वीना गौतम
मेडिकल पाठ्यक्रम में प्रवेश की राष्ट्रीय पात्रता सह-प्रवेश परीक्षा (नीट-यूजी) २०२४ के ४ जून २०२४ को जारी नतीजों को लेकर पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है। देश के हर कोने से इस प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए छात्र खुद के साथ धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए इसे रद्द करके एसआईटी जांच की मांग कर रहे हैं। हैरानी की बात तो ये है कि देश की इस सबसे महत्वपूर्ण परीक्षाओं में से एक का रिजल्ट तो ४ जून २०२४ को आया है, लेकिन छात्र गड़बड़ियों की बात १ जून २०२४ से ही कह रहे हैं और इसके विरुद्ध आंदोलन भी कर रहे हैं। अलग-अलग राज्यों में २० हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने इस संबंध में अदालत में याचिकाएं दायर कर रखी थीं, जिसमें इस परीक्षा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायत की गई थी और जब ४ जून को रिजल्ट आ गया तथा एक एग्जाम सेंटर के ६७ छात्रों को पूरे ७२० नंबर मिलने की बात सामने आई, तब से तो यह आंदोलन और भी तेज हो गया है। लेकिन गुजरे १० जून २०२४ को सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में लगाई गई याचिका पर ११ जून २०२४ को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नीट-यूजी की काउंसलिंग पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने माना है कि नीट परीक्षा की पवित्रता प्रभावित हुई है और इसका जवाब एनटीए यानी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट पर शिवांगी मिश्रा सहित ९ अन्य छात्रों ने नीट के रिजल्ट की घोषणा के तीन दिन पहले जो याचिका दायर की थी, उसमें आरोप लगाया गया था कि बिहार और राजस्थान के एग्जाम सेंटर पर गलत क्वेश्चन पेपर बंटने के चलते हुई गड़बड़ी की एसआईटी से जांच कराई जाए और परीक्षा दोबारा कराई जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह की वैकेशनल बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए उम्मीदवारों की हो रही काउंसलिंग को रोकने से इंकार करते हुए इस मामले में अगली सुनवाई ८ जुलाई २०२४ को करने का निर्णय लिया है। कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के इस पैâसले पर छात्रों को निराशा हुई है, क्योंकि इस पैâसले का भविष्य खुद सुप्रीम कोर्ट ने पहले से तय कर दिया है।
क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में यह तथ्य अंतर्निहित है कि इस परीक्षा के घोषित नतीजों पर अब कोई परिवर्तन संभव नहीं होगा। हां, आगे से ऐसा न हो और ऐसा क्यों हुआ, इस पर एनटीए को जवाब देना होगा? ऐसे में एनटीए कुछ भी जवाब दे दे, चाहे तो हाथ जोड़कर माफी ही मांग ले, लेकिन उन छात्रों का इससे भला नहीं होने वाला, जिन्हें लगता है कि परीक्षा में हुई गड़बड़ी के कारण उनका भविष्य चौपट हो गया। हालांकि, इस परीक्षा को लेकर विरोध करने वाले सभी छात्र वो नहीं हैं, जो इस परीक्षा में फेल हो गए हों। क्योंकि परीक्षा के विरुद्ध हंगामा रिजल्ट आने के कई दिन पहले से ही हो रहा था और याचिका भी काफी पहले से ही दायर हो गई थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में दायर याचिकाओ में एक नहीं, बल्कि कई शिकायतें की गई थीं, जिनमें एक बड़ी शिकायत ५ मई २०२४ को आयोजित इस एग्जाम के पेपर लीक होने की बात भी थी। सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि दिल्ली से बाहर खासकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी नीट-यूजी २०२४ का परीक्षा परिणाम आने के पहले ही जबरदस्त हंगामा हो रहा था। यहां दायर कई दर्जन याचिकाएं स्टूडेंट वेलफेयर के लिए काम करने वाले अब्दुला मोहम्मद फैज और डॉ. शेख रोशन ने दायर की थी।
इन याचिकाओं में विशेष तौर पर यह बात कही गई थी कि रिजल्ट में ग्रेस मार्क्स देना एनटीए का मनमानी फैसला है। छात्रों को ७१८ या ७१९ मार्क्स देने का कोई मैथमेटिकल आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी एनटीए को नोटिस तो जारी की है और उससे जवाब भी मांगा है कि आखिर देश की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा एजेंसी की विश्वसनीयता क्यों भंग हुई? लेकिन असली बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से एडमिशन के लिए काउंसलिंग जारी रखने का फैसला लिया है, उससे यह साफ संदेश गया है कि उसकी इस कार्रवाई से इस परीक्षा के नतीजों पर कोई बदलाव नहीं होनेवाला। एक तरह से देखा जए तो यह नीट-यूजी २०२४ की परीक्षा देने वाले और इस परीक्षा पर गड़बड़ियों का आरोप लगाने वाले छात्रों की व्यावहारिक तौर पर हार ही है। क्योंकि अगर सुप्रीम कोर्ट ने बाद में एनटीए को चाहे जितनी कड़ी फटकार लगा दे या कुछ भी कह दे या नए नियम ही क्यों न बना दे और एनटीए गड़बड़ियों को स्वीकार करके माफी मांग ले तो भी आखिर उसका फायदा क्या होगा?
