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संपादकीय : मुख्यमंत्री फडणवीस, ये मकड़जाले साफ करें!

महाराष्ट्र में भी नए साल की शुरुआत हो चुकी है। भले ही राज्य सरकार खुद को हिंदुत्ववादी आदि मानती है, लेकिन ये महज ढोंग है। प्रशासन अंग्रेजी वर्ष के मुताबिक चल रहा है और चलता रहेगा। हिंदुओं के जो साढ़े तीन मुहूर्त हैं गुड़ीपाडवा, दशहरा और अक्षय तृतीया, उन मुहूर्तों पर सरकार ने शपथ नहीं ली। २३ नवंबर को सरकार यानी मंत्रिमंडल ने शपथ ली। एक महीना हो गया। नया साल आ गया है, लेकिन क्या सरकार और उसका मंत्रिमंडल कहीं दिखाई दे रहा है? खुद उपमुख्यमंत्री शिंदे ‘डिप्रेशन’ की गर्त में हैं ऐसा उनके करीबी लोगों का कहना है और उनका ज्यादातर समय सातारा के दरे गांव में बीतता है। गांव के लोगों का कहना है कि वे अमावस्या के मौके पर गांव के खेत में राष्ट्र कार्यों की अग्नि प्रज्वलित करते हैं। उससे महाराष्ट्र की जनता के हाथ क्या लगेगा? दूसरे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की चारों उंगलियां घी में हैं और वे पिछले एक महीने से उंगलियां चाटते घूम रहे हैं, लेकिन