नरेंद्र शर्मा
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्वीडन ने अपने नागरिकों को जंग के लिए तैयार करने हेतु एक पंफलेट पांच बार जारी किया था। हाल में स्वीडन ने अब उसी पंफलेट को ३२ पृष्ठों की बुकलेट में अपडेट करके उसकी लाखों प्रतियां अपने नागरिकों के बीच बंटवाई हैैं, इस बुकलेट में कहा गया है कि आशंकित युद्ध की स्थिति के लिए किस प्रकार से तैयारी करनी है। इस बीच एक अलग प्रयास में फिनलैंड ने भी एक नई वेबसाइट लॉन्च की है, जिसका उद्देश्य अपने नागरिकों को युद्ध के लिए तैयारी करने से संबंधित सूचनाएं उपलब्ध कराना है। फिनलैंड रूस के साथ १,३४० किमी का बॉर्डर शेयर करता है। यही नहीं रूस की तरफ से ‘भयंकर हवाई हमले’ की आशंका के मद्देनजर अमेरिका ने कीव में अपने दूतावास को बंद कर दिया है और अपने कर्मचारियों से कहा है कि वह शेल्टर में चले जाएं। अमेरिका के पदचिह्नों पर चलते हुए यूनान, हंगरी, इटली और स्पेन ने भी कीव में अपने अपने दूतावास को बंद कर दिया है। यूक्रेन ने अपने इन सहयोगियों के दूतावास बंद करने के पैâसले की आलोचना की है और ‘डर’ को मास्को का ‘मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन’ बताकर डाउनप्ले करने की कोशिश की है।
यह सब क्यों हो रहा है? दरअसल, अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन को अपनी दी हुई लंबी दूरी की आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (एटीएसीएमएस) प्रयोग करने की अनुमति दे दी है, जिससे रूस के २२५ सैन्य ठिकाने मार की रेंज में आ गए हैं। युद्ध के १०००वें दिन यूक्रेन ने पहली बार रूस पर एटीएसीएमएस मिसाइलों से हमला किया। रूस पहले ही कह चुका था कि अगर उसके खिलाफ अमेरिका के हथियार इस्तेमाल किए गए तो यह यूक्रेन से नहीं, बल्कि नाटो से युद्ध होगा और वह किसी भी नाटो देश पर हमला करने के लिए स्वतंत्र होगा, जिसके लिए उसने अपनी परमाणु नीति भी बदल दी है। अपनी नई नीति में रूस ने इस बात पर बल दिया है कि अगर कोई देश, जिसे परमाणु शक्ति वाले देश का समर्थन प्राप्त होगा, उस पर हमला करता है तो उस स्थिति में वह भी परमाणु हथियारों का प्रयोग कर सकता है। नाटो में ३२ देश शामिल हैं, जिनमें वह सब तो हैं ही, जिन्होंने कीव में अपने दूतावास बंद किए हैं, इनके अतिरिक्त फिनलैंड भी नाटो का सदस्य है। यहां यह याद दिलाना भी आवश्यक है कि रूस ने मोबाइल बम शेल्टर्स का सीरियल उत्पादन शुरू कर दिया है, जो अनेक प्रकार के खतरों से सुरक्षित रखने में सक्षम हैं, जिनमें परमाणु विस्फोट से शॉकवेव्स व रेडिएशन से बचाव भी शामिल है।
अन्य घटनाक्रम भी कम चिंताजनक नहीं हैं। उत्तरी कोरिया ने अपने सैनिक बलों को क्रेमलिन की मदद करने के लिए भेजे हैं, जो रूस के कुरस्क क्षेत्र से यूक्रेन की फौज को खदेड़ने का काम करेंगे। रूस ने सीरिया में अपने सैनिकों की उपस्थिति बढ़ाई है। ध्यान रहे कि इजरायल ने सीरिया में रूसी बेसों पर हवाई हमले किए थे। रूस ने ईरान को अपना एयर डिप्रâेंस सिस्टम दिया है और उसे ऑपरेट करने के लिए अपने सैकड़ों सैनिक भी ईरान भेजे हैं। इजरायल ने इराक को भी हमले की धमकी दी है, बगदाद ने भी जवाबी कार्रवाई की बात कही है। इराकी मिलिशिया पहले ही इजरायल पर हमले कर रहा है। यमन के हूती लाल सागर में अपने हमलों से जहाजों के आने-जाने को रोके हुए हैं। उन्होंने अमेरिका के युद्धपोत, जिससे लड़ाकू विमान उड़ान भरते थे, को भारी नुकसान पहुंचाया है। मजबूरन अमेरिका को अपना युद्ध पोत वापस बुलाना पड़ा है। हूती पर अमेरिका व इंग्लैंड के हमले जारी हैं। हमास व हिजबुल्ला और इजराइल के बीच भी जंग जारी है।