इसलिए अच्छा होता अगर देश के २४ लाख छात्रों के भविष्य की संवेदनशीलता समझी जाती, जो इस महत्वपूर्ण परीक्षा में बैठे थे। इससे परीक्षा में गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले छात्रों को भरोसा होता कि उनके साथ इंसाफ होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ सिर्फ सांत्वना के तौर पर देश की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा एजेंसी के विरुद्ध महज नोटिस जारी की गई है। जबकि गड़बड़ी का आरोप लगा रहे छात्र ऐसी-ऐसी बात कह रहे हैं, जो पहली नजर में ही गड़बड़ी नहीं, बल्कि महागड़बड़ी लग रही है। मसलन छात्रों का कहना है कि एक ही एग्जाम सेंटर से ६७ छात्र ऑल इंडिया रैंक कैसे हासिल कर सकते हैं, उसमें भी सभी के पूरे ७२० अंक कैसे मिल सकते हैं?
दायर की गई याचिका में कहा गया है कि जब एनटीए की गाइडलाइन में ग्रेस मार्क्स देने की कोई बात ही नहीं थी, तो फिर मनमानी तरीके से ग्रेस मार्क्स क्यों दिए गए हैं? हालांकि, आरोप जिन-जिन गड़बड़ियों को लेकर लगाए गए हैं, एनटीए ने करीब-करीब सभी के जवाब दिए हैं। मसलन इस आरोप पर कि आखिरकार ६७ छात्रों को एआईआर-१ कैसे मिली, पर एनटीए का कहना है कि जिन ६७ स्टूडेंट्स को सर्वोच्च मार्क्स मिले हैं, उन्हें एआईआर-१ रैंक नहीं मिली और उन्हें टॉपर भी नहीं माना जाएगा। वास्तव में उसके मुताबिक, ६७ में से ४४ स्टूडेंट्स को आंसर की में हुए बदलाव की वजह से बोनस मार्क्स मिले हैं, जिसकी वजह से इन छात्रों ने पर्पेâक्ट स्कोर किए हैं। एनटीए ने इस सवाल का भी जवाब दिया है कि आखिर ४४ स्टूडेंट्स को ग्रेस मार्क्स किस आधार पर दिए गए हैं। उसके मुताबिक, दरअसल एग्जाम में केमिस्ट्री सेक्शन में एटम से रिलेटेड एक सवाल पूछा गया था, जिसका आंसर की में ऑप्शन १ सही था। लेकिन एनसीईआरटी किताबों के हिसाब से ऑप्शन ३ सही था। इसलिए जिन छात्रों ने ऑप्शन ३ मार्क किया था, उन्हें दरसअल बोनस मार्क्स दिए गए। इस तरह देखा जाए तो एनटीए नकारती है कि किसी छात्र को मनमाने तरीके से ग्रेस अंक देकर उनकी रैंक १ नंबर की गई है।
लेकिन कुल मिलाकर यह गड़बड़ी का आरोप अब महज एग्जाम पर हुई गड़बड़ी तक नहीं सीमित, बल्कि इसका अच्छा खासा राजनीतिकरण हो गया है। कांग्रेस के राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा है कि यह शिक्षा माफियों ने किया है और हम सत्ता में आते तो ऐसा नहीं होने देते। साथ ही जब भी आएंगे ऐसा नहीं होने देंगे। कुल मिलाकर बात भरोसे की है, लेकिन जिन-जिन के पास इस भरोसे को बनाए रखने की अथॉरिटी है, वो इस पर ध्यान देने की बजाय अपनी बात मनवाकर अपनी ताकत का इजहार कर रहे हैं। यह अच्छी बात नहीं है। अगर वाकई सुप्रीम कोर्ट की नोटिस के बाद नीट की जांच होती है और वह ‘क्लीन’ नहीं साबित होती, तो उन छात्रों के भविष्य का क्या होगा, जिनकी अनदेखी करके सुप्रीम कोर्ट ने काउंसलिंग पर रोक नहीं लगाई?
(लेखिका विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में कार्यकारी संपादक हैं)