सामना संवाददाता / मुंबई
कॉलेज स्तर की परीक्षाओं के नतीजों को लेकर शुक्रवार को मुंबई यूनिवर्सिटी को हाई कोर्ट ने जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि कॉलेज खुद ही प्रश्नपत्र जांचते हैं और अंक विवरण यूनिवर्सिटी को भेजते हैं, लेकिन उन अंकों के विवरण को सत्यापित करना यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने मुंबई यूनिवर्सिटी को चेतावनी दी कि छात्रों के रिजल्ट की पूरी जिम्मेदारी कॉलेज पर न डालें।
नेरुल के डॉ. डीवाई पाटील लॉ कॉलेज ने जून २०२१ में फोरेंसिक साइंस और साइबर लॉ में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षाएं आयोजित कीं, लेकिन तीन साल बाद भी रिजल्ट घोषित नहीं किया गया। सांताक्रूज में लॉ पैâकल्टी की छात्रा रेश्मा ठीकर ने कॉलेज और यूनिवर्सिटी की कुप्रबंधन की ओर ध्यान आकर्षित करने की एड. गौरेश मोगरे के माध्यम से याचिका दायर की। उनकी याचिका पर न्यायमूर्ति अतुल चांदूरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटील की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। इस दौरान छात्रा की ओर से एड. दिलीप साटले ने जोरदार दलील दी। इस पर यूनिवर्सिटी द्वारा कहा गया कि छात्र के रिजल्ट में गड़बड़ी के लिए संबंधित कॉलेज जिम्मेदार है। यूनिवर्सिटी ने दावा किया कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसके बाद खंडपीठ ने इस पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए यूनिवर्सिटी को उसकी जिम्मेदारी को लेकर कड़ी फटकार लगाई।
परीक्षा में न दिए गए विषयों के परिणाम घोषित
याचिकाकर्ता छात्रा का रिजल्ट तीन साल बाद घोषित किया गया। उसमें भी बड़ी गड़बड़ी सामने आई। छात्रा ने जिन विषयों में परीक्षा दी थी, उनके परिणाम का आता-पता ही नहीं था। छात्रा को दी गई मार्कशीट में परीक्षा में न दिए गए विषयों का रिजल्ट घोषित कर दिया गया। इस पर कोर्ट ने कॉलेज और यूनिवर्सिटी की लापरवाही पर नाराजगी जताई।
छात्रा के नुकसान का कौन जिम्मेदार?
कॉलेज यूनिवर्सिटी से संबद्ध होते हैं। हालांकि, कॉलेज परीक्षा आयोजित करते हैं, लेकिन परिणाम घोषित करना यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी है। यूनिवर्सिटी को जानकारी सत्यापित करनी चाहिए और परिणाम घोषित करना चाहिए।