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संपादकीय : धन्य है चुनाव आयोग!

जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर हमारा लोकतंत्र चल रहा है। भारत का चुनाव आयोग लाठी है और यह लाठी फिलहाल मोदी-शाह के हाथ में है इसलिए लोकतंत्र की भैंस उनकी ही है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में ७६ लाख वोट बढ़े। इस बात का क्या रहस्य है कि आखिरी घंटे-डेढ़ घंटे में और खासकर मतदान अवधि खत्म होते-होते ७६ लाख वोट बढ़ जाते हैं, वोटिंग फीसदी बढ़ जाती है और इस अचानक बढ़े फीसद पर भाजपा और उसके दो पिछलग्गू सवा दो सौ सीटें जीतकर महाराष्ट्र में सरकार बनाते हैं? यह सवाल महाराष्ट्र कांग्रेस ने चुनाव आयोग से पूछा, लेकिन चुनाव आयोग ने कांग्रेस की शंकाओं को खारिज कर दिया और फैसला सुनाया कि एक घंटे के भीतर ७६ लाख यानी ‘पौन करोड़’ वोट बढ़ना आसानी से संभव है। हालांकि चुनाव आयोग इस बारे में कोई तर्कसंगत स्पष्टीकरण नहीं दे सका कि आखिरी डेढ़ घंटे में यह मतदान कैसे बढ़ गया। एक घंटे के भीतर ‘पौन करोड़’ मतदान कैसे बढ़ गया और उसमें भी भाजपा और उसके सहयोगियों द्वारा जीती गई सीटों पर भी औसतन २५ हजार से ३० हजार तक मतदान अचानक कैसे बढ़ गया? ये प्रश्न बिल्कुल स्वाभाविक हैं और आम मतदाताओं का भी यही सवाल है। यही सवाल हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर भी उठाया गया। अगर तस्वीर कुछ इस तरह होती कि मतदान केंद्रों के बाहर हजारों लोगों की लंबी कतारें हैं और मतदान करने के लिए मतदान केंद्र पर भीड़ उमड़ पड़ी है, तो इस बढ़े हुए ७६ लाख मतदान को वास्तविक माना जा सकता था। इसी सिलसिले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से मतदान केंद्रों की
सीसीटीवी फुटेज मांगी
थी। उसके मुताबिक, आयोग को इसे कोर्ट में जमा करना चाहिए था, लेकिन पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के हरियाणा विधानसभा चुनाव मामले में ऐसे सीसीटीवी फुटेज मांगते ही सरकार के तोते उड़ गए और आदेश जारी कर दिया कि ऐसा कोई भी रिकॉर्ड नागरिकों को नहीं दिया जा सकता। यही संदेहास्पद है। महाराष्ट्र में आखिरी घंटे में ‘पौन करोड़’ मतदान ब़ढ़ा यही अहम मसला है और चुनाव आयोग केवल इतना कहता है, ‘ऐसा हो सकता है।’ ये ७६ लाख वोटर जमीन से निकले या हवा से उतरे? तो फिर मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज सामने क्यों नहीं लाए जा रहे हैं? साफ मुद्दा यह है। चुनाव आयोग ने कांग्रेस की शिकायत पर ६० पेज का जवाब दिया और कहा कि ७६ लाख वोट की बढ़ोतरी सही है। तो फिर मतदान केंद्रों के साक्ष्यों और फुटेज को क्यों नकारा जा रहा है? परली जैसे मतदान केंद्रों पर धनुभाऊ के गुंडे लोगों को मतदान केंद्रों पर फटकने नहीं दे रहे थे। इस गुंडागर्दी का चित्रण किया गया। यह आतंक कई विधानसभा क्षेत्रों में हुआ। अगर चुनाव आयोग को यह सब नहीं दिखा तो उनकी आंखों का मोतियाबिंद बढ़ गया है और उन्हें अपनी पुतलियों की सफाई करानी चाहिए। चुनाव आयोग का कहना है कि महाराष्ट्र में चुनाव पारदर्शी तरीके से कराए गए। उनका कहना है कि वोटिंग प्रतिशत में बदलाव नामुमकिन है। चुनाव आयोग का यह दावा महज सरकार की चमचागीरी है। जो लोग शरद पवार की पार्टी को अजीत पवार को और शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को ऐरे-गैरे एकनाथ शिंदे को सौंप सकते हैं, वे मोदी-शाह की जी-हुजूरी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। मौजूदा चुनाव आयोग को यह भान ही नहीं है कि वह एक संवैधानिक संस्था है और देश में
निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव
कराना उसकी जिम्मेदारी है। मोदी शाह की सहूलियत के अनुसार काम कर और नियमों को तोड़कर या बदलकर अपने को धन्य मानने वाले चुनाव आयोग से उम्मीद रखना बेमानी है, गलत है। मतदाता सूची से हजारों नाम हटाए जाते हैं और हजारों नाम घुसा दिए जाते हैं। हमारे चुनाव आयोग को नहीं लगता कि इसमें कुछ भी असाधारण है। कई झोपड़पट्टियों में भाजपा स्वयंसेवक चुनाव से एक दिन पहले मतदाताओं की उंगलियों पर स्याही लगाकर १,०००-१,५०० में मतदान न करने का सौदा कर रहे थे। यह बात चुनाव आयोग की जानकारी में लाने के बावजूद आंखें मूंदने वाला चुनाव आयोग पारदर्शक चुनाव प्रक्रिया की बातें करता है और दूसरी तरफ चुनाव के नियमों में फटाफट बदलाव कर देता है। ये सब लोकतंत्र के लिए घातक है। चुनाव आयोग इस तरीके से नियमों में बदलाव कर देश की आजादी और लोकतंत्र का गला घोंटने का काम कर रहा है, जिससे चुनाव पर से विश्वास उठ जाए। इसलिए महाराष्ट्र में मतदान केंद्रों पर शाम ५ बजने के बाद कोई कतार नहीं होने के बावजूद ७६ लाख मत बढ़ गए यह चमत्कार खरा है, इस तरह का दावा करने वाले भारतीय चुनाव आयोग की जय हो, ऐसा ही कहना होगा। मूलत: लोगों की चुनाव आयोग से एक ही मांग है। वह यह कि महाशय जरा शाम को लगी कतारों और ७६ लाख वोट बढ़े उनकी सीसीटीवी फुटेज दिखा दीजिए। लेकिन चुनाव आयोग सवाल को एक वाक्य में खत्म कर देता है, ‘मोदी है तो मुमकिन है! ७६ लाख वोट आसमान से बरसे हैं इसे मान लो।’ धन्य है चुनाव आयोग!

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