अभिषेक कुमार पाठक / मुंबई
मुंबई की लोकल ट्रेन सेवा, जिसे शहर की लाइफलाइन कहा जाता है, उसके विस्तार और सुधार के लिए कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं शुरू की गई हैं। हालांकि, इन परियोजनाओं की धीमी प्रगति और विभिन्न समस्याओं ने शहरवासियों की उम्मीदों को ठेस पहुंचाई है।
पनवेल-कर्जत खंड
पनवेल-कर्जत खंड, जो मुंबई और उसके बाहरी इलाकों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था, अभी तक केवल ५६ प्रतिशत तक ही पूरा हो सका है। यह प्रगति एक सकारात्मक संकेत हो सकती है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आधे से अधिक काम अभी भी बाकी हैं। इस धीमी प्रगति ने उन यात्रियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, जो इस खंड के जल्द से जल्द पूरा होने की उम्मीद कर रहे थे।
ऐरोली-कलवा खंड की स्थिति और भी चिंताजनक है। इस खंड का ४५ प्रतिशत काम ही पूरा हुआ है और बाकी काम रुक गया है। मुख्य कारण पुनर्वास और पुनर्स्थापन के मुद्दों को लेकर स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों का विरोध है। इस विरोध ने न केवल परियोजना की प्रगति को बाधित किया है, बल्कि सरकार और रेलवे प्रशासन की योजनाओं पर भी सवाल खड़े किए हैं।
करना पड़ेगा लंबा इंतजार
इन परियोजनाओं की धीमी गति और रुकावटों ने यात्रियों के लिए समस्याएं खड़ी कर दी हैं। मुंबई जैसे महानगर में जहां हर दिन लाखों लोग लोकल ट्रेनों पर निर्भर होते हैं, वहां इन परियोजनाओं की देरी से यातायात व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। मुंबई के दूर-दराज वाले स्टेशनों की स्थिति में सुधार की उम्मीदें अब धूमिल होती जा रही हैं। इन परियोजनाओं की समय पर पूर्णता और प्रभावी कार्यान्वयन के बिना, मुंबई की लोकल ट्रेन सेवा की समस्याएं बनी रहेंगी और यात्री बेहतर सेवा की प्रतीक्षा में ही रहेंगे। सरकार और संबंधित विभागों को इन परियोजनाओं की गति बढ़ाने और संबंधित मुद्दों का समाधान करने की दिशा में तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि मुंबई की लोकल ट्रेन सेवा को बेहतर बनाया जाए और यात्रियों को राहत मिले।