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संपादकीय : मुख्य न्यायाधीश की आरती

हिंदुस्थान के लोकतंत्र में पिछले दस सालों में कई अकल्पनीय और अजीबोगरीब घटनाएं घटी हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी चीफ जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ के आवास पर गए। मोदी के पहुंचते ही चंद्रचूड़ दंपति ने उनका जोरदार स्वागत किया। प्रधानमंत्री ने मुख्य न्यायाधीश के आवास पर गणपति आरती की। इसे लेकर देश के स्वतंत्र सोचवाले नागरिकों ने चिंता व्यक्त की है। यह संविधान और न्यायपालिका के लिए खतरे की घंटी है। कई संवैधानिक विशेषज्ञों ने राय दी कि मुख्य न्यायाधीश को प्रधानमंत्री की इस निजी पारिवारिक मुलाकात को टालना चाहिए था। अब लोगों को वास्तव में हमारे संविधान को लेकर चिंता होने लगी है। मोदी और मुख्य न्यायाधीश की निजी मुलाकात और उनके बीच मधुर सौहार्द देखकर हमें शाहिर अन्नाभाऊ साठे की कविता याद आ गई।
अन्नाभाऊ कहते हैं-
‘यह न्याय व्यवस्था चंद लोगों की रखैल बन गई है, यह संसद भी हिजड़ों की हवेली बन गई है, मैं अपना दुख किससे कहूं…? क्योंकि यहां की न्याय व्यवस्था भ्रष्टाचार के रंग में रंग चुकी है…!’
प्रधानमंत्री ने मुख्य न्यायाधीश के घर पर आरती की। दीये जलाए। लोकतंत्र में आशा की आखिरी किरण न्याय के दीये सी रहती है। लोकतंत्र का दीया बुझ रहा है और अदालत से कोई उम्मीद नहीं रही है।’ ये बात चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को भी समझ आ गई होगी। प्रशांत भूषण ने राय जताई कि मोदी-चंद्रचूड़ मुलाकात के ‘बैड सिग्नल’ से देशभर में गलत संदेश गया है। अन्य कानूनी पंडितों की भी ऐसी ही भावनाएं हो सकती हैं, लेकिन वे उन्हें व्यक्त करने से डरते हैं। पिछले दस वर्षों में देश में संविधान और लोकतंत्र का पतन हुआ है। चुनाव आयोग, न्यायालय जैसी संस्थाएं मोदी ने अपनी एड़ियों के नीचे रख ली हैं। इससे भ्रष्टाचार, उद्योगपतियों की लूट, गैरकानूनी तौर से दल तोड़फोड़ और विधायकों-सांसदों की खरीद-फरोख्त को प्रतिष्ठा मिली। महाराष्ट्र जैसे राज्य में लोकतंत्र खत्म कर विधायकों-सांसदों का सौदा कर सरकार गिरा दी गई। संविधान की दसवीं अनुसूची के मुताबिक इन सभी अलग हुए विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट, चुनाव आयोग हमारी जेब में है, हम जो चाहेंगे परिणाम मिलेगा, मोदी-शाह के आशीर्वाद से हम कोर्ट में जीतेंगे, ऐसा घाति विधायकों ने कहा और यह सच हो गया। मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में घातियों और गैर-संवैधानिक सरकार का समर्थन किया। यह दावा शिवसेना विरुद्ध केंद्र सरकार है और केंद्र सरकार के मुखिया निजी मुलाकात के लिए चीफ जस्टिस के घर पहुंचते हैं। इसीलिए महाराष्ट्र की असंवैधानिक सरकार का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सका। खुद चंद्रचूड़ साहब ने शुरुआत के अंतिम चरण में शिंदे गुट के व्हिप, गुट के नेता पद पर शिंदे का चुनाव, राज्यपाल की कार्रवाई को अवैध घोषित किया और मामले को अंतिम निर्णय के लिए विधानसभा अध्यक्ष के पास भेज दिया। विधानसभा अध्यक्ष के भाजपा का एजेंट होने