मुख्यपृष्ठस्तंभसम-सामयिक : एसएसएलवी-डी३ का सफल प्रक्षेपण ...इसरो की एक और ऐतिहासिक सफलता...!

सम-सामयिक : एसएसएलवी-डी३ का सफल प्रक्षेपण …इसरो की एक और ऐतिहासिक सफलता…!

विजय कपूर

आजादी की ७८वीं वर्षगांठ के ठीक अगले दिन यानी १६ अगस्त २०२४ को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो, ने भारतीयों को जश्न मनाने का हमेशा की तरह एक और ऐतिहासिक मौका तब दिया, जब सुबह ९ बजकर १७ मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरि कोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो ने बहुप्रतीक्षित एसएसएलवी-डी३ को सफलतापूर्वक लांच कर दिया। इस ऐतिहासिक सफलता के कुछ ही मिनटों बाद इसरो के चीफ एस. सोमनाथ ने कहा, ‘रॉकेट ने अंतरिक्ष यान को योजना के मुताबिक सटीक कक्षा में स्थापित कर दिया है। मुझे लगता है कि उसकी स्थिति में कोई डाइवर्जन नहीं है।’ इस तरह इसरो प्रमुख ने कहा कि एसएसएलवी की प्रक्रिया पूरी हो गई। एसएसएलवी का मतलब स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल और डी३ का मतलब है- तीसरी डिमांस्ट्रेशन फ्लाइट। इस रॉकेट का इस्तेमाल करके इसरो, मिनी, माइक्रो और नैनो सैटेलाइट की लांचिंग मौजूदा लागत से बहुत कम में कर सकेगा। इसरो के पास पहले से जीएसएलवी और पीएसएलवी जैसे सैटेलाइट लांचर थे, लेकिन इन रॉकेट लांचरों की बहुत ज्यादा कीमत आती थी, जिसके कारण छोटे और बेहद छोटे सैटेलाइट लांच करना इन रॉकेट लांचरों के जरिए बेहद घाटे का सौदा था। कहना नहीं होगा कि आज की तारीख में अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना सिर्फ राष्ट्रीय गौरव तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अच्छा खासा बाजार भी है। जो साल २०२२ तक ४९,००० करोड़ रुपए से भी ज्यादा का था और माना जा रहा है कि अगले साल के अंत तक यह सैटेलाइट लांचिंग का बाजार बढ़कर डेढ़ लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का हो जाएगा।
चूंकि इस बड़े बाजार पर कब्जा करने के लिए पहले से ही विश्व बाजार में एलन मस्क की स्पेस एक्स जैसी हैवी वेट कंपनी मौजूद है, जो समूचे बाजार पर कुंडली मारना चाहती है। इसके लिए जरूरी था कि इसरो भी इस बाजार में अपनी जरूरी भागीदारी पाने के लिए कम लागत का कोई रॉकेट लांचर विकसित करे। एसएसएलवी-डी३ इसी शृंखला का लागत के लिहाज से किफायती रॉकेट लांचर है और यह इसकी तीसरी और आखिरी टेस्टिंग फ्लाइट थी, जिसमें यह इस बार दो महत्वपूर्ण सैटेलाइट भी ले गया है। इस लांचिंग के बाद अब एसएसएलवी को पूरी तरह से ऑपरेशनल रॉकेट का दर्जा मिल जाएगा। इसे जल्द ही इसरो के नए रॉकेट लांचर के रूप में शामिल कर लिया जाएगा। एसएसएलवी शृंखला की पहली टेस्ट लांचिंग ७ अगस्त २०२२ को हुई थी, दूसरी १० फरवरी २०२३ को संपन्न हुई और इसमें तीन सैटेलाइट ईओएस-७, जानुस वन और आजादी सैट-२ भेजे गए थे। जबकि इस तीसरी लांचिंग में ईओएस-८ अर्थ ऑर्ब्जेशन सैटेलाइट भेजा गया है, जो हमें आपदाओं के बारे में अधिक से अधिक पूर्व सूचनाएं देगा।
इसरो ने तय समय के मुताबिक शुक्रवार १६ अगस्त को सुबह ९ बजकर १७ मिनट में सतीश धवन सेंटर से इस रॉकेट की सफल लांचिंग की, जिसमें ईओएस-८ सैटेलाइट के अलावा एक छोटा सैटेलाइट एसआर-०, डेमोसैट भी छोड़ा गया। दोनो ही सैटेलाइट धरती से ४७५ किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गोलाकार ऑर्बिट में स्थापित कर दिए गए हैं। एसएसएलवी-डी३ रॉकेट की तीसरी डिमोनस्ट्रेशन फ्लाइट के सफल रहने के बाद इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ के चेहरे पर संतुष्टि नजर आई और उन्होंने कहा कि जल्द ही हम इस रॉकेट की टेक्निकल जानकारी लांचिंग इंडस्ट्री के साथ साझा करेंगे, जिसका मतलब साफ है कि इसरो अपने इस बहुउद्देशीय लांचर व्हीकल के जरिए एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स के साथ प्रतिस्पर्धा करने और सफल रहने को लेकर आश्वस्त हैं। गौरतलब है कि अगर भारत के एसएसएलवी रॉकेट की लागत २५ से ३० करोड़ रुपए आती