पवित्र दूबे
आजकल शादी-ब्याह का दौर चल रहा है और इन समारोहों में एक तरह का आतंकवाद छिड़ा हुआ है। जिसने सभ्य समाज का सुख चैन छीन रखा है। परंतु सभ्य समाज ने भी एक आतंकवाद छेड़ हुआ है भोजन और खाद्यान्न की बर्बादी के रूप में। इसे रोकने के लिए हमें अपने दर्शन और परंपराओं की पुर्न चिंतन की जरूरत है, अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। वैदिक दर्शन कहता है, ‘खाओं मन भर, छोड़ों ना कण भर’, इसके विपरित वर्तमान में चल रहे शादी-ब्याह और समारोहों के सीजन का दर्शन है, ‘खाओं कण भर और फेंकों टन भर।’
हम अपने आसपास, रेलवे स्टेशनों या ट्राफिक सिग्नल पर ऐसे बच्चों और बुजुर्गों को हमेशा देखते हैं, जो दूसरों से मांगकर अपना पेट भर रहे होते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इन्हें पूरे दिन कुछ नहीं मिल पाता और भूखे पेट ही सोना पड़ता है। दुनियाभर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई यानी लगभग १ अरब ३० करोड़ टन बर्बाद हो जाता है। यह बर्बादी इतनी होती है कि इससे दो अरब लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सके। जहां तक भारत का सवाल है तो यहां विवाह, पार्टियों और दूसरे सामाजिक-निजी आयोजनों में १५ से २० फीसदी खाना बेकार हो जाता है। वास्तव में शादी-ब्याह, राजनैतिक सम्मेलनों और शुभ अवसरों पर होने वाले भोज अब अन्न की बर्बादी का सबब बनते जा रहे हैं। दरअसल, इसके लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं। हम किसी होटल या रेस्त्रां में लंच या डिनर करने जाते हैं तो वहां एक से ज्यादा डिश ऑर्डर तो कर देते हैं, और जब वह खाया नहीं जाता तो उसे छोड़ आते हैं। इसी तरह शादी या किसी समारोह की पार्टी में होता है।
एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोग खाने के प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करने की क्षमता के साथ ही खाना फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आज भी देश में विवाह स्थलों के पास रखे कूड़ाघरों में ४० प्रतिशत से अधिक खाना फेंका हुआ मिलता है। हमारे देश का शायद ही ऐसा कोई राज्य होगा जहां सभी लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध होता हो। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर हर एक राज्य के हर शहर अथवा गाँव तक में भूख लोगों के शरीर पर साफ नजर आती है। जबकि उन्हीं के ईद-गिर्द कहीं भोजन फेंका जा रहा होता है। भोजन का फेंका जाना पहली निगाह में भले ही मामूली सी बात प्रतीत हो लेकिन यह एक गंभीर समस्या है। आंकड़ों के मुताबिक, विकासशील देशों में ६३ करोड़ टन और औद्योगिक देशों में ६७ करोड़ टन खाने की बर्बादी हर साल होती है। कहने का अर्थ यह है कि जितना खाना एक महाद्वीप में रहने वाले लोगों की एक साल में भूख मिटाता है, उतना तो अमीर देश बर्बाद कर देते हैं।
भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है और यही कारण है कि भोजन झूठा छोड़ना या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। हमारे देश में सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ समाराहों की तड़क-भड़क भी बढ़ती ही जा रही है। समाज का नव धनाढ्य तबका विवाह समारोहों को अपनी हैसियत दिखाने का एक अवसर मानता है और इस मौके पर बेहिसाब खर्च करता है। दुनिया की लगभग २८ फीसदी भूमि जिसका क्षेत्रफल १.