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देश-दुनिया : श्रीलंकाई राष्ट्रपति की भारत यात्रा के मायने…

 

नरेंद्र शर्मा

श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुराकुमार दिशानायके की १५ से १७ दिसंबर २०२४ तक की भारत यात्रा कई अर्थों में बहुत महत्वपूर्ण रही। दरअसल, बतौर राष्ट्रपति उनकी यह पहली विदेश यात्रा ऐसे समय में हुई, जब चीन के सुरक्षा फुटप्रिंट्स इस क्षेत्र में निरंतर पैâलते जा रहे हैं। इस
पृष्ठभूमि में दिशानायके ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करके उन्हें आश्वासन दिया कि वह श्रीलंका की भूमि को भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देंगे। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दिशानायके का यह आश्वासन सिर्फ एक कूटनीतिक बयान है या वे इस मामले में इमानदारी बरतते हैं।
चूंकि भारत व श्रीलंका ने रक्षा सहयोग को भी बेहतर करने पर सहमति जताई है, इसलिए अब दोनों देश यह संभावना भी तलाश करेंगे कि रक्षा सहयोग समझौते के प्रâेमवर्क को भी अंतिम रूप दिया जाए। गौरतलब है कि मार्क्सवादी दिशानायके अगले माह बीजिंग की यात्रा पर भी जाएंगे। इसका अर्थ है कि वह दोनों भारत व चीन से श्रीलंका के संबंध स्थिर व संतुलित रखने का कठिन प्रयास कर रहे हैं। फिर भी उनकी चीन से पहले की गई भारत यात्रा इसलिए सांकेतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने तमाम आशंकाओं के बावजूद कि वह भारत से पहले चीन की यात्रा करेंगे, भारत आकर उन्होंने श्रीलंका के साथ हमारे पारंपरिक राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों की विरासत को दोहराया है। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि भारत व श्रीलंका ने दो एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से एक का संबंध डबल टैक्स से बचने से है और दूसरा भारत द्वारा की गई इस घोषणा से संबंधित है कि वह १४.९ मिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता श्रीलंका को देगा, ताकि उसके रेलवे सेक्शन के सिग्नलिंग व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए।
भारत की बड़ी चिंता
श्रीलंका में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद अब यहां मार्क्सवादी सरकार आई है। इसलिए श्रीलंका में पुनर्निर्माण व सुलह के प्रयास चल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने आशा व्यक्त की है कि दिशानायके की सरकार श्रीलंका के तमिल लोगों की महत्वकांक्षाओं को पूरा करेगी और संविधान को पूरी तरह से लागू करते हुए प्रांतीय परिषद का चुनाव आयोजित करेगी। दिशानायके को राष्ट्र निर्माण प्रयासों में भरोसेमंद व विश्वसनीय पार्टनर बनने का आश्वासन देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमारा मानना है कि कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा व विकास के लिए महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म है। इसकी छत्रछाया में समुद्री सुरक्षा, आतंक-रोधी, साइबर सुरक्षा व संगठित अपराध, तस्करी रोकने, मानवीय सहयोग व प्राकृतिक आपदा राहत के मामलों में सहयोग का विस्तार किया जाएगा।’ इस कॉन्क्लेव में मॉरिशस और मालदीव भी भारत व श्रीलंका के साथ शामिल हैं। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा को प्रोत्साहित करना है, सदस्य देशों के समक्ष जो साझा चिंताओं के ट्रांसनेशनल खतरे व चुनौतियां हैं, उन्हें संबोधित करके।
भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि चीन का रिसर्च जहाज श्रीलंका में मौजूद है। क्या यह मुद्दा दिशानायके के समक्ष उठाया गया?
भले ही इस पर भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, ‘भारत ने उस क्षेत्र में अपनी सुरक्षा चिंताओं के महत्व व संवेदनशीलता को उठाया और दिशानायके ने एकदम स्पष्ट जवाब दिया कि वह यह सुनिश्चित करेंगे कि श्रीलंका की भूमि का इस तरह से प्रयोग न हो जिससे भारत की सुरक्षा प्रभावित हो।’ लेकिन भारत का हकीकत को अनदेखी करना और आंखें मूंदकर विश्वास जमाना देश के लिए खतरनाक हो सकता है।
