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देश-विदेश : डोनाल्ड ट्रंप के १०० से ज्यादा एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स के मायने क्या हैं?

नरेंद्र शर्मा

गैर-परंपरागत राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रंप को ‘थोड़ा-सा अलग … थोड़ा-सा क्रूर’ होने की लत है। इसलिए अपने पहले कार्यकाल में वे अमेरिका के गैर-परंपरागत राष्ट्रपति के रूप में सामने आए थे। इस बार उन्होंने हर किसी को असहज कर दिया है। जब वे २० जनवरी २०२५ को अमेरिका के ४७वें राष्ट्रपति के रूप में लौटे तो उन्होंने वॉशिंगटन में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान १०० से अधिक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स पर हस्ताक्षर किए; उन्हें एक-एक करके ऑर्डर दिया गया, वह हस्ताक्षर करते और उसे तालियां बजाती उत्साही भीड़ को दिखाते। इन एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स के माध्यम से जहां बाइडेन युग की ७८ नीतियों को पलट दिया गया है, वहीं इनमें मुख्य रूप से दो बातों का अधिक महत्व है। एक, अमेरिका को पेरिस क्लाइमेट ट्रीटी से अलग कर दिया गया है, जिस पर विवाद होना लाजिमी है। अमेरिका में जो हाल ही में भयंकर आग लगी थी, उसके बारे में अनेक विशेषज्ञों का कहना है कि वह क्लाइमेट चेंज का ही परिणाम थी। लेकिन ट्रंप तो ‘ड्रिल’ करने के समर्थक हैं, भले ही क्लाइमेट चेंज से पूरी दुनिया के लिए कितनी ही बड़ी समस्या खड़ी हो जाए। दूसरा यह कि जिन प्रवासियों के पास वैध कागजात नहीं हैं, उन्हें वापस उनके मूल देश भेजने को प्राथमिकता दी जाएगी। जिन अवैध अप्रवासियों के बच्चों को पहले अमेरिका में जन्म लेने के कारण नागरिकता मिल जाती थी, उस अधिकार को भी समाप्त किया जाएगा। हालांकि, इस संदर्भ में संवैधानिक बाधाएं बरकरार हैं।
अमेरिका में लाखों की तादाद में बिना कागजात के अप्रवासी हैं, जिनमें से लगभग ७,२५,००० भारतीय हैं। ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी से इन सभी की सांसें थम सी गई हैं। ट्रंप इस बार अधिक कठोर स्वदेशी एजेंडा के साथ लौटे हैं और अवैध घुसपैठियों को घरवापसी फ्लाइट पर बैठाना चाहते हैं। दोपहर में आरामदायक वैâपिटोल रोटोंडा में शपथ लेने के बाद ट्रंप ने अवैध अप्रवासियों के विरुद्ध एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर यह कहते हुए हस्ताक्षर किए, ‘अपनी सीमाओं को हम ऐसी आक्रमकता से सुरक्षित रखेंगे जिसे दुनिया ने पहले कभी देखा न होगा।’ हालांकि, बाहर माइनस चार डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में तेज ठंडी हवाएं, रूह तक में कंपकंपी लाने के लिए पर्याप्त थीं, लेकिन ट्रंप के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से अवैध अप्रवासी पसीने-पसीने हो रहे थे। ट्रंप ने कहा, ‘हम अवैध घुसपैठ हमेशा के लिए रोक देंगे। हमारे यहां कोई घुसपैठ नहीं करेगा, कोई कब्जा नहीं करेगा। हम एक बार फिर आजाद और गौरवशाली देश होंगे।’
देश के गौरव के नाम पर
ट्रंप, दरअसल वही शब्द दोहरा रहे थे जो वह अपने चुनाव अभियान के दौरान बोले थे। क्यों? चूंकि अब एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स नए राष्ट्रपति के लिए वह औजार बन गए हैं, जिनके जरिए वह अपने चुनावी वायदों पर जल्द से जल्द अमल करते हुए दिखाई देना चाहते हैं और अपनी नीति को दिशा देते हैं। एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स की संख्या चुनावी वायदों की संख्या पर निर्भर करती है और यह भी कि वह सभी विषयों को कवर करते हों, जैसे विदेशी मामले, जहां राष्ट्रपति के पास आदेश के अनुसार कार्य करने का अधिक अधिकार होता है। लेकिन यह भी होता है कि अगर एक राष्ट्रपति ने एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स पर अधिक निर्भरता दिखाई है तो उसका उत्तराधिकारी यही तरीका अपनाकर उसके आदेशों को निरस्त करता है। ट्रंप ने बाइडेन के ७८ आदेशों को ठंडे बस्ते में डाला। बहरहाल, सभी एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स समान महत्व के नहीं होते हैं। कुछ से नीतियों में नाटकीय परिवर्तन आ सकता है, जबकि अन्य रूटीन मामलों को ही कवर करते हैं।
हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स व निर्देशों का इस्तेमाल अपने कार्यक्रम लागू करने व नीति को आकार देने के लिए करते हैं, लेकिन अमेरिका के संविधान में कोई प्रावधान या कानून विशिष्ट रूप से इन शक्तियों के बारे में कुछ नहीं बताता है। यह स्वीकार कर लिया गया है कि राष्ट्रपति के पास जो पॉवर है, उसमें ऐसे आदेश जारी करने के अधिकार स्वत: ही निहित हैं। एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स की वैधता राष्ट्रपति प्राधिकरण (अथॉरिटी) के वैध स्रोतों से हासिल करनी होती है- संविधान के तहत राष्ट्रपति को सीधे तौर पर प्राप्त पॉवर्स और कांग्रेस द्वारा प्रदान किया गया प्रत्यायोजित प्राधिकार। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर कांग्रेस ऐसा कानून पारित करती है, जिससे राष्ट्रपति को किसी मामले में पैâसला लेने का अधिकार प्रदान कर दिया जाए, तो राष्ट्रपति संबंधित मामले में एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी कर सकते हैं। फिर राष्ट्रपति के पास कुछ संवैधानिक पॉवर्स होती हैं, जिनके तहत वह एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स जारी कर सकते हैं।
क्या करे भारत?
