नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय ने हाल ही में “अनियमित ऋण गतिविधियों पर प्रतिबंध” (BULA) नामक मसौदा विधेयक पेश किया हैं, जिसका उद्देश्य अनियंत्रित और अवैध ऋण प्रथाओं पर रोक लगाना हैं। यह विधेयक बिना किसी नियामक प्राधिकरण की अनुमति के संचालित होने वाले ऋण कारोबारों को गैरकानूनी घोषित करता हैं। साहूकारी और बीसी (भित्ती चिट्ठी प्रणाली) जैसी नकद-आधारित प्रथाएं, जिनका कोई औपचारिक रिकॉर्ड नहीं होता, इन दोनों प्रथाओं के तहत लाखों का लेन-देन होता हैं। साहूकारी में व्यक्तिगत रूप से ऊंची ब्याज दर पर नकद ऋण दिए जाते हैं, जबकि बीसी प्रणाली में 20 लोगों का समूह एकत्र होकर मासिक अंशदान से बड़ी राशि जुटाता है, जिसे ऊंची ब्याज दर की बोली के आधार पर किसी एक सदस्य को सौंपा जाता हैं।
मसौदा विधेयक में प्रावधान हैं कि ऐसे अवैध ऋण कारोबार चलाने वालों को 2 से 7 साल की जेल और ₹2 लाख से ₹1 करोड़ तक के जुर्माने का सामना करना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, उधार वसूली में गलत तरीके अपनाने वालों पर 3 से 10 साल की सजा का प्रावधान हैं। हालांकि, इन प्रथाओं की सबसे बड़ी चुनौती यह हैं कि ये पूरी तरह नकद में संचालित होती हैं और इनके लेन-देन का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं होता। इनकी जानकारी केवल कच्ची चिट्ठियों या मौखिक समझौतों तक सीमित रहती हैं, जिससे शिकायत या कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता हैं। सरकार का मानना है कि बड़े नकद लेन-देन की निगरानी, डिजिटल फोरेंसिक और गोपनीय शिकायत तंत्र के माध्यम से ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती हैं। वहीं, यह विधेयक आम जनता के सहयोग पर भी निर्भर हैं, क्योंकि साहूकारी और बीसी जैसे कारोबार स्थानीय स्तर पर परिचित लोगों के माध्यम से संचालित होते हैं। सरकार ने 13 फरवरी, 2025 तक इस विधेयक पर जनता और विशेषज्ञों से सुझाव मांगे हैं।
अब सवाल यह उठता हैं कि क्या यह कानून साहूकारी और बीसी जैसी प्रथाओं को रोक पाएगा, जो वर्षों से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गहराई से जमी हुई हैं। क्या लोग इस विधेयक का समर्थन करेंगे और क्या इसे लागू करने में कोई बाधा नहीं आएगी? आपकी राय और सुझाव इस कानून को प्रभावी बनाने में मददगार हो सकते हैं।