इस लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की पांचों सीटों पर विजय के बावजूद भारतीय जनता पार्टी की नींद गायब है, क्योंकि भले ही भाजपा ने पांचों सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन कुल ७० में से १० विधानसभा सीटें ऐसी भी रहीं, जहां भाजपा प्रत्याशी को मुख्य प्रतिद्वंद्वी की तुलना में कम वोट मिले हैं। इनमें दो विधानसभा सीटों ऐसी हैं, जहां वर्तमान में भाजपा के विधायक हैं अथवा निर्दलीय विधायक ने भाजपा प्रत्याशी को अपना समर्थन दिया हुआ था। अब परेशान भाजपा अब इन सीटों पर कम मत मिलने के कारणों पर ‘मंथन’ करेगी। साथ ही संबंधित पदाधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय की जाएगी। हालांकि, प्रदेश की ७० में से ६० विधानसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले अधिक मत प्राप्त हुए हैं। बावजूद इसके १० विधानसभा सीटों पर पिछड़ने को भी भाजपा गंभीरता से ले रही है। इन सीटों में छह सीटें हरिद्वार और तीन सीटें टिहरी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र की हैं, जबकि एक सीट नैनीताल-ऊधम सिंह नगर की है। हरिद्वार में जिन छह सीटों पर भाजपा पीछे रही, उनमें से चार सीटें कांग्रेस और दो सीटें बसपा के पास हैं।
गौरतलब है कि टिहरी गढ़वाल की तीन सीटों में से एक भाजपा, एक निर्दल और एक कांग्रेस के पास है। टिहरी गढ़वाल की इन तीन विधानसभा सीटों पर तीसरे स्थान पर रहने वाले निर्दल प्रत्याशी ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराते हुए भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशी को पीछे छोड़ा। नैनीताल-ऊधम सिंह नगर की जसपुर सीट पर कांग्रेस के विधायक हैं। यही भाजपा के लिए बड़ी चिंता का विषय भी है। इसे देखते हुए भाजपा इन सीटों पर परिणाम की समीक्षा और मंथन करने जा रही है। बात सिर्फ समीक्षा और मंथन तक की होती तो राज्य के भाजपाइयों और पदाधिकारियों की जान सांसत में नहीं अटकी होती, लेकिन खबर है कि इस बाबत उनकी जवाबदेही भी तय की जाएगी और बहुत कुछ भी हो सकता है!