दीपक तिवारी / विदिशा
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में प्रकृति के माहिर सफाईकर्मी गिद्धों की संख्या अच्छी देखने में मिल रही है। 17 फरवरी से गिद्धों की गणना संपूर्ण प्रदेश में प्रारंभ होने वाली है, जिसमें सभी टाइगर रिजर्व सेंचुरी एवं क्षेत्रीय वन मंडलों में गणना की जाएगी। पिछली गणना में प्रदेश में लगभग 10 हजार गिद्धों की गणना की गई थी।
विदिशा जिले के ग्राम सोंठिया के नजदीक डंपिंग ग्राउंड पर गिद्धों की अच्छी संख्या देखने में मिली है, जिसमें चार प्रजाति के गिद्धों जिसमें सफेद पीठ वाला गिद्ध, भारतीय देसी गिद्ध, राज गिद्ध, इजिप्शियन गिद्ध को देखा गया है। वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार गिद्ध जल्दी अपना साथी या मीटिंग पेयर नहीं बनाते हैं। यह पक्षी असल में बहुत ही नर्वस किस्म का जीव है। इस मामले में शर्मीला कहा जा सकता है। गिद्ध कभी विलुप्त होने की कगार पर थे। देशभर में धरती के सफाई दूत की संख्या बुरी तरह घटती जा रही थी, जिसका प्रमुख कारण था पशुओं को दर्द सूजन आदि के दौरान डाइक्लोफिनेक दवा दी जाती थी। इनके खाने के बाद मरने वाले पशु या जानवर का मांस गिद्ध खाते थे। इस दवा के प्रभाव से गिद्धों की भी मौत हो जाती है और इसलिए यह दवा प्रतिबंध की गई है। गिद्ध साल में एक ही अंडा देते हैं जो मई जून से अक्टूबर के दौरान मेटिंग सीजन और अंडे देने का समय होता है। अंडे से बच्चे जीवित निकालने का सक्सेस रेट 50 प्रतिशत माना जाता है। यह पक्षी धूप और हवा गर्म होने के बाद ही उड़ान भर पाते हैं। बांकी समय घोसले में रहते हैं। इसलिए उनकी गणना सुबह 6 बजे से 9 बजे के बीच ही करनी पड़ती है। उनके पेट में अम्ल होता है जो मरे हुए जानवरों का मांस भी पचा लेता है। इससे मनुष्य में बीमारी और फसलों में संक्रमण नहीं फैलता है। आने वाले तीन दिनों में संपूर्ण जिले में गिद्धों की गणना की जाएगी।
वन मंडलाधिकारी हेमंत यादव के द्वारा समस्त प्रकृति प्रेमियों से अनुरोध किया गया है कि वह गणना में भाग ले सकते हैं, जिससे प्रदेश स्तर पर विदिशा जिले में गिद्धों के रूप में भी एक अलग पहचान बनाई जा सकती है।