मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : कश्मीर में रक्तपात ...मोदी-शाह क्या कर रहे हैं?

संपादकीय : कश्मीर में रक्तपात …मोदी-शाह क्या कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री मोदी हमेशा की तरह विश्व दौरे पर हैं। दुनियाभर के नेताओं को गले लगाते हुए मोदी की तस्वीरें छपी हैं, इधर गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली में बैठकर महाराष्ट्र में टिकट बंटवारे की समस्या सुलझा रहे हैं। ऐसे में देश की सुरक्षा हवा में है, जिसके चलते आतंकवादी उत्पात मचा रहे हैं। जब अमित शाह दिल्ली में अपने आवास पर टिकट आवंटन में मगन थे। उस वक्त जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग में आतंकवादियों ने सेना के वाहनों पर हमला किया। इस हमले में तीन जवानों की जान चली गई। कई जवान गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। यह देश को सुन्न कर देने वाली घटना है। लेकिन प्रधानमंत्री, गृहमंत्री राजनीतिक रूप से बहरे हो चुके हैं इसलिए उन्हें मृत जवानों के परिजनों की चीत्कार विचलित नहीं करती। नागरिकों पर लगातार हमले जारी हैं। पिछले चार दिनों में जम्मू-कश्मीर में यह पांचवां हमला है और मोदी का तीसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद से १०० दिनों में यह २८वां हमला है। २० अक्टूबर को गांदरबल में आतंकी हमले में सात निर्दोष लोगों की जान चली गई। ये तस्वीर डरावनी है। यदि महाराष्ट्र, झारखंड के टिकट बंटवारे में उलझे गृहमंत्री को जम्मू-कश्मीर की यह दशा पीड़ा नहीं पहुंचाती तो क्या किया जा स्कता है? मोदी काल में जम्मू-कश्मीर में सैन्य अधिकारी, जवान, पुलिस समेत १५० से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई। अंधभक्तों के मुताबिक, मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध रोक सकते हैं, लेकिन अपने देश में आतंकी हमले नहीं रोक सकते। यह सच है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद ३७० हटा दिया गया, लेकिन इसके बदले में जनता को क्या मिला? मोदी-शाह के लाडले उद्योगपति मित्र गौतम अडानी जन्नत में जमीन ले सकें, ताकि उस जमीन से खनिज संपदा मिल सके इसलिए धारा ३७० हटाकर गौतम अडानी के लिए रास्ता साफ कर दिया गया। ऐसी ही खनिज संपदा मणिपुर की पहाड़ियों में खोजी गई है। इसलिए ऐसा लगता है कि मोदी-शाह ने पहाड़ी इलाकों के पारंपरिक आदिवासियों का कत्लेआम कर अडानी को संपत्ति देने की वसीयत तैयार कर ली है। धारावी पुनर्वास के नाम पर मुंबई की बहुमूल्य जमीनें पहले ही अडानी को सौंपी जा चुकी हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील सीमावर्ती राज्य के बाबत भी भारतीय सैनिकों के खून का सौदा किया जा रहा हो तो इस सरकार की देशभक्ति को एक पाखंड ही कहा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर के मामले में मोदी सरकार की नीयत साफ नहीं है। जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा हटाकर इसे केंद्र शासित राज्य बनाने की क्या वजह रही? धारा ३७० हटा दी गई यह ठीक है, लेकिन उसके बाद भी कश्मीरी पंडित अपने घर नहीं जा पाए हैं और न ही अपने पुश्तैनी घरों पर कब्जा कर पाए हैं। तो मोदी सरकार और उसके गृहमंत्री ने वास्तव में क्या किया? क्या पांच साल पहले कश्मीर घाटी में हुआ पुलवामा नरसंहार चुनाव जीतने के लिए स्वनिर्मित घटना थी? यह आज भी रहस्य बना हुआ है। कश्मीर घाटी में विधानसभा चुनाव हुए जहां नेशनल कॉन्प्रâेंस और कांग्रेस गठबंधन ने मोदी को हराकर बहुमत हासिल किया। मोदी कश्मीर नहीं जीत सके। जो कश्मीर जीतता है वही देश का नेता बनता है, लेकिन हरियाणा आदि जीतने के बाद भाजपा ने जीत का ढोल पीटते हुए मोदी को हीरो बताया। कश्मीर घाटी के लोग संतुष्ट नहीं हैं और उन्हें हर दिन आतंकवादियों का सामना करना पड़ता है। चूंकि कश्मीर एक केंद्र शासित राज्य है, इसलिए मोदी और उनकी सरकार वहां होने वाली हर हत्या और खून की हर बूंद के लिए जिम्मेदार हैं। कश्मीर में रोज जवान शहीद हो रहे हैं, लेकिन मोदी-शाह अपने राजनीतिक काम में व्यस्त हैं। कश्मीर का पेंच इस तरह है कि गृहमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए। पुलवामा नरसंहार के बाद प्रधानमंत्री को नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर इस्तीफा दे देना चाहिए था। लेकिन ४० जवानों के अस्थिकलश घुमाकर भाजपा ने वोट मांगा। मोदी ने पुलवामा नरसंहार का राजनीतिकरण किया। अगर पुलवामा नहीं हुआ होता तो २०१९ में ही बहुमत का राज मोदी के पैरों तले से खिसक गया होता। पुलवामा में एक ही समय में ४० जवानों की हत्या कर दी गई और अगले पांच वर्षों में कश्मीर घाटी में कम से कम १५ छोटे पैमाने के ‘पुलवामा’ होते रहे। जवानों पर, जवानों के काफिलों पर, जवानों के वैंâपों पर हमले होते रहे। इसमें गुरुवार का गुलमर्ग हमला भी है। जो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अपने जवानों की निर्मम हत्या को बर्दाश्त करते हैं और हत्याएं होने पर तुच्छ राजनीति में लगे रहते हैं, उन्हें शासक नहीं माना जा सकता। यह एक बादशाही तरीके से काम करने वाली सरकार है। जम्मू-कश्मीर में सेना पर आतंकी हमले बढ़ते जा रहे हैं। वहां हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए थे और मोदी वहां हार गए थे। इसलिए कश्मीर में मोदी-शाह की दिलचस्पी खत्म हो गई है। खून-खराबे में सैनिक मरें या वहां के लोग खून से सने, हम दिल्ली में बैठकर राजनीति करेंगे, ये धंधा बरकरार है।

अन्य समाचार