बदरंग

यह मुमकिन नहीं गुलिस्तां में
हमेशा हर रंग बरकरार रहे,
कभी बारिश, कभी हवा कभी वक्त
अपनी रंजिश निकाल लेते हैं।
तितलियों के पंखों से झड़ते रंग देखें,
फिर बदरंग होते हुए
गुलों के गुच्छों को देखा।
बदरंग होती सहर तो कभी
बदरंगी शाम को देखा।
तारों से चमकती अंधेरी रात को
बदरंग हुए देखा।
बदरंग रिश्तों के किस्से तो आम हैं
बदरंग जिंदगी और मौत को देखा।
ईमाने इश्क हो जाए बदरंग
जिंदगियों को मौत के आगोश में जाते देखा।
बेरहम इंसानों की हवस में
नादान बच्चियों की जिंदगियों को
बदरंग होते देखा।
खिजा की बदरंगी से हम वाकिफ हैं
हमने फिजा को बदरंग होते देखा।
बदरंग होती हैं असलियतें
अपने ख्वाबों को मैंने बदरंग होते देखा।
-बेला विरदी

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