डॉ. अनिता राठौर
ट्रंप की ‘समझदारी’!
अमेरिका के हिसाब से २ अप्रैल २०२५ को दिन में, जबकि भारतीय समयानुसार ३ अप्रैल के तड़के २ बजे, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आखिरकार दुनिया पर वह टैरिफ बम फोड़ दिया, महीनों से वह अपने जिस टैरिफ बम से दुनिया को डरा रहे थे। व्हाइट हाउस ने इस दिन को मुक्ति दिवस यानी लिबरेशन डे कहा है। इस मौके पर व्हाइट हाउस में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में ट्रंप ने भारत का दो बार जिक्र करते हुए कहा कि भारत के मामले में निर्णय मुश्किल रहा। अमेरिका ने १भारत पर २६ प्रतिशत टैरिफ लगाया है, चीन पर ३४ प्रतिशत, यूरोपीय यूनियन पर २० प्रतिशत, साउथ कोरिया पर २५ प्रतिशत, जापान पर २४ प्रतिशत, वियतनाम पर ४६ प्रतिशत और ताइवान पर ३२ प्रतिशत लगाया है। फिलहाल, अमेरिका ने करीब ६० देशों पर उनके द्वारा अमेरिका पर लगाए जानेवाले टैरिफ की तुलना में आधा टैरिफ लगाने का फैसला किया है।
इसके साथ ही दूसरे देशों से अमेरिका में आनेवाले सभी सामान पर १० प्रतिशत बेसलाइन (न्यूनतम) टैरिफ लगेगा। बेसलाइन टैरिफ ५ अप्रैल को और रेसीप्रोकल टैरिफ ९ अप्रैल की रात १२ बजे से लागू होंगे। बेसलाइन टैरिफ व्यापार के सामान्य नियमों के तहत आयात पर लगाया जाता है, जबकि रेसीप्रोकल टैरिफ किसी अन्य देश के टैरिफ के जवाब में लगाया जाता है। आठ अप्रैल के बाद से अमेरिका विदेशों में बनने वाले वाहनों पर २५ प्रतिशत टैरिफ लगाएगा। अब तक अमेरिका अन्य देशों से मोटरसाइकिलों पर केवल २.४ प्रतिशत टैरिफ वसूलता था, जबकि भारत ६० प्रतिशत, वियतनाम ७० प्रतिशत और अन्य देश इससे भी अधिक कीमत वसूलते हैं। ट्रंप का मानना है कि दुनिया के ज्यादतर देशों ने अमेरिका को ५० वर्षों तक लूटा है, जिसे आज यानी २ अप्रैल २०२५ से वह खत्म करने की शुरुआत कर चुके हैं। हालांकि, अमेरिका आज भी दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी है, लेकिन ट्रंप के मुताबिक, अतीत में अमेरिका हुक्मरानों की गलत नीतियों के कारण अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार देश बन गया है, लेकिन अब अमेरिका अमीर बनेगा, दुनिया में सबसे अमीर देश। ट्रंप कहते हैं, ‘आज हम अमेरिकी वर्कर के लिए खड़े हो रहे हैं। आखिरकार हम अमेरिका फर्स्ट को लागू कर रहे हैं। हम वास्तव में बहुत धनवान हो सकते हैं। हम इतने अधिक धनवान हो सकते हैं कि हो सकता है यह कई लोगों को अविश्वसनीय लगे, लेकिन अब हम समझदार हो रहे हैं।’
भारत को नुकसान!