कानूनन वैध एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स में कानून का बल व प्रभाव होता है, लेकिन उन्हें कांग्रेस या न्यायिक एक्शन द्वारा निरस्त या वापस लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संविधान के तहत कांग्रेस को दी गर्इं पॉवर्स को एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के प्राधिकार से सीमित किया जा सकता है। मसलन, कांग्रेस की विनियोग पॉवर का अर्थ है कि एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के माध्यम से अमेरिकी ट्रेजरी से गठित विनियोग से अधिक फंड नहीं निकाला जा सकता। अमेरिकी संविधान पर आधारित एग्जीक्यूटिव पॉवर्स को लेजिस्लेटिव प्रक्रिया से संशोधित किया जा सकता था। प्रत्येक राष्ट्रपति को एग्जीक्यूटिव ऑर्डर में संशोधन करने, निरस्त करने या उसकी जगह दूसरा ऑर्डर लाने का अधिकार है, जिसमें पूर्व राष्ट्रपतियों के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर भी शामिल हैं। इसलिए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से जो नीतियां बनती हैं, उनकी अल्प आयु होती है उन नीतियों व कानूनों की तुलना में जो अन्य माध्यमों से गठित होते हैं। अप्रैल १९९२ में राष्ट्रपति जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश ने एग्जीक्यूटिव ऑर्डर १२,८०० के जरिए फेडरल ठेकेदारों को आदेश दिया कि वह अपने कर्मचारियों को नोटिफाई करें कि कानूनन उन्हें किसी यूनियन का सदस्य बनने की जरूरत नहीं है। फरवरी १९९३ में बिल क्लिंटन ने एग्जीक्यूटिव ऑर्डर १२,८३६ से इस ऑर्डर को पलट दिया। फिर फरवरी २००१ में जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने एग्जीक्यूटिव ऑर्डर १३,२०१ से क्लिंटन के आदेश को बदल दिया, जिसे बराक ओबामा ने जनवरी २००९ में एग्जीक्यूटिव आर्डर १३,४९६ से एक बार फिर पलट दिया।
इसका अर्थ यह है कि अगर कोई नीति एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से गठित होती है, तो उसे एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से ही बदला भी जा सकता है। फिलहाल, ट्रंप ने जो कुछ बेतुके एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी किए हैं। जैसे पेरिस क्लाइमेट ट्रीटी से अमेरिका को बाहर निकाल लेना तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन को फंड न देना। इससे दुनियाभर में क्लाइमेट और स्वास्थ्य संबंधी शोध व अध्ययन में समस्याएं खड़ी होंगीं। ट्रंप ने एक तानाशाह की तरह गद्दी पर बैठते ही एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स के नाम पर ऐसे फरमान जारी किए हैं कि हर देश अपने प्लान ए, बी व सी के बारे में सोचने लगा है। भारत भी ट्रंप के ट्रेड, इमीग्रेशन और पश्चिम एशिया व यूक्रेन युद्ध थिएटरों पर निर्णयों की गहरी समीक्षा कर रहा है। ट्रंप ने भारत व चीन की यात्रा करने के संकेत दिए हैं। इससे यह सवाल तो बनता ही है कि क्या अमेरिका-चीन खेल में भारत को कम वरीयता मिलेगी? इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अमेरिका के ‘आक्रामक व विवादित’ होने से भारत के समक्ष स्ट्रेटेजिक खतरे हैं, लेकिन नई दिल्ली को चाहिए कि वह ट्रंप की मनमर्जियों के सामने बैकफुट पर बल्लेबाजी न करे। ट्रंप का बेहतरीन जवाब यही है कि भारत तेजी से विकास करे, हम आर्थिक रूप से मजबूत होंगे तो ग्लोबल राजनीति हमारे इशारों पर नाचेगी।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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