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दिल्ली डिस्पैच : कांच के पिंजरे में बंद प्रेस और राहुल की आवाज!

एम.एम.सिंह

राहुल गांधी आजकल बोलते हैं खूब बोलते ह बेधड़क। फालतू और बेवजह नहीं, मुद्दों को उठाते हैं बजट सेशन में उन्होंने आम आदमी की बात की, लेकिन उन्होंने एक मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और वह मुद्दा था संसद में कांच के पिंजरे में बंद प्रेस का।
दरअसल, सोमवार की सुबह १० बजे जब पत्रकार नए संसद भवन पहुंचे तो उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि सुरक्षा अधिकारियों द्वारा उन्हें मकर द्वार पर जाने से रोक दिया जाएगा, जहां पर संसद में प्रवेश करते और बाहर निकलते समय सांसद मीडिया से बात करते हैं। पत्रकारों को परिसर के भीतर एक कांच के पिंजरेनुमा घेर यानी ‘मीडिया कंटेनर’ में रहने और केवल १० कदम की दूरी के भीतर ही बातचीत करने के निर्देश दिए गए। इन सबसे खफा पत्रकारों ने विरोध दर्ज करवाने के लिए किसी भी सांसद से बात न करने का पैâसला किया। इस मुद्दे पर अखिलेश यादव, प्रियंका चतुर्वेदी, डेरेक ओ-ब्रायन और मनोज झा जैसे विपक्षी नेता भी पत्रकारों से कंटेनर में मिलने गए थे।
उधर संसद बजट पर अपने ४९ मिनट के भाषण के अंत में राहुल गांधी ने स्पीकर से कहा, ‘आपने मीडियाकर्मियों को पिंजरे में बंद कर दिया है। उन्हें बाहर निकालिए।’ राहुल के मीडियाकर्मियों को बेचारा कहते ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘बेचारे नहीं हैं वो। उनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल न करें।’ गांधी ने जवाब दिया, ‘नॉन-बेचारे मीडिया वालों ने मुझसे हाथ जोड़कर कहा है कि आप उन्हें बाहर निकाल दें. वे बहुत परेशान हैं।’ बिरला ने उनसे कहा कि वे उनके चेंबर में आकर उनसे बात करें। आखिर में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक पत्र लिखा गया। इसके बाद स्पीकर ने मुलाकात की, प्रतिबंध हटाए और यहां तक ​​कि कोविड के बाद बंद किए गए वार्षिक पास की व्यवस्था को फिर से शुरू करने की संभावना पर विचार करने का वादा भी किया।
मीडियाकर्मियों के एक तबके का मानना है कि राहुल गांधी के हस्तक्षेप के कारण बिरला ने इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई की। एक मीडियाकर्मी का कहना है कि राहुल गांधी ने इस मुद्दे को इतने बड़े पैमाने पर उठाया कि बिरला को इसे हल करने में बमुश्किल चार घंटे लगे, जबकि पत्रकार संसद में अपनी प्रतिबंधित पहुंच के मुद्दे को कई बार उठा चुके हैं, प्रेस संस्थाओं ने भी हस्तक्षेप किया है, लेकिन उन्हें इससे पहले तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। गौरतलब है कि पिछले चार सालों से कई पत्रकार संगठन और विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि मीडियाकर्मियों को संसदीय कार्यवाही को कवर करने की अनुमति दी जाए। महामारी के दौरान सदन में मीडिया की पहुंच पर लगाए गए प्रतिबंध अभी भी पूरी तरह से हटाए नहीं गए हैं। वर्तमान में स्थायी वार्षिक पास के लिए पात्र पत्रकारों को भी केवल मौसमी और अस्थायी पास दिए जाते हैं। पत्रकारों का आरोप है कि ये सीमित पास भी ‘मनमाने तरीके’ से दिए जाते हैं। इस मामले में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा ओम बिड़ला को लिखा गया पत्र काबिले गौर है। वे बिरला को बताते हैं, ‘पत्रकारों तक निर्बाध पहुंच’ संविधान सभा तक जाती है: जब अन्य लोकतंत्र कोविड के बाद वापस आ गए, तो भारत क्यों रुका हुआ है? लोकतंत्र को तटस्थ चश्मदीदों की जरूरत है।

 

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