हालांकि, विशेषज्ञों का ऐसा मानना नहीं है। अमेरिका की प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी का मानना है कि इस टैरिफ बम के चलते अमेरिका पर मंदी के ३५ फीसदी आसार गहरा गए हैं, क्योंकि इस टैरिफ बम के कारण हर अमेरिकी परिवार पर करीब ३५ हजार रुपए सालाना महंगाई का बोझ बढ़ जाएगा, लेकिन इस टैरिफ बम के फोड़े जाने के बाद से अमेरिका के सरकारी खजाने में ४६ लाख करोड़ रुपए का इजाफा होगा। मतलब साफ है कि अमेरिका सरकार संपन्न होगी, लेकिन इस बम के नतीजे से अमेरिका नागरिकों की क्रयशक्ति में कमी आएगी। जहां तक भारत को अमेरिका के इस टैरिफ शिकंजे से होनेवाले नुकसान की बात है तो हम पर इससे करीबी ३५ अरब रुपए का बोझ बढ़ेगा। हालांकि इससे भारत को फायदा भी हो सकता है। भारत को जिन १० देशों के साथ सबसे ज्यादा व्यापार है, उनमें से अकेला अमेरिका ही वह देश है, जिसके साथ हमारा व्यापार फायदे में हैं बाकी सब देशों के साथ हम व्यापार घाटे हैं, लेकिन अमेरिका ने जिस तरह से टैरिफ बढ़ाया है उसे देखते हुए कई देश मसलन चीन ही भारत से ज्यादा आयात की सोच रहा है, क्योंकि इससे दोनों देशों को फायदा होगा। मतलब यह कि यह टैरिफ बम हमारे लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है।
वैसे अमेरिका सिर्फ अपने व्यापार घाटे को कम करने के लिए ही टैरिफ बम का सहारा नहीं ले रहा, बल्कि इसे एक औद्योगिक रणनीति के तौर पर भी आजमाना चाहता है। यही वजह है कि अमरीका ने कहा है कि अगर कोई कंपनी टैरिफ से छूट चाहती है तो उसे अमेरिका में अपना प्रोडेक्ट बनाना होगा। इससे न केवल अमेरिकियों को रोजगार मिलेगा, बल्कि इस टैरिफ बम से अमेरिका का नए सिरे से औद्योगिक विकास भी होगा। नौकरियां और कारखाने अमेरिका लौटेंगे। यह मन के भीतर का निष्कर्ष नहीं टैरिफ बम के फायदों का खुला नारा भी यही है। ट्रंप का मानना है कि कई देशों ने अमेरिकी बाजार का फायदा लेकर खुद को समृद्ध बनाया, लेकिन अमेरिकी सामान के लिए अपने बाजार में सख्ती लगा दी है। अब ऐसा नहीं चलेगा अब अमेरिका भी अपने फायदे के बारे में सोचेगा। अब नौकरियां और कारखाने अमेरिका में वापस आएंगे।
अमेरिका की मजबूरी!
ट्रंप ने इसी टार्गेट के मद्देनजर २ अप्रैल २०२५ को अमेरिका की आर्थिक आजादी का दिन बताया है उनके मुताबिक, ‘आज का दिन अमेरिका के लिए आर्थिक आजादी का दिन है। हमें अमेरिका को फिर से महान बनाना है। हम रेसीप्रोकल टैरिफ का एलान कर रहे हैं।’ वैसे इसका सबसे बड़ा शिकार कंबोडिया हुआ है। अमेरिका अब कंबोडिया से आयातित वस्तुओं पर ४९ फीसदी और चीन से आयात होनेवाले सामान पर ३४ फीसदी शुल्क वसूलेगा। अन्य देशों में यूरोपीय संघ से २० प्रतिशत, दक्षिण कोरिया से २५ प्रतिशत, वियतनाम से ४६ प्रतिशत, ताइवान से ३२ प्रतिशत, जापान से २४ प्रतिशत थाईलैंड से ३६ प्रतिशत, स्विट्जरलैंड ३१ प्रतिशत, इंडोनेशिया से भी ३२ प्रतिशत, मलेशिया से २४ प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम से १० प्रतिशत, से दक्षिण अप्रâीका से ३० प्रतिशत, ब्राजील से १० प्रतिशत बांग्लादेश से ३७ प्रतिशत, सिंगापुर से १० प्रतिशत, इजरायल से १७ प्रतिशत और फिलीपींस से १७ प्रतिशत तथा चिली १० प्रतिशत टैरिफ वसूलेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति इसे अपना एक कठोर निर्णय मानते हैं, लेकिन वह यह भी कहते हैं कि उनके पास इसका कोई विकल्प भी नहीं था। उनके मुताबिक, व्यापार के मामले में मित्र देश, शत्रु से भी ज्यादा बदतर हैं। ट्रंप कहते हैं, ‘हम बहुत से देशों को सब्सिडी देते हैं और उन्हें आगे बढ़ाते हैं तथा उन्हें व्यापार में बनाए रखते हैं। ट्रंप ने खासतौर पर यह बात अपने विशेष व्यापार भागीदार विशेष रूप से मेक्सिको और कनाडा के बारे में कही, लेकिन अब इन्हें अपने लिए काम करना होगा। हम अब अमेरिका को पहले स्थान पर रख रहे हैं, क्योंकि व्यापार घाटा अब केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, यह एक राष्ट्रीय आपातकाल है।’ इस तरह अमेरिका की नजर से देखें तो उसकी यह कार्रवाई किसी तरह की मनमानी नहीं, बल्कि मजबूरी है।
(लेखिका शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हैं)