लफ्ज हमारे जेवर होते,
इनसे होता जुबां का श्रृंगार।
मीठे बोल सजे जो भाषा में,
तल्ख अल्फाज दे जाते घाव।
शराफत अब हार रही रही है,
हंसी में तंज मार रही है।
सोशल मीडिया की रफ्तार बढ़ी,
संस्कारों को भुला रहे सभी।
शब्दों की गरिमा सब भूले,
अपमान के अंधेरे में उलझे ।
अभिव्यक्ति पर है सबका हक,
पर संयम रखना होता बेहतर ।
बोल गर अंधे हो जाएं,
अपने भी पराए हो जाएं ।
हंसी-मजाक में हद न पार,
शब्दों को मत बनाओ हथियार।
शालीनता गर संग रहे,
जुबां से खुशबू आती रहे!
-मुनीष भाटिया
ऐरो सिटी, मोहाली