के कारण ‘न्याय’ मिलना मुश्किल ही था, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने अन्याय भी किया तो उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट में न्याय की रोशनी नहीं बुझेगी, लेकिन इस मामले में केवल तारीखों और वक्त खींचकर गैर कानूनी सरकार चलने देना सुप्रीम कोर्ट की विफलता है। मोदी-शाह के निर्देश के बिना ऐसा नहीं हो सकता और अब इस पर मुहर लग गई है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ नवंबर महीने में रिटायर हो रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सेवानिवृत्ति के बाद प्रधानमंत्री उन्हें कहां ले जाकर बिठाते हैं। लोकतंत्र और संविधान की तोड़-मरोड़ में जिन्होंने मोदी-शाह की मदद की उन सभी न्यायाधीशों को सरकार ने सुविधाएं प्रदान की हैं। रिटायरमेंट के बाद की ‘सुविधा’ न्यायपालिका में सबसे बड़ी खतरे की घंटी है! चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के बारे में लोगों की राय अलग थी और अब भी है। एक तो चंद्रचूड़ के घराने की न्यायदान की महान परंपरा रही है। इंदिराजी के दौर में यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ देश के चीफ जस्टिस थे और वे मौजूदा चीफ जस्टिस के पिताश्री हैं। दूसरा, चूंकि चंद्रचूड़ महाराष्ट्र के सुपुत्र हैं, इसलिए यह निश्चित था कि वे किसी दबाव या राजनीतिक प्रलोभन में नहीं आएंगे। न्याय और संवैधानिक संरक्षण के बीज महाराष्ट्र की मिट्टी से ही रोपे गए हैं। मुख्य न्यायाधीश इन परंपराओं का पालन करेंगे और अपने कार्यों से इसे साबित भी करेंगे। वे संवैधानिक पीठ से टिप्पणियां करते, लोगों की आशाएं पल्लवित करते और पैâसला इस तरह से देते जिससे सरकार को मदद हो, ऐसा पिछले दस सालों में दिखाई दिया है। ‘ईवीएम’ के खिलाफ देश और दिल्ली में जबरदस्त बड़े आंदोलन हुए। ‘ईवीएम’ लोकतंत्र का हत्यारा है, इसके सारे सबूत देने के बावजूद ‘ईवीएम’ का विरोध करनेवाली सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं। मोदी-शाह सरकार बिल्कुल यही चाहती थी। सुप्रीम कोर्ट ईडी, सीबीआई के मनमाने व्यवहार पर अंकुश लगाने में कमजोर रहा। दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री केजरीवाल को मोदी सरकार ने सिर्फ राजनीतिक बदले की भावना से बंदी बनाया और सुप्रीम कोर्ट भी उन्हें न्याय नहीं दे सका। केंद्र सरकार की पक्की मंशा केजरीवाल को कैद में रखकर दिल्ली विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लादने की है। यह लोकतंत्र विरोधी है। महाराष्ट्र में गैर संवैधानिक सरकार नरेंद्र मोदी की मर्जी से चलाई जा रही है, लेकिन अब उस गैर संवैधानिक सरकार की ही आरती चल रही है। प्रधानमंत्री-मुख्य न्यायाधीश की निजी मुलाकात से कई संवैधानिक और शिष्टाचार संबंधी सवाल खड़े हो गए। अवैध कृत्यों को अभय और धार्मिक अधिष्ठान मिले। मोदी ने भारतीय राजव्यवस्था के अंतिम स्तंभ को भी ध्वस्त कर दिया है। कई तूफानों में भी देश के चारों स्तंभ बचे रहे, लेकिन पिछले दस वर्षों में उन्हें ध्वस्त कर दिया गया। यह देश की प्रतिष्ठा का पतन है।

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