ईरान इजरायली हमले का बदला लेने के लिए तेलअवीव पर तीसरा हमला करने की तैयारी कर रहा है। अमेरिका न सिर्फ इजरायल को हथियारों की सप्लाई कर रहा है, बल्कि ईरान के विरुद्ध उसके साथ युद्ध करने की योजना में भी है। हालात ऐसे बन रहे हैं कि मध्य-पूर्व एशिया और यूक्रेन में रूस और अमेरिका आमने-सामने आर-पार की लड़ाई में शामिल हो सकते हैं, जिसमें बहुत से देश इस खेमे या उस खेमे की तरफ से लड़ते हुए नजर आ सकते हैं। वास्तव में दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है, बस एक चिंगारी लगने भर की देर है। जो लोग आग यह सोचकर लगाते हैं कि जब चाहेंगे उस पर काबू पा लेंगे, उन्हें शायद यह मालूम नहीं है कि आग जब भड़कती है तो भड़के ही चली जाती है; कमान से तीर निकलने के बाद कोई नहीं बता सकता कि वह कितनी दूर तक वार करेगा इसलिए समय रहते (जो अब बहुत कम रह गया है) यूक्रेन और मध्य-पूर्व एशिया में युद्धविराम के प्रयास न किए गए तो जिस तीसरे विश्व युद्ध के काले बादल मंडरा रहे हैं, वह विनाशकारी परमाणु युद्ध में भी बदल सकता है।
विश्व के ८० प्रतिशत परमाणु हथियार अमेरिका व रूस के पास हैं। रूस के डिप्लोमेट्स का कहना है कि इस समय जो संकट है वह १९६२ के क्यूबा मिसाइल संकट जैसा है जब शीत युद्ध की दोनों महाशक्तियां जानबूझकर परमाणु युद्ध के करीब आ गई थीं। उनका कहना है कि पश्चिम बहुत बड़ी गलती कर रहा है, अगर वह सोचता है कि यूक्रेन के मुद्दे पर रूस पीछे हट जाएगा। इस समय यूक्रेन और मध्य-पूर्व एशिया में जो बर्बादी और मानव त्रासदी देखने को मिल रही, जिससे दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर पहुंच गई है, उसके लिए केवल एक व्यक्ति जिम्मेदार है और वह जो बाइडेन हैं। संसार में अन्य जगहों पर जो हिंसा व युद्ध की स्थितियां थीं या हैं, उनकी पृष्ठभूमि में भी अमेरिका का हथियार उद्योग ही है। विश्व में अगर शांति होगी तो अमेरिका के हथियार कौन खरीदेगा, उसके हथियार उद्योग का तो चक्का जाम हो जाएगा। बाइडेन ने यूक्रेन को हाल ही में १०० मिलियन डॉलर का कर्ज हथियार खरीदने के लिए दिया है।
जाहिर है कि यह हथियार अमेरिका, प्रâांस आदि से ही खरीदे जाएंगे। इनका कमीशन नेताओं को ही मिलेगा। कोई रक्षा सौदा बिना कमीशन के नहीं होता है। यह सोचने की बात है कि बाइडेन ने अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में यूक्रेन को अमेरिकी हथियार इस्तेमाल करने की अनुमति देकर युद्ध को उस समय तेज किया है जब अमेरिका के निर्वाचित-राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि २० जनवरी को वाइट हाउस में पहुंचते ही वह युद्ध बंद कराएंगे, जिसका अर्थ है कि कीव पर अनेक पाबंदियां लग सकती हैं। बाइडेन ने यूक्रेन को एंटी-पर्सोनल माइंस के इस्तेमाल की भी अनुमति दी है। कहने का अर्थ यह है कि बाइडेन ने हर वो पैâसला किया है, जिससे युद्ध रुकने की जगह पैâलेगा और जिसे समेटना ट्रंप के लिए लगभग असंभव हो जाएगा। साहिर ने कहा था कि टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें, कोख धरती की बांझ होती है इसलिए ए शरीफ इंसानों जंग टलती रहे तो बेहतर है। दुनिया को कोई मुद्दा आज तक युद्ध के मैदान में हल नहीं हुआ है। वार्ता की मेज पर ही समस्या का समाधान होता है। यह बात विश्व नेताओं को कब समझ में आएगी?
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)