मुख्यपृष्ठस्तंभसम-सामयिक : हरियाणा का मतदान, क्या गुल खिलाएगा साइलेंट वोटर?

सम-सामयिक : हरियाणा का मतदान, क्या गुल खिलाएगा साइलेंट वोटर?

विजय कपूर

लोकसभा चुनाव २०२४ के नतीजे आने के बाद से ही लगातार हरियाणा विधानसभा चुनावों को लेकर जो बंपर चर्चा होती रही है, आज यानी ५ अक्टूबर २०२४ को एक साथ प्रदेश की सभी ९० विधानसभा सीटों पर मतदान के बाद यह चर्चा ८ अक्टूबर २०२४ को आनेवाले नतीजों तक के लिए थम जाएगी, क्योंकि सारे अनुमान ईवीएम में बंद हो चुके होंगे। कई बार मतदान से काफी पहले किसी पार्टी के पक्ष में जो माहौल बन जाता है, वह मतदान के दिन तक आते- आते थकान और ऊब का शिकार हो जाता है। पूरी तरह से तो नहीं, पर कुछ यह लक्षण हरियाणा में भी दिख रहे हैं। हालांकि, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अनुमानों के जितने पैमाने हो सकते हैं, उन सभी में कांग्रेस जीतती दिख रही है। उम्मीद है कि ९० में से ४० से लेकर ५० सीटें तक कांग्रेस के खाते में जाएंगी, जबकि भाजपा के खाते में जहां एक महीने पहले १२ से १५ सीटें आ रही थीं। इनेलो और बसपा का गठबंधन १ से ४ सीटों तक के और निर्दलीय ५ से १० सीटों तक में जीतते दिख रहे हैं।
अगर कहा जाए कि अनुमानों का ये बिल्कुल ताजे आंकड़े पिछले एक हफ्ते में बने माहौल का नतीजा है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। डेढ़ से दो महीने पहले तक कांग्रेस को ६५ से ७० सीटें तक मिलती दिख रही थीं और दूर-दूर तक उसका कहीं कोई प्रतिद्वंद्वी नजर नहीं आ रहा था।
बहरहाल, ५ अक्टूबर २०२४ को सुबह ११ बजे तक वोटरों का शुरुआती मूड तय करेगा कि अंतत: हरियाणा की सत्ता किस करवट बैठती है, क्योंकि पिछले दो-ढाई महीनों से जिस तरह दिन-रात अंतिम मुद्दों पर चर्चा हुई है, आम वोटर उस चर्चा को सुन-सुनकर लगता है कि बोर हो चुका है। कहीं उसके बोर होने की यह प्रतिक्रिया अप्रत्याशित न हो, इसका डर पैदा हो गया है। बहरहाल, अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि क्या होगा? सिवाय इसके कि माहौल और अनुमानों के सभी पैमानों पर अभी भी कांग्रेस सबसे आगे है, उसके तीन बहुचर्चित मुद्दे, किसान, जवान और पहलवान अभी भी सुने जाते हैं और उनके विरोध में बेशर्मी के तर्क देने से कोई बचता है। फिर भी आखिरकार वोटर भी एक आम इंसान है, जो लगातार एक ही बात सुनकर कहीं ऊब में उसके विरोध में न खड़ा हो जाए। यही एक चिंता है, जो कांग्रेस को सता रही है।
इस आशंका का कारण मतदान के पहले ७२ घंटों में हरियाणा की विभिन्न जातियों के मतदाताओं के रूझानों का अनुमान भी है। मीडिया के जानकारों और माहौल को आंकड़ों के अनुमानों में बदलने वाले विशेषज्ञों की मानें तो इस समय हरियाणा के कई समुदायों के बीच भाजपा और कांग्रेस को लेकर कांटे की टक्कर हो गई है, जबकि पहले कांग्रेस की विभिन्न समुदायों के बीच एक-तरफा पकड़ दिख रही थी, जैसे जाट समुदाय में मतदान के ७२ घंटे पहले जो रूझान देखने को मिला, उसमें करीब २८ फीसदी जाट मतदाता कांग्रेस के पक्ष में दिखे, वहीं १६ फीसदी जाट भाजपा के साथ खड़े दिख रहे थे, जबकि अभी दो महीने पहले तक यह आंकड़ा ३० और ७ था। ओबीसी मतदाताओं के बीच तो लगभग नेक टू नेक फाइट होती लग रही है। ब्राह्मण वैश्य और पंजाबियों के रूख में कुछ खास बदलावा नजर नहीं आ रहा है। दलित समुदायों में दोनों ही पार्टियां १७-१७ फीसदी से टक्कर दे रही हैं, तो जाटों और मुस्लिमों में कांग्रेस क्रमश: भाजपा से २ के मुकाबले ५ और ० के मुकाबले ४ फीसदी से बढ़त पर है।
अगर पिछले दो चुनावों के आंकड़ों को देखें तो जहां २०१९ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ३१ और भाजपा को ४० सीटें मिली थीं, वहीं २०२४ के लोकसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों को १० में से ५-५ लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि, २०२४ के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले १५ फीसदी मत पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा मिले थे, लेकिन इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को ४३.६७ फीसदी वोट मिले थे, वहीं पिछले लोकसभा चुनावों के मुकाबले करीब १२ फीसदी मतों का नुकसान झेलते हुए भी भाजपा ने कांग्रेस से करीब ४ फीसदी ज्यादा मत पाते हुए कुल ४६.११ फीसदी मत ज्यादा हासिल किए थे, लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर, भाजपा से करीब ४ फीसदी ज्यादा मत हासिल किए थे। जहां तक २०१९ में लोकप्रिय मतों का सवाल था, तो भाजपा को ३६.४९ फीसदी तो कांग्रेस को २८.०८ फीसदी मत मिले थे, लेकिन २०१९ में कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही मतों में इजाफा हुआ था। भाजपा को जहां पिछले चुनाव के मुकाबले ३.४० फीसदी ज्यादा मत मिले थे, वहीं कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले ७.५५ फीसदी ज्यादा मत मिले थे, लेकिन सीटों के मामले में भाजपा की सीटें ४० थीं, तो कांग्रेस को सिर्फ ३१ सीटों से संतोष करना पड़ा था।
मौजूदा विधानसभा चुनाव के नजीजों को तय करने में अहम भूमिा १२-१४ फीसदी साइलेंट वोटरों की है। जब विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार की शुरुआत हुई थी, उस समय तक साइलेंट वोटर की संख्या महज ५ से ७ फीसदी तक ही थी, लेकिन जिस तरह से दोनों मुख्य पार्टियों में टिकट बंटवारे को लेकर तनाव उभरकर सामने आया, उससे स्पष्ट रूप से कुछ तय न कर पाने वाला साइलेंट वोटर अचानक चुनाव के अंतिम समय के आने तक पहले के मुकाबले करीब दो गुना हो चुका है। अब यही मतदाता अंतिम समय पर जिसकी तरफ ज्यादा चला जाएगा, वही ताकतवर बनकर उभर सकता है। कुल मिलाकर, हरियाणा विधानसभा चुनावों में अंतिम समय तक आते-आते साइलेंट वोटर सबसे महत्वपूर्ण हो गया है।
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)

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