हालांकि, पिछले दस माह के दौरान यह दिशानायके की दूसरी भारत यात्रा थी, लेकिन इस बार की यात्रा इस लिहाज से अधिक महत्वपूर्ण थी कि वह बतौर राष्ट्रपति आए थे। दस माह पहले जब नेशनल पीपल्स पॉवर (एनपीपी) के दल का नेतृत्व करते हुए दिशानायके नई दिल्ली आए थे तो वह समय उनके लिए और उनकी राजनीतिक पार्टी के लिए बड़ी संभावनाओं का समय था, यह अलग बात है कि कुछ भी निश्चित नहीं था। श्रीलंका में चुनाव की तारीख भी निर्धारित नहीं हुई थी। लेकिन नई दिल्ली इस बात से अवगत थी कि श्रीलंका में राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा था और दिशानायके अगले राष्ट्रपति हो सकते हैं, जब भी चुनाव होंगे।
इसें संयोग ही कहा जा सकता है कि नई दिल्ली का पहला निमंत्रण एक तरह से जुए का दांव ही था। हां, ५५ वर्षीय मार्क्सवादी नेता से मिलने का उचित समय था; क्योंकि अधिकतर श्रीलंकाई उन्हें विश्वसनीय नेता के रूप में स्वीकार करने लगे थे। लेकिन वह एक ऐसी राजनीतिक पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे, जिसकी जीन्स में भारत विरोध की गहरी भावनाएं मौजूद थीं। इस पृष्ठभूमि में दिशानायके का अब बतौर राष्ट्रपति भारत आना बहुत महत्वपूर्ण रहा, जोकि इस हैसियत में उनकी पहली अंतर्राष्ट्रीय यात्रा है।
किसे खुश रखें दिशानायके?
भले ही हाल के वर्षों में भारत ने श्रीलंका के इंप्रâास्ट्रक्चर में बहुत अधिक निवेश किया है और उसने इसलिए अपने कमर्शियल पहलू को मजबूत करने का प्रयास किया बावजूद इसके कि चीन ने श्रीलंका को द्विपक्षीय तौर पर सबसे ज्यादा ऋण दिया हुआ है। नई दिल्ली ने इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया है कि वाम झुकाव वाले दिशानायके को फूंक-फूंककर कदम रखने पड़ रहे हैं, ताकि वह भारत व चीन की प्रतिद्वंद्विता में घसीटे जाने से बच सकें। इस स्थिति को दिशानायके ने हमेशा संबोधित किया है कि एनपीपी में इतना खुलापन है कि वह एक को दूसरे पर वरीयता नहीं देगा और नई दिल्ली व बीजिंग से अलग-अलग व बराबरी पर डील करेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नई दिल्ली ने दिशानायके की मेहमाननवाजी में कोई कमी नहीं छोड़ी और इस तथ्य को भी अनदेखा किया कि उनकी सरकार ने सितंबर से भारत से कोई संपर्क स्थापित नहीं किया था। नवीनतम घटनाक्रम यह संकेत दे रहा है कि भारत और श्रीलंका अब बेहतर व मजबूत रिश्ते बनाने के इच्छुक हैं और इस दिशा में उचित कदम उठा रहे हैं।
श्रीलंका के २०२२ में आर्थिक पतन के बाद से भारत उसे ४ बिलियन डॉलर का ऋण और मानवीय सहयोग दे चुका है। आईएमएफ से भी बेलआउट कराने में भारत की सहयोगी भूमिका रही, ताकि श्रीलंका फिर से अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक कर सके।
दिशानायके ने श्रीलंका में भारत के जियोस्ट्रेटेजिक हितों को स्वीकार किया है और इस बात के संकेत दिए हैं कि वह टकराव की बजाय मुद्दों के समाधान पर बल देना चाहते हैं। हालांकि यह पहले भी होता आया है कि श्रीलंका में चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति भारत की यात्रा को प्राथमिकता देते रहे हैं, लेकिन दिशानायके द्वारा भारत को प्राथमिकता देने का एक विशेष कारण है कि वह गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण करना चाहते हैं और अपने देश की विदेश नीति में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं, भले ही उनकी राजनीतिक पार्टी का स्वर भारत विरोधी हो। अब उनकी सफल भारत यात्रा से अनुमान यह है कि भारत के प्रति उनकी पार्टी व श्रीलंका के रवैये में परिवर्तन आएगा।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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