मुख्यपृष्ठस्तंभमैथ से ईश्वर की खोज

मैथ से ईश्वर की खोज

 

द्विजेंद्र तिवारी, मुंबई
हार्वर्ड के शोधकर्ता डॉ विली सून ने एक क्रांतिकारी दावा किया है। वैज्ञानिक एक गणितीय सूत्र की खोज की ओर बढ़ रहे हैं, जो यह साबित कर देगा कि ईश्वर का अस्तित्व है। अत्याधुनिक मैथमेटिक्स पर आधारित यह अभिनव परिकल्पना विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच की सीमाओं को पार करने का प्रयास है और ईश्वरीय अस्तित्व के अनंत प्रश्न को एक नया आयाम देगा।
डॉ सून प्रसिद्ध खगोल भौतिकीविद् और एयरोस्पेस इंजीनियर हैं। उन्होंने “फाइन-ट्यूनिंग तर्क” के आह्वान के साथ सदियों पुराने विवाद को खोल दिया है। उनका तर्क है कि ब्रह्मांड यूँ ही अपने आप नहीं चल रहा है। इसके नियम और स्थितियाँ विशेष रूप से और सटीक रूप से व्यवस्थित प्रतीत होती हैं ताकि पृथ्वी पर जीवन सुचारू रूप से चल सके। बेतरतीब ढंग से ब्रह्मांड के चलने की संभावना बिल्कुल नहीं लगती। अगर ऐसा होता तो सारे ग्रह उपग्रह आपस में टकराते रहते और पृथ्वी व कई अन्य ग्रहों पर जीवन ही न होता।
गुरुत्वाकर्षण शक्ति से लेकर पदार्थ और ऊर्जा के सटीक अनुपात तक, ब्रह्मांड पर जीवन पोषित करने के लिए सटीक रूप से ट्यून किया गया लगता है। ऐसा लगता है जैसे कोई शक्ति एक ख़ास गणितीय सूत्र से समस्त ब्रह्मांड को चला रही है।
डॉ. सून की विवादास्पद परिकल्पना एक दिलचस्प मोड़ है, जिसमें वह ये मानते हैं कि एक गणितीय समीकरण वह मुख्य तत्व हो सकता है जो ईश्वर के अस्तित्व को साबित करेगा।
डॉ सून की बातों में दम है। ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी चांद सितारे सब किसी डोर से बंधे हैं और ख़ास नियम से चल रहे हैं। ये नियम किसने बनाए? ये नियम अनादि अनंत काल से चले आ रहे हैं, तो क्या कभी ऐसा हुआ है कि नियमों में परिवर्तन या व्यवधान हुआ ? किसी धार्मिक ग्रंथ में तो ऐसा लिखा नहीं। आख़िर ये गुरुत्वाकर्षण क्या चीज़ है और यह ग्रहों उपग्रहों पर किस समीकरण से बदलती है?
पृथ्वी गोल है और हमारे पैर अगर पृथ्वी पर हैं तो हम आसमान की तरफ़ “गिरते” क्यों नहीं ? पृथ्वी पर ६० किलो वजन वाला व्यक्ति या सामान चाँद पर १० किलो का, बुध और शुक्र पर २२ किलो और वृहस्पति पर १४० किलो का कैसे और क्यों हो जाता है? जबकि बने सब एक ही “सुपरनोवा” के बाद। अंतरिक्ष में कुछ ही महीनों में स्पेस यात्री की हाइट ४-५ सेंटीमीटर कैसे बढ़ जाती है?
ऐसे अनेक अबूझ प्रश्न हैं, जिन पर कभी कोई वृहद शोध नहीं हुआ। एक वर्ग ने ईश्वर के अस्तित्व को कपोल कल्पित मानकर उसे उपेक्षित किया और चर्चा बंद कर दी। दूसरे वर्ग ने ईश्वर को आस्था और विश्वास का प्रतीक कहा और उसे सभी तर्कों से परे कहा, और चर्चा बंद कर दी। दोनों ही वर्गों ने इसकी सच्चाई और तह तक जाने के लिए शोध और तर्क का सहारा नहीं लिया।
तो क्या डॉ विली सून का शोध सफल होगा ? क्या हम जान पाएंगे कि ईश्वर कौन है और उसका अता पता क्या है?
पता नहीं, ईश्वर ही जाने।

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