मुख्यपृष्ठस्तंभकश्मीर में टेरर का नया हथियार ड्रोन!

कश्मीर में टेरर का नया हथियार ड्रोन!

-सोशल मीडिया से भी संचालित हो रहा है आतंकवाद

कश्मीर में पाकिस्तान की अभी भी साजिशें चल रही हैं। उसके कुछ पैरोकार कश्मीर में नई पीढ़ी के मन में जहर भर रहे हैं। इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। सुरक्षाबल के अधिकारी खास रणनीति पर काम कर रहे हैं और एक हजार के करीब युवाओं को मुख्यधारा में लाया भी गया है। कश्मीर के दूर-दराज क्षेत्रों में युवाओं व किशोरों को गुमराह किया जा रहा है।
माना कि पुलवामा हमले के ५ साल बाद कश्मीर में जमीनी हकीकत बदल चुकी है। कश्मीर में इस अवधि में अभी तक १,००० आतंकी मारे जा चुके हैं और १,८०३ पकड़े गए। आतंकियों का वित्तीय नेटवर्क तबाह हो चुका है। हालत यह है कि वादी में जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तौइबा व हिजबुल मुजाहिद्दीन की कमान संभालने को कोई आतंकी कमांडर तैयार नहीं है। सरकारी दावा तो यह है कि पूरे कश्मीर में २५ के करीब स्थानीय और ३० के करीब विदेशी आतंकी मौजूद हैं। पर इतना जरूर था कि पुलवामा हमले के बाद कश्मीर में आतंकवाद का चेहरा जरूर पूरी तरह से बदल गया है, जो अब सोशल मीडिया और ड्रोन से ही संचालित हो रहा है।
अब सच्चाई यह है कि आतंकी संगठन इस समय पूरी तरह हताश हैं। आतंकी कोई बड़ी वारदात नहीं कर पा रहे हैं। लगभग सभी प्रमुख कमांडर मारे जा चुके हैं। ऐसे में वह आत्मघाती हमले को अंजाम देकर हालात बिगाड़ने और अफरातफरी पैâलाने का विकल्प अपना सकते हैं। बीते कुछ सालों के दौरान कई नौजवानों में धर्मांध जिहादी मानसिकता पैदा हुई है। सुरक्षाबल के अधिकारी चिंता जताते थे कि उनमें से कुछ आत्मघाती बन सकते हैं। उन्हें सोशल मीडिया द्वारा उकसाया जरूर जा रहा था।
पुलवामा हमले में आत्मघाती हमलावर आदिल डार की मौत के बाद खुफिया सूत्रों ने अपने तंत्र से पता लगाया था कि कश्मीर में जैश ने सात स्थानीय लड़कों को आत्मघाती हमलों के लिए तैयार किया है। अहम सुराग से सभी सुरक्षा एजेंसियां सकते में आ गई थीं। ऐसे हमलों में स्थानीय आतंकी कभी-कभार हिस्सा लेते थे। कश्मीर में पहले आत्मघाती हमले को अंजाम देने वाला आतंकी आफाक स्थानीय था। श्रीनगर के डाउन-टाउन के आफाक ने वर्ष २००० के दौरान विस्फोटकों से लदी कार के साथ बादामीबाग सैन्य शिविर के गेट पर हमला किया था। कई बार आत्मघाती हमले कश्मीर में हुए, लेकिन उनमें स्थानीय आतंकियों की भागीदारी नहीं थी। किसी इमारत में घुसकर या किसी सुरक्षा शिविर में हमला करने वाले आत्मघाती हमले में दो से तीन बार स्थानीय आतंकी शामिल रहे। पर वर्ष २००० के बाद पुलवामा हमले में खुद को उड़ाने का पुलवामा का मामला पहला था।
कश्मीर में सुरक्षाबलों ने इन ५ सालों के दौरान आतंकी नेटवर्क की लगभग कमर तोड़ दी है। प्रमुख आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं या पकड़े गए हैं, लेकिन आज भी आत्मघाती हमलों की आशंका बनी हुई है। घाटी में पांच से छह स्थानीय आत्मघातियों की मौजूदगी का सूत्र दावा करते हैं। इनमें एक भी नहीं पकड़ा है।

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