मुख्यपृष्ठनए समाचारकाशी के प्रख्यात मसाने की होली के आयोजन को लेकर उठा विवाद

काशी के प्रख्यात मसाने की होली के आयोजन को लेकर उठा विवाद

उमेश गुप्ता / वाराणसी

रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाशमशान पर आयोजित होने वाले मसाने की होली को लेकर इन दोनों विवाद उत्पन्न हो गया है। एक ओर काशी विद्वत परिषद सहित कुछ लोग इसे काशी की परंपरा के विरुद्ध बता रहे हैं तो दूसरी ओर कार्यक्रम आयोजित करने वाले संगठन इसे परंपरा का हिस्सा बता रहे हैं। आज रविवार को हरिश्चंद्र घाट पर आयोजित पत्रकार वार्ता में सामाजिक, आध्यात्मिक संस्था अधोरपीठ हरिश्चंद्र घाट काशी द्वारा पीठ के पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चंडेश्वर कपाली “कपाली बाबा” ने कहा कि श्मशान की होली, जिसे मसाने की होली भी कहते हैं, काशी की धार्मिक परंपराओं में एक विशेष स्थान रखती है। लगभग चार दशकों से मैं भी इस परंपरा का निर्वहन आदरणीय नागा संन्यासियों व अघोर परंपरा के साधक संन्यासियों व अन्य विरक्त परम्पराओं के संतो के साथ ही किन्नर समुदाय के साथ करता रहा हूं। कपाली बाबा ने कहा कि यह एक पवित्र आयोजन है, यह यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नागा संन्यासियों व अधोर साधुओं का पर्व है। यह होली विरक्तों और समाज के उस वर्ग के लिए है, जिसे समाज में नहीं सिर्फ महादेव के दरबार में सम्मान मिला है, उन्होंने कहा कि भगवान शिव समस्त वर्जनाओं से मुक्त हैं, विधि और निषेध शिव के लिए लागू नहीं होते। सपूर्ण काशी को ही महाश्मशान कहा गया है, जो कि भगवान शिव के आनंदमय कोष से निर्मित है। अतः इसे आनंदवन भी कहा गया है। यह अविमुक्त क्षेत्र माना गया है, यह महादेव के त्रिशूल पर बसी है। अतः यह सामान्य नियमों को स्वीकार नहीं करती। काशी उत्सवधर्मी है यहां मृत्यु का भी उत्सव मनाया जाता है, इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

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