आई दिवाली

ज्योत से ज्योत जगाई हमने
बडे़ ही चाह से दिवाली मनाई हमने।
नन्हें – मुन्ने हाथों से घोर तमस में
रौशनी की किरणे दिखाई हमने
बड़े ही चाह से दिवाली मनाई हमने।
रोम- रोम खुशियों से पुलकित हुए
सतयुग के जब दृश्य दिखाए मां ने
राजा राम इस दिन घर लौट आए
झूम के खुशियां मनाई सबने।
मां कौशल्या की आंखे भर – भर आईं
खुशियों के आंसू यूं बहाए सबने।
दिवाली मनाई,चार चांद लगाए
फूलों की हुई बौछार
आखिर खुशियां आ गईं
एक युग ही सही,इस मां के द्वार।
अच्छाई की आखिर हो गई जीत
बुराई की हुई अंत में हार।
जीत के जश्र जोरों से मनाए
ऐसे ही दिवाली आई।
आज भी हम दिवाली मनाते
पर बेटे न घर लौट कर आते
गांव के आंगन सूने पड़े हैं
मां नजर टिकाए घर – द्वार खड़ी है।
कब बेटा घर वापस आए
साथ अपने कुछ धन भी लाए।
घर हो रोटी, परिवार हो साथ
ये अब नहीं हैं अपने हाथ।
एक हो साथ, तो दूजा रूठे
दिवाली मनाए सब देशवासी
अब सबकी कहां औकात?
कैसे सब मनाए दिवाली
एक – एक लाल, वो भी सफारी।
नैंसी कौर, नई दिल्ली

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