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संपादकीय : मंत्रिमंडल का गठन हुआ; …रोना-धोना जारी है!

महाराष्ट्र के नसीब में जो ईवीएम की सरकार आई है, वह किस मुहूर्त पर आई? फडणवीस की सरकार होने के नाते बेशक मुहूर्त निकाला ही गया होगा और इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन पहले बहुमत होने के बावजूद सरकार नहीं बन रही थी। रूठने, मनाने, गुस्साने और लालच के चलते शपथ ग्रहण समारोह खिंचता चला गया और अब ४० लोगों के शपथ लेने के बावजूद सरकार में शांति नजर नहीं आ रही है। नाराज लोगों ने खुलकर अपनी आग उगली है। उन अंगारों की कितनी भी चिंगारियां उड़ें, सरकार को कोई चटके नहीं लगेंगे। एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के बिना, भाजपा के पास सरकार चला लेने के लिए पर्याप्त ताकत है और अगर यह कम हो जाती है, तो दोनों सहयोगियों को तोड़कर बहुमत के आंकड़े जुटाने के लिए ईडी, सीबीआई और पुलिस बल मौजूद है ही। इतवार को नागपुर में मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। दिल्ली से सूची को मंजूरी मिलने के बाद मंत्रियों ने शपथ ली। जिन लोगों ने स्वाभिमान वगैरह के लिए शिवसेना और एनसीपी छोड़ी, ऐसे शिंदे-पवार गुट की फेहरिस्त भी दिल्ली में अमित शाह की नजर से मंजूर होकर आई और उसी के अनुरूप मंत्रियों का शपथ ग्रहण कार्यक्रम हुआ। छगन भुजबल, सुधीर मुनगंटीवार, रवींद्र चव्हाण जैसे प्रमुख नेताओं को बाहर कर दिया गया है। तानाजी सावंत, दीपक केसरकर को दिल्ली के आदेश पर ‘श्रीफल’ दे दिया गया, लेकिन पूजा चव्हाण की संदेहास्पद मृत्यु मामले के मंत्री संजय राठौड़ के शपथ ग्रहण ने साबित कर दिया कि मुख्यमंत्री फडणवीस का अपनी लाडली बहनों के प्रति प्यार एक ढोंग है। पूजा चव्हाण की मौत को लेकर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष फडणवीस का रवैया भी ‘कामचलाऊ’ वाला था। उन्होंने कहा था कि जब तक राठौड़ के इस्तीफे पर कार्रवाई नहीं होगी तब तक वह
शांत नहीं बैठेंगे
लेकिन अब संजय राठौड़ उन्हीं फडणवीस के मंत्रिमंडल में हैं। फडणवीस अजीत पवार और हसन मुश्रीफ को ‘चक्की पीसने’ के लिए भेजने वाले थे। खुद प्रधानमंत्री मोदी भी यही चाहते थे। ये दोनों अब महाराष्ट्र को मजबूत करने में फडणवीस की मदद करेंगे। बीड में हिंसा, रक्तपात, हत्या, जबरन वसूली का कहर मचा है। जिस धनंजय मुंडे पर सरपंच संतोष देशमुख की हत्या के खून के छींटे पड़े हैं, उसे मंत्री बना दिया गया है। इसके साथ ही पंकजा मुंडे को भी मौका मिला है। गणेश नाईक भाजपा कोटे से मंत्री बने हैं। उनके चिरंजीव संदीप नाईक ने राष्ट्रवादी शरद पवार पार्टी से चुनाव लड़ा था। तीन साल तक ऐसे ही टंगे हुए कोट शिंदे गुट के कई लोगों के शरीर पर इस बार चढ़ गए, लेकिन उसे गुट के कई लोगों की तड़पड़ाहट मनोरंजक है। नितेश राणे, इंद्रनील नाईक, अदिति तटकरे, आकाश फुंडकर, शंभुराजे देसाई, शिवेंद्रराजे भोसले, अतुल सावे, जयकुमार रावल, मेघना बोंडिकर, भरणेमामा, मकरंद पाटील, बावनकुले, प्रताप सरनाईक और दादा भुसे मंत्री पद पर विराजमान हो गए। कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि वंशवाद के आलोचकों ने अपने-अपने गुट में वंशवाद का ‘सम्मान’ बनाए रखा। अजीत पवार, एकनाथ शिंदे आदि गुट में जो लोग एकत्र हुए हैं, वे शुद्ध स्वार्थ के लिए एकत्र हुए लोगों का एक जमावड़ा है। इन लोगों की मानसिकता ठेकेदारी, कारखानदारी और मौका मिलने पर मंत्री पद या किसी महामंडल मिल जाने पर बोनस पा लेने जैसी होती है। सिद्धांत, विचार, भूमिका आदि के मामले में यह ठनठन गोपाल होते हैं। यही वजह है कि मंत्रिमंडल विस्तार के बाद भाजपा समेत शिंदे और अजीत पवार गुट से भी
असंतुष्टों की बाढ़
आ गई है। छगन भुजबल ने खुले तौर पर नाराजगी जताई है। उन्होंने मनोज जरांगे पाटील से जबरदस्त पंगा लिया। भुजबल ने इस झगड़े को इतना चरम पर पहुंचा दिया कि विधानसभा में जीत हासिल करने के बाद भी भुजबल को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी, इसकी सिर्फ एक वजह थी, जरांगे और मराठा समुदाय को ठेस नहीं पहुंचाना। भुजबलों को आगे बढ़ाकर खेलते हुए फडणवीस ने जरांगे के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ी। अब भुजबल को हवा पर छोड़ दिया गया। इस्तेमाल किया और फेंक दिया। जिस तरह से भुजबल ने शरद पवार को छोड़ा उसका फल वे भोग रहे हैं। दिल्ली ही जानती है कि सुधीर मुनगंटीवार, रवींद्र चव्हाण का क्या हुआ। ‘मेरा नाम सूची में अंतिम था…!’ ऐसा दावा सुधीर मुनगंटीवार करते हैं। तो फिर उनका नाम किसने और वैâसे छोड़ दिया? क्या किसी ने उनके नाम की स्याही पर पानी छिड़क दिया? शेष बिल्डर मंगलप्रभात लोढ़ा की लॉटरी लग गई। अगर नहीं लगती तो भाजपा की ‘शेठजी’ परंपरा को धक्का लग जाता। मुंबई से आशीष शेलार को मौका मिला है। यह एक कार्यकर्ता का सम्मान है। सूबे में नई सरकार के मंत्रिमंडल का आखिरकार गठन हो गया, लेकिन रोना-धोना खत्म नहीं हुआ है। प्रकाश सुर्वे, लाड, दरेकर, राम शिंदे, शिवतारे आदि की रुलाई फूट पड़ी है। ऐसे नाराज मंडलियों की आंखों से आंसू पोंछने के लिए नई सरकार द्वारा एक महामंडल स्थापित करने में कोई हर्ज नहीं है। कोई कितना भी सिर पटक ले, आंसू बहा ले, सरकार ईवीएम बहुमत के दम पर मजबूत है। इसलिए भले ही नए मंत्री बिना महकमे के हैं, सरकार चला ही ली जाएगी। भविष्य में शिंदे और अजीत पवार निस्तेज हो जाएंगे और अगर उन्होंने गड़बड़ी करने की कोशिश की तो दोनों के दरवाजे पर स्थायी रूप से ‘ईडी’ की चौकियां लगा दी जाएंगी! अब नहीं रुकेगा महाराष्ट्र, लेकिन इस तरह से!

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