अभी तक गन कल्चर पर विराम लगाने के लिए कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। इस संदर्भ में राष्ट्रपति प्रत्याशी चुनावी वायदा अवश्य करते हैं, लेकिन पद ग्रहण करते ही चुनावी वायदा मात्र जुमला बनकर रह जाता है।
बहरहाल, ट्रंप पर हमले से समीक्षकों के इस डर की पुष्टि हो गई है कि बेतुकी राजनीतिक लफ्फाजी अमेरिकी लोकतंत्र को गड्ढे में ले जाएगी। निरंतर जनता में गुस्सा भरना, अकारण ही समाज का धुव्रीकरण करना और दो कमजोर राजनीतिक दलों के कारण राजनीतिक हिंसा के लिए जगह बना दी गई है। अमेरिकी समाज में बढ़ती बेचैनी की एक मिसाल यह है कि २०२२ में स्पीकर नैंसी पेलोसी के पति पर हथौड़े से हमला किया गया, जब साजिश थ्योरी का समर्थन करने वालों ने ‘उनके घुटने तोड़ने’ का आह्वान किया था। संसार वर्षों से अमेरिकी राजनीति व समाज में आक्रामकता देख रहा है इसलिए इस किस्म के ट्वीट्स का कोई अर्थ नहीं है कि ‘राजनीतिक हिंसा गैर-अमेरिकी है।’ हालांकि, सभी पार्टियों के नेता उग्र लफ्फाजी पर लगाम लगाने की वकालत कर रहे हैं। लेकिन इनके ही आक्रामक भाषणों से तथ्य यह है कि राजनीतिक हिंसा ‘न्यू नॉर्मल’ हो गई है। आज अमेरिकी राजनीति का हाल यह है कि ट्रंप पर कातिलाना हमले के तुरंत बाद गलत सूचनाओं का विस्फोट हो गया। ऑनलाइन हिस्टीरिया का ऑफलाइन कुप्रभाव पड़ता है, लेकिन सोशल मीडिया कंपनियों के लिए यह हमेशा की तरह व्यापार ही था।
अमेरिका की विशिष्ट राजनीतिक व्यवस्था में देशज, नस्लीय आदि विभाजन सामान्य बात है। राजनीतिज्ञ इस आग में घी डालकर सियासी फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। ट्रंप की राजनीति की जड़ें तो हर फाल्टलाइन में हैं। उनकी अतिवादी राजनीति की पहुंच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया की गलत सूचनाओं के पैâक्ट चेक के बाद भी स्थिति को ‘सामान्य’ नहीं किया जा सका। ट्रंप अपने पर हुए हमले से भी सियासी लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं। उन पर हमले के मात्र तीन घंटे बाद ऑनलाइन प्लेटफार्म ताओबाओ पर टी-शर्ट्स बिक रही थीं, जिन पर दिखाया गया है कि ट्रंप के चेहरे पर खून बह रहा है और फिर भी उन्होंने अपना मुट्ठी बंधा हाथ ऊपर उठाया हुआ है। हालांकि, दूसरी ओर बाइडेन भी ट्रंप की ही आयु के हैं और इजराइल युद्ध के घोर समर्थक हैं, लेकिन वह घरेलू राजनीति में कमजोर दिखाई दे रहे हैं।
अमेरिका एकमात्र रईस पश्चिमी देश है, जहां बाल व किशोर मौतों का प्रमुख कारण बंदूक की गोली है। इसके बावजूद गन अमेरिकी ‘मूल्यों’ का औजार, खिलौना व प्रतीक है। ट्रंप पर एआर-१५ से हमला किया गया, जो कि सैन्य एम१६ का सेमी-ऑटोमेटिक सिविलियन वर्जन है। इस गन को आप किसी भी अन्य देश की सिविलियन मार्वेâट में नहीं खरीद सकते हैं। कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ट्रंप पर हमले के बाद रिपब्लिकन गन कल्चर पर अपना नजरिया बदलेंगे, लेकिन ऐसा गौण ही लगता है। ट्रंप तो हमले को ‘विजय’ में बदलने के लिए आतुर हैं, वह क्यों कुछ बदलेंगे; भले ही गन हिंसा में मासूम अमेरिकी मरते रहें।