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उल्हासनगर में श्वानों का आतंक : नसबंदी केंद्र बंद होने से संकट गहराया…फंड की कमी से रेबीज इंजेक्शन का अभाव

अनिल मिश्रा / उल्हासनगर

शहर में आवारा कुत्तों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। हाल ही में दो महिलाओं पर कुत्तों के हमले के बाद श्वानों के काटने की बढ़ती घटनाओं ने सभी को चौंका दिया है। मध्यवर्ती अस्पताल के सिविल सर्जन द्वारा उल्हासनगर मनपा आयुक्त को सात पत्र लिखकर रेबीज इंजेक्शन की मांग की गई, जिससे अस्पताल की आर्थिक स्थिति पर भी सवाल उठने लगे हैं।
मध्यवर्ती अस्पताल को रेबीज इंजेक्शन की भारी आवश्यकता है, लेकिन फंड की कमी के चलते इस मांग को पूरा नहीं किया जा पा रहा है। यह संकट महाराष्ट्र सरकार की स्वास्थ्य नीति की विफलता को उजागर करता है। उल्हासनगर मनपा की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है और अब श्वानों के बढ़ते आतंक ने स्वास्थ्य विभाग के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है।
मनपा प्रशासन द्वारा श्वानों की नसबंदी के लिए लाखों रुपए खर्च कर एक भव्य नसबंदी केंद्र बनाया गया था, जिसका उद्घाटन हाल ही में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने किया था। लेकिन दुर्भाग्यवश, यह केंद्र अब बंद हो चुका है, जिससे शहर में कुत्तों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो गई है। पशु रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रवण सिंह के अनुसार, यदि नसबंदी कार्यक्रम को नियमित रूप से नहीं चलाया गया तो श्वानों की आबादी पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो जाएगा।
मध्यवर्ती अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. मनोहर बनसोडे के अनुसार, वर्तमान वर्ष 2024 में अब तक 21,411 लोगों को रेबीज इंजेक्शन दिए जा चुके हैं। प्रतिदिन लगभग 135 लोग श्वानों के काटने का शिकार हो रहे हैं। इन इंजेक्शनों की लागत अधिक होने के कारण अस्पताल का बजट बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
उल्हासनगर मनपा की स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मोहिनी धर्मा ने बताया कि जल्द ही श्वानों की नसबंदी का कार्यक्रम पुनः शुरू किया जाएगा। हालांकि, इस योजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रशासन को पर्याप्त संसाधनों और फंड की आवश्यकता होगी। शहर में बढ़ते श्वानों के हमलों के कारण नागरिकों में भय का माहौल है। खासकर बच्चे और बुजुर्ग इन हमलों के शिकार हो रहे हैं। प्रशासन को जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान निकालना होगा, अन्यथा यह संकट और भी गंभीर रूप ले सकता है।

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