-५-१०% से नहीं होनी चाहिए ज्यादा
-ईडी २.० में २०.४९ फीसदी पर पहुंची
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
बजट में इस तरह का प्रावधान है कि पूरक मांग पांच से १० फीसदी के बीच होनी चाहिए, लेकिन राज्य सरकार के नियोजन शून्य होने के चलते हर साल पूरक मांग बढ़ती जा रही है, जो न केवल सरकार की असफलता दर्शा रही है, बल्कि यह सरकार और राज्य की जनता पर भविष्य के लिए खतरे की घंटी बनती जा रही है। हमेशा की तरह ही इस साल बजट सत्र में महायुति सरकार की फिर से नियोजन शून्यता के चलते पूरक मांग आउट ऑफ कंट्रोल हो चुकी है। आलम यह है कि ईडी २.० ने उसे २०.४९ फीसदी पर पहुंचा दिया है। इसके पीछे का कारण आर्थिक अनुशासनहीनता बताया गया है।
उल्लेखनीय है कि महायुति सरकार पूरक मांगों के बढ़ते प्रमाण पर कंट्रोल रखने में पूरी तरह से नाकामयाब साबित हुई है। किसी समय राज्य की पूरक मांग ११ फीसदी थी, जो पिछली सरकार में १८ फीसदी थी। हालांकि, मौजूदा सरकार के शासन में यह २०.४९ फीसदी पर पहुंच चुकी है। पूरक मांग विश्लेषण में बताया गया है कि वर्ष २०२२ से २०२५ के बीच मूल बजट की कुल राशि १८ लाख १९ हजार ९०६ करोड़ ४९ लाख रुपए थी। उसकी तुलना में तीन लाख २७ हजार ७५ लाख १० हजार राशि की पूरक मांग की गई है। इसका मूल बजट में प्रमाण १७.९७ फीसदी है।
महाविकास आघाड़ी सरकार का था कंट्रोल
मौजूदा सत्तारूढ़ दल ने ही तब किया था विरोध
महाविकास आघाड़ी सरकार के कार्यकाल में वर्ष २०२०-२१ के दौरान मूल बजट चार लाख ३४ हजार ८४ करोड़ ७८ लाख था। इसकी तुलना में पूरक मांग ७२ हजार १५२ करोड़ रुपए की गई थी, जो १६.६२ फीसदी थी। बता दें कि इस अवधि में कोरोना महामारी ने जनता को बेहाल कर दिया था। इसी तरह वर्ष २०२१-२२ का मूल बजट चार लाख ८४ हजार ९० करोड़ ६७ लाख रुपए था। उसकी तुलना में ६० हजार ६९८ करोड़ २८ लाख पूरक मांग की गई थी, जो १२.५३ फीसदी थी।
महाविकास आघाड़ी सरकार में वर्ष २०१९ से २२ तक बजट में पूरक मांग १३.१२ फीसदी पर बनी रही।
महाविकास आघाड़ी की सरकार में विपक्षी बेंच पर बैठा मौजूदा सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने आवाज उठाते हुए इसी तरह नियोजन शून्य होने का आरोप लगाया था। इसी के साथ ही कैग ने भी इस पर कई बार आपत्ति जताई थी। इसी के साथ ही विधानमंडल की इस्टिमेट कमेटी ने इसे लेकर सरकार की जमकर आलोचना की थी। इस पर कैग ने सकारात्मक बदलाव का सुझाव दिया था। हालांकि, मौजूदा सरकार में स्थिति और विकट हो गई है। सभी नियमों को दरकिनार करते हुए सरकार बड़े स्तर पर पूरक मांग कर रही है। यह महाराष्ट्र के लिए चिंता का विषय बन गया है।
क्या होती है पूरक मांग
पूरक मांग का मतलब है कि जब दो वस्तुओं को एक साथ इस्तेमाल किया जाता है, तो एक वस्तु की मांग दूसरी वस्तु की मांग से जुड़ी होती है, यानी एक की मांग बढ़ने से दूसरी की मांग भी बढ़ती है। इसे पूरक मांग कहते हैं।
एक लाख ३७ हजार १६३ करोड़ ६७ लाख पर पहुंची
वर्ष २०२४-२५ में मानसून अधिवेशन में पहली ही पूरक मांग ९४ हजार ८८९ करोड़ ०६ लाख रुपए, जबकि दिसंबर २०२४ में पूरक मांग की राशि ३५ हजार ७८८ करोड़ ४१ लाख थी। इसी तरह मार्च २०२५ में पेश की गई पूरक मांग छह हजार ४८६ करोड़ २० लाख रुपए है। तीनों पूरक मांगों को मिलाकर कुल एक लाख ३७ हजार १६३ करोड़ ६७ लाख पर पहुंच गई है।