डोंबिवली की एक केमिकल कंपनी में हुए भयानक विस्फोट और जानमाल के नुकसान से औद्योगिक सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर सामने आ गया है। गुरुवार दोपहर डोंबिवली एमआईडीसी के फेज-२ में स्थित ‘अमुदान’ कंपनी के रिएक्टर में जोरदार विस्फोट हुआ। धमाका इतना भीषण था कि करीब ५ किलोमीटर के इलाके में झटके महसूस किए गए। बहरा कर देने वाले विस्फोट से आसमान में आग और धुएं का गुबार पैâल गया। विस्फोट और अग्नितांडव की आंच आस-पास की ११ कंपनियों तक पैâल गई; इसके अलावा, एमआईडीसी से सटे आवासीय क्षेत्र की १५ इमारतों में भी दरारें आ गर्इं। सूरज पहले से ही आसमान में आग उगल रहा था, ऐसे में रिएक्टर में हुए विस्फोट से पहले उबलते रसायन में गिरकर कई कर्मचारी जख्मी हो गए। विस्फोट के वक्त अमुदान कंपनी में करीब ५० कर्मचारी काम कर रहे थे। कुछ कर्मचारी अपनी जान बचाकर भागे; लेकिन ११ मजदूरों को बचने का मौका नहीं मिला। इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, उनकी मौत हो गई। विस्फोट और आग की चपेट में करीब १०-१२ कंपनियां भी आर्इं और वहां काम करने वाले कई कर्मचारी भी घायल हो गए। विस्फोट में घायल हुए ६३ लोगों में से कई की हालत गंभीर है। ११ लोगों की जान लेने वाले इस विस्फोट को महज एक दुर्घटना के रूप में देखने का पाप राज्य की ‘तीन तिघाड़ी’ सरकार और प्रशासन न करे। क्योंकि डोंबिवली एमआईडीसी में इस तरह के विस्फोट की यह पहली घटना नहीं है। अगर वहां की केमिकल कंपनियों में लगातार ऐसे विस्फोटों की घटनाएं होती रहती हैं तो इसे सिर्फ दुर्घटना बताकर चुप नहीं रहा जा सकता। जब तक इन दुर्घटनाओं को अंतर्ध्वंस घटनाओं की तरह देखते हुए इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती तब तक विस्फोटों का यह दौर नहीं रुकेगा। पिछले ७-८ वर्षों में डोंबिवली के एमआईडीसी में रासायनिक कंपनियों में सिलसिलेवार विस्फोट हुए हैं। आठ साल में यह ३६वां विस्फोट है और इन घटनाओं में अब तक ३५ लोगों की मौत हो चुकी है। दरअसल, केमिकल कंपनी यानी अत्यधिक ज्वलनशील मामला है। कर्मचारियों व अधिकारियों को जान जोखिम में डालकर चौबीसों घंटे काम करना पड़ता है। हमेशा जिंदगी से खिलवाड़। इसके अलावा, कम लागत पर अकुशल मैनपावर का उपयोग करके अधिक लाभ कमाने की विकृत मानसिकता अक्सर ऐसी भयानक घटनाओं को जन्म देती है। डोंबिवली विस्फोट ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कंपनियों के मालिक और औद्योगिक सुरक्षा के प्रभारी अधिकारी सोचते हैं कि कर्मचारियों की जिंदगी कौड़ियों के दाम है? केमिकल कंपनियों के लिए निर्धारित सुरक्षा नियमों का पालन कितनी कंपनियां सख्ती से करती हैं इस पर आंखों में तेल डालकर देखने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों पर है, वे अधिकारी किस हद तक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, यह भी एक अहम मुद्दा है। दूसरा सवाल यह है कि कितनी केमिकल कंपनियों के पास केमिकल कंपनियों में काम करने के लिए आवश्यक कुशल मैनपावर और सुरक्षा उपकरण हैं। इसके अलावा, मुद्दा यह है कि तमाम कर्मचारी वर्ग ऐसी कंपनियों में काम करने के खतरों के बारे में कितना प्रशिक्षित है, जहां काम करते समय एक छोटी सी मानवीय त्रुटि भी कितनी खतरनाक हो सकती है। औद्योगिक सुरक्षा के नियमों की ऐसी-तैसी कर जीवन से खिलवाड़ कर रहे ऐसे रासायनिक प्रक्रिया वाले उद्योगों का क्या फायदा? डोंबिवली की केमिकल कंपनी में हुए धमाके में ११ लोगों की मौत हो गई। अब इन मजदूरों के परिवारों का संरक्षक कौन है? वहां की केमिकल कंपनियों में लगातार हो रहे विस्फोटों और लगातार गैस रिसाव की घटनाओं को देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि यहां का केमिकल जोन ‘भोपाल गैस कांड’ की ओर बढ़ रहा है। संपूर्ण बेल्ट एक ‘सुप्त रासायनिक ज्वालामुखी’ बन गई है। और कितने धमाकों के बाद हुक्मरानों को इसका एहसास होगा? डोंबिवली में विस्फोट की विनाशकारी घटना के बाद तो होश में आएं और डोंबिवली समेत उस इलाके और मुंबई से लगी सभी केमिकल कंपनियों का सुरक्षा ऑडिट करें!