है तो यह पीएसएलवी के मुकाबले एक चौथाई की लागत से भी कम है, क्योंकि पीएसएलवी की लागत न्यूनतम १३० से २०० करोड़ रुपए के बीच आती है। ऐसे में ३० करोड़ की लागत वाला एसएसएलवी सैटेलाइट लांचिंग बाजार के लिए बेहद प्रतिस्पर्धी लांचर साबित होगा। इसकी लंबाई ३४ मीटर है, व्यास २ मीटर है, इसका वजन १२० टन है और यह १० से ५०० किलो के पेलोड्स को ५०० किलोमीटर तक ही ऊंचाई पर आसानी से पहुंचा सकता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि एसएसएलवी को सिर्फ ७२ घंटे में तैयार किया जा सकता है और इसे श्रीहरि कोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लांच पैड एक से स्थायी रूप से लांच किया जाता है। अगर प्रतिस्पर्धा के स्तर पर एलन मस्क की कंपनी, स्पेस एक्स की लांचिंग क्षमता को हैवी लोड यानी बड़े सैटेलाइट के स्तर पर देखें तो इस समय पांच लाख रुपए प्रति किलोग्राम की दर से दुनिया में सबसे सस्ती लांचिंग कर रहा है, लेकिन स्मॉल और नैनो सैटेलाइट लांच करने के मामले में एलन मस्क शायद ही इसरो के इस किफायती सैटेलाइट लांचर का मुकाबला कर सकें। इस समय दुनिया में हैवी सैटेलाइट से कई गुना ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बड़े वैश्विक कारोबारी संगठनों, आदि के निजी सैटेलाइट हैं जो कि स्मॉल और नैनो वैâटेगिरी में आते हैं, इनकी भरमार है और जिस तरह से संचार क्षेत्र की टेक्नोलॉजी ने सभी क्षेत्रों की टेक्नोलॉजी में क्रांतिकारी बदलाव कर दिया है, उसके कारण सिर्फ कोई देश ही नहीं बल्कि हजारों बहुराष्ट्रीय कंपनियां और कारोबारी संगठन अपना निजी सैटेलाइट अंतरिक्ष में लांच कराना चाहते हैं, ताकि वे अपने कारोबार से असीमित वैश्विक विस्तार दे सकें। यही वजह है कि जिस लांचिंग बाजार का अनुमान साल २०२५ के लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपए के आस-पास आंका गया है, वह इससे कहीं ज्यादा बड़ा हो सकता है इसलिए इसरो की यह सफलता महज राष्ट्रीय गौरवभर नहीं है बल्कि यह कारोबारी लिहाज से भी ऐतिहासिक है।
हिंदुस्थान ने भी लांचिंग के इस तेजी से उभर रहे विश्व बाजार में अपनी दमदार उपस्थिति के लिए इस क्षेत्र में काफी रिफॉर्म किए हैं। ये इन सुधारों का ही नतीजा है कि आज हिंदुस्थान में अंतरिक्ष के क्षेत्र में करीब डेढ़ सौ स्टार्टअप काम कर रहे हैं और इनमें होने वाले निवेश में भी हर नए साल तीन गुना ज्यादा निवेश बढ़ रहा है। भारत जैसे देश के लिए यह सब इसलिए एक परीकथा जैसा लगता है, क्योंकि १९६३ में जब हमने अपना पहला रॉकेट लांच किया था तो दुनिया ने हमारा जमकर मजाक उड़ाया था। यह मजाक उड़ाया जाना स्वभाविक था, क्योंकि हमारे पास तब तक रॉकेट को लांच पैड तक ले जाने के लिए उपयुक्त वाहन तक नहीं था और हमने एक साइकिल के वैâरियर पर रॉकेट को रखकर लांच पैड तक ले गए थे, लेकिन अपनी खिल्ली उड़ाने वालों की परवाह किए बिना हमने इस क्षेत्र में इतना मजबूत काम किया है कि आज नासा और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर अगर कोई अंतरिक्ष एजेंसी है तो वह भारत की इसरो ही है।
आज नासा की तरह ही इसरो के साथ भी सैकड़ों पंजीकृत स्टार्टअप भागीदारी करने के लिए लालायित हैं। यह इसलिए भी स्वभाविक है, क्योंकि साल २०२२ में जहां वैश्विक सैटेलाइट लांचिंग का बाजार ५० हजार करोड़ रुपए के आस-पास था, वहीं अगले एक दशक में इसके बढ़कर कई लाख करोड़ तक होने जा रहा है और अंतरिक्ष बाजार के जानकारों का मानना है कि बहुत ही जल्द ऐसी अनेक कारोबारी गतिविधियां अंतरिक्ष से संबंधित उभरकर आने वाली हैं, जिन गतिविधियों के बारे में पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई। कहने का मतलब यह है कि अंतरिक्ष तेजी से उभरता विज्ञान अनुसंधान का क्षेत्र ही नहीं है यह वैश्विक कारोबार का भी एक बड़ा बाजार है, जहां प्रतिस्पर्धी होना गौरव ही नहीं फायदे की बात भी है।

(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)

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