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शिंदे सरकार के राज में योजनाओं की लागत बढ़ी …वित्तीय अनियमितता का संदेह मनोर ग्रामीण अस्पताल का खर्च १०० करोड़ के पार

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
शिंदे सरकार स्वास्थ्य विभाग समेत अन्य विभागों के माध्यम से चलाई जा रही कई योजनाओं की लागत ब़ढ़ रही है। इसे लेकर वित्तीय अनियमितता का संदेह भी जताया जा रहा है। इसी क्रम में जहां एक तरफ पालघर जिले में सरकारी अस्पताल खुद बीमार चल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मनोर में बनाए जा रहे ग्रामीण अस्पताल का खर्च ७४.०६ करोड़ रुपए से बढ़ कर अब १२०.०२ करोड़ रुपए पहुंच गया है। इस बजट के बढ़ने का कारण कंक्रीट का काम अभी तक पूरा नहीं होना बताया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि पालघर जिले के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के खस्ताहाल के चलते मरीजों खासकर आदिवासियों को इलाज के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि आदिवासी बाहुल्य कई गांवों की हजारों की आबादी के लिए मुश्किल से मात्र एकाध स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिसमें सामान्य सुविधाएं तक नहीं हैं। आलम यह है कि मरीजों को इलाज के लिए गुजरात, सिलवासा और मुंबई, ठाणे, नासिक के अस्पतालों में जाना पड़ता है। इसके लिए बमुश्किल एंबुलेंस मिल पाता है।
संक्रमण का खतरा
कई स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव के लिए जो कमरा है, उसमें साफ-सफाई की ठीक से व्यवस्था न होने से प्रसव के लिए आई महिलाओं को इस केंद्र में संक्रमण का खतरा बना रहता है। सरकारी अस्पतालों की हालत लगातार खराब होती दिख रही है, जिससे लोग निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर है, जहां उन्हें इलाज के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ती है।
वित्तीय अनियमितता की साजिश
बताया गया है कि मनोर अस्पताल में २०० बेड का अस्पताल और २० बेड का ट्रामा केयर यूनिट के लिए इमारत तैयार की जाएगी। इस संबंध में शासनादेश भी जारी किया गया है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि खर्च को बढ़ाकर एक तरह से वित्तीय अनियमितता होने की साजिश नजर आ रही है।

अस्पताल की लागत बढ़ी
इन समस्याओं को देखते हुए महाविकास आघाड़ीr सरकार के कार्यकाल में मनोर में ग्रामीण अस्पताल का विस्तार करते हुए इसे २०० बेड के अस्पताल को मंजूरी देते हुए ७४.०६ करोड़ रुपए की मंजूरी दे दी थी। साथ ही अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। इसके तहत साल २०१९ से २०२३ तक ४०.२२ करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं।

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