४ अरब हेक्टेयर है, ऐसे खाद्यान्नों को उत्पन्न करने में व्यर्थ होती है। खाद्य अपव्यय से होने वाली क्षति बहुदैशिक है और इससे वैश्विक अर्थव्यवस्थ्था को लगभग ७५० अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता है जो कि स्विट्जरलैंड के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है। विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में हर दिन २० हजार बच्चे भूखे रहने को मजबूर हैं। रिपोर्ट के अनुसार हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है। अगर इस बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है। विश्व भूख सूचकांक में भारत का ६७ वां स्थान है। देश में हर साल २५.१ करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है लेकिन हर चौथा भारतीय भूखा सोता है। भोजन के अपव्यय के मामले में हमारे देश की स्थिति अव्वल नंबर पर है। भारत जैसे देश के लिए जहां अब भी एक बड़ा तबका भुखमरी का शिकार है, यह शर्मनाक है।
वंचित समुदाय के लोग तो दिन भर मेहनत करने के बाद भी अपने और अपने परिवार के लिए भरपेट और पोष्टिक भोजन का इंतजाम नहीं कर पाते हैं। ऐसे परिवारों ने भूख और कुपोषण के साथ जीना सीख लिया है। विश्व खाद्य संगठन के प्रतिवेदन के अनुसार देश में हर साल पचास हजार करोड़ रूपये का भोजन बर्बाद चला जाता है, जो कि देश के उत्पादन का चालीस फीसदी है। भोजन और खाद्यान्न की बर्बादी रोकने के लिए हमें अपने दर्शन और परंपराओं की पुर्नचिंतन की जरूरत है। हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। भारत दुनिया के उन १९ देशों में शामिल है जहां भूख की स्थिती भयावह मानी गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भूख की स्थिति श्रीलंका, पाकिस्तान ओैर बांगलादेश से भी खराब है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की २०२४ में भारत १२७ देशों में १०५वें नंबर पर है। पिछले साल १२५ देशों में वो १११वें स्थान पर था और २०२२ में १२१ देशों में से १०७वें स्थान पर। अभी भी हंगर इंडेक्स का स्कोर २७.३ है जो गंभीर बना हुआ है। वहीं नेपाल ६८, श्रीलंका ५६ और बांग्लादेश ८४वें नंबर पर है। यानी इन देशों की हालत हमसे बेहतर है। पाकिस्तान की रैंकिंग १०९ है। ये हमसे थोड़ा ही पीछे है। जिन देशों का स्कोर कम होता है, उनकी रैंकिंग भी कम होती है यानी वहां के लोग कम भूखे हैं। वर्ष २०१३ में जारी की गई ग्लोबल हंगर इन्डेक्स रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका ४३ वें, पाकिस्तान ५७ वें, बागंलादेश ५८ वें स्थान पर तो भारत इनसे नीचे ६३ वें स्थान पर था। रिपोर्ट हमेशा ऐसे कई देशों के नाम बताती है, जिन्होने १९९० के बाद भूख कम करने के लिए प्रभावी प्रयास किए हैं, परंतु इन देशों में भारत का नाम नहीं है।
भारतीय परंपराओं में माना गया है कि किसी भूखे व्यक्ति को खाना खिलाना सबसे बड़ा पुण्य होता है। खाने की बर्बादी को रोककर हम न केवल अपने देश से बल्कि पूरी दुनिया से भुखमरी नामक राक्षस का अंत कर सकेंगे। खाने की बर्बादी को हमें हर हालत में रोकना होगा ताकि कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए। भूख किसी भी सभ्य समाज के लिए एक बदनुमा दाग की तरह होती है। फिर भी इस हकीकत को दरकिनार कर देते हैं। अब समय आ गया है यह सोचने का कि एक तरफ अरबों लोग जहां दाने-दाने को मोहताज हैं, कुपोषण के शिकार हैं, वहीं रोज लाखों टन खाना बर्बाद किया जाना कहां तक ठीक है। क्यों न आज से ही भोजन बचत के साथ-साथ एक दिन का भोजन छोड़ने का संकल्प लिया जाए। यह न हो सके तो कम से कम एक दिन-एक समय का भोजन छोड़ने का संकल्प लिया जाए। ‘स्किप ए मील’ को अपने इस संडे संकल्प में शामिल किया जाए।