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चारे-पानी तक के लिए तरस रही थी गायें … चुनाव नजदीक आते ही … घाती सरकार को आई ‘राजमाता’ की याद! … गौशालाओं को प्रति गाय देगी ५० रुपए की सब्सिडी

-जनता समझ चुकी है इनका हथकंडा

सामना संवाददाता / मुंबई
विधानसभा चुनाव की घोषणा १० से १५ अक्टूबर के बीच कभी भी होने का अनुमान है। इस बीच ‘घाती’ सरकार को यह अनुमान हो गया है कि जीतना मुश्किल है। ऐसे में जनता को लुभाने के लिए यह सरकार अब कई तरह की घोषणाएं करती हुई नजर आ रही है, लेकिन जनता इनके हथकंडों को समझ चुकी है। इसी कड़ी में हाल में गायों को ‘राजमाता’ का दर्जा दिया गया। इसी में अब तक चारे-पानी के लिए तरह रही उसी राजमाता की याद घाती सरकार की आई है। साथ ही गौशालाओं को प्रति गाय के लिए ५० रुपए सब्सिडी देने का पैâसला किया है।
राज्य सरकार का कहना है कि देशी गायों की संख्या कम होते जा रही है। देशी गाय के दूध के महत्व, आयुर्वेद में उपयोग और जैविक खेती में गोबर व मूत्र के उपयोग को देखते हुए इनकी कम होती आबादी एक गंभीर मुद्दा बनते जा रहा है। इसे देखते हुए देशी गायों को अब ‘राजमाता’ घोषित किया जा रहा है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर गौशालाओं को प्रति देशी गाय ५० रुपए प्रतिदिन अनुदान देने का निर्णय लिया गया। यह योजना ‘महाराष्ट्र गौसेवा आयोग’ से ऑनलाइन लागू की जाएगी और इसके लिए प्रत्येक जिले में एक जिला गौशाला निरीक्षण समिति होगी।
सरकार कहां से देगी सब्सिडी
‘लाडली बहन योजना’ जैसी कई योजनाओं पर अत्यधिक धनराशि खर्च की जा रही हैं। इसके लिए विभिन्न विभागों की निधियों को भी इन्हीं योजनाओं की तरफ मोड़ दिया जा रहा है। इसकी वजह से सरकार का खजाना खाली हो चुका हैं। दूसरी तरह राज्य में हजारों गौशालाओं में गायों की संख्या लाखों में हो सकती है। इस स्थिति में इन पर प्रतिदिन लाखों रुपयों के खर्च होने का अनुमान है। ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि इसकी पूर्ति यह सरकार वैâसे करेगी।
राज्य में कई तरह की हैं देशी गायें
बताया गया है कि राज्य के अलग-अलग हिस्सों में कई तरह की देशी गायें हैं। इनमें मराठवाड़ में देवनी और लालकंधारी, पश्चिमी महाराष्ट्र में खिल्लर, उत्तर महाराष्ट्र में डांगी और विदर्भ में गवलाऊ का समावेश हैं। हालांकि, देशी गायों की संख्या हर गुजरते दिन के साथ कम होती जा रही है। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया था कि राज्य में देशी मवेशियों की जनसंख्या १९९७ में ४६.४३ लाख थी, २००३ में ३८.४० लाख, २००७ में ३६.५ लाख तथा २०१२ में ३३.०२ लाख थी।
तब सरकार कहां थी, जब मर रही थीं गायें
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि जब सूखे के दौरान गायें बिना भोजन और पानी के मर रही थीं, तब सरकार को गायों की याद क्यों नहीं आई। उन्होंने कहा कि जब किसान दूध के दाम न मिलने से परेशान थे, तब उन्हें गायों की याद नहीं आई। राजमाता की यह घोषणा चुनावी जुमला के अलावा कुछ नहीं है।

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