सामना संवाददाता / विदिशा
विदिशा के सर्वाधिक भीड़भाड़ वाले मंदिरों में से एक है दुर्गा नगर का दुर्गा मंदिर। आज से 70 साल पहले शरीफ भाई जागीरदार ने, जिनके पास इस क्षेत्र में काफी जमीन हाजीवली तालाब सहित आधिपत्य में थी, उन्होंने दुर्गा मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
क्षेत्र के धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा हरि सिंह सोलंकी एवं दुर्गा जी के श्रदालु गण विशेषतः गोविन्द राज अरोरा, दत्ता ठेकेदार, ठेकेदार बेलीराम चावला, धन्नालाल ठेकेदार का विशेष योगदान रहा था। मंदिर निर्माण से जुड़े विनोद अरोरा बताते हैं कि पूर्व सांसद प्रताप भानु शर्मा की माता जी विशेष रूप से मंदिर निर्माण में रुचि लेती रहीं थी, आर्थिक सहयोग भी उपरोक्त लोगों ने दिया था।
इतिहासकार गोविंद देवलिया ने बताया कि इन सब लोगों को नई बस्ती में नए इलाके में एक मंदिर की जरूरत महसूस हो रही थी और एक छोटे से चबूतरे पर श्री हनुमानजी, भैरो जी एवं दुर्गा जी की प्रतिमा विराजित करके पूजा शुरू करवा दी थी। पूजन हेतु पंडित प्रभु दयाल चतुर्वेदी को, जो मूलतः पीपलखेड़ा गांव के रहने वाले थे, निरंजन वर्मा जी के पड़ोस में आकर रहने लगे एवं नीम ताल क्षेत्र में पूजा-पाठ करने लगे थे, इन्हें बुलाकर नई बस्ती में ले गए और वहां पूजन इन्ही से कराने लगे।
इसके पूर्व मंदिर निर्माण की जब बात आई तो शरीफ भाई जागीरदार ने मंदिर के लिए भूमि मुफ्त में दान में दे दी। साथ ही मंदिर के वास्तु की पूजन के समय 11 चांदी के कलदार रुपए भेंट दिये थे, यही रुपए मंदिर की नींव में रखे गए और भी सोना-चांदी आदि विधि-विधान के साथ नींव रखी गई। मंदिर बनने के बाद जो बस्ती बसना शुरू हुई, उसे स्वाभाविक तौर पर दुर्गानगर कहने लगे। एक समय उजाड़ एवं सुनसान सा लगने वाले इलाका आज नए विदिशा की शान बन चुका है। बड़ी-बड़ी इमारतें, दुमंजिला मार्किट, शानदार शो रूम दुर्गा नगर में दिखाई देता है।
रेल लाइन के उस पार जो नया विदिशा बसा है वह वाकई बहुत ही सुंदर है। पहले से ही एसएटीआई तथा सर्किट हाउस, अधिकारियों के बंगलों-कलेक्टर निवास, आदि के कारण प्रभुता प्राप्त था, अब सांस्कृतिक भवन (रविंद भवन, ऑडिटोरियम) तथा न्यायालय की नवीन इमारत आदि भव्य बिल्डिंगें बन गई हैं।
विदिशा एक नए स्वरूप में उभर रहा है। दुर्गा नगर की शोभा दुर्गा मंदिर से है,
दुर्गा मंदिर के वतर्मान पुजारी महंत रामेश्वर दयाल तुर्वेदी हैं, जो कि वंश परम्परा से पुरोहिती सम्भाल रहे हैं। 800 ज्योति एक साथ लगातार 10 दिन तक जलती है। मातारानी के दरबार में दुर्गानगर के माता मंदिर में माता की भक्ति के एक स्वरूप में निरंतर दीपक की ज्योति प्रज्ज्वलित रखना भी एक तपस्या निरूपित की जाती हैं, इसी उद्देश्य से सैकड़ों लोग अपनी अपनी योति, माता के दरबार में जलाते हैं। इस वर्ष 851 योति जलेंगी। विशेष रूप से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित अनेक विदेश में रह रहे धर्मप्रेमी बन्धु भी योति जलवाते हैं।