‘फोन पे’-‘जी पे’ हो सकता है महंगा
पेटीएम पर आरबीआई की कड़ाई के बाद यूपीआई में ‘फोन पे’ व ‘जी पे’ का एकाधिकार हो गया है। मगर अब आनेवाले समय में डिजिटल पेमेंट क्रिटिकल दौर से गुजर सकता है। दरअसल, बाजार में इस बात की चर्चा गर्म है कि ये दोनों कंपनियां ग्राहकों से ट्रांजेक्शन पर लेवी लगाने की मांग कर रही हैं। जानकारों का कहना है कि आनेवाले दिनों में अगर यूपीआई ट्रांजेक्शन पर लेवी लग जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘फोन पे’ और ‘जी पे’ के पास यूपीए के ८० फीसदी बाजार पर कब्जा है।
हाल ही में इन दोनों कंपनियों की ओर से व्यापारिक लेनदेन पर लेवी लगाने की चर्चा फिर से शुरू कर दी गई है। हालांकि, सरकार ने कहा है कि यूपीआई पर शुल्क लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। मगर ध्यान देने की बात है कि भले ही सरकार ने ऐसा कहा है पर प्रस्ताव आ भी तो सकता है। पिछले साल, आरबीआई के चर्चा पत्र में यूपीआई भुगतान पर एक स्तरीय संरचना शुल्क का प्रस्ताव होने के बाद, वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि यूपीआई पर शुल्क लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं था। पिछले महीने, कुछ फिनटेक कंपनियों ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण यूपीआई में कमाई की कमी के बारे में बताया था। उन्होंने हाल ही में एनपीसीआई के साथ हुई वर्चुअल मीटिंग में भी इसी तरह के मुद्दे उठाए थे। वित्त मंत्री के साथ बैठक में शून्य एमडीआर (मर्चेंट डिस्काउंट रेट) के बिजनेस मॉडल को नुकसान पहुंचाने के मामले में चर्चा हुई थी। बैठक में भाग लेने वाले एक फिनटेक कार्यकारी ने कहा, ‘हममें से कुछ लोगों ने प्रीपेड भुगतान के माध्यम से किए गए यूपीआई लेनदेन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की। एक अन्य फिनटेक कार्यकारी ने कहा, ‘एनपीसीआई के साथ इसका उल्लेख किया गया है, हालांकि कोई निर्णायक नतीजा नहीं निकला है।’ कुछ जानकारों का कहना है कि यूपीआई मर्चेंट लेनदेन पर शुल्क लगाने से छोटे खिलाड़ियों को इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। डिजिटल बैंकिंग सलाहकार पारिजात गर्ग के अनुसार, ग्राहक अधिग्रहण को नियंत्रित करें। कई यूपीआई खिलाड़ी नकदी बर्बाद कर रहे हैं। यदि कोई प्रोत्साहन नहीं है, तो वे ग्राहक प्राप्त करने में निवेश क्यों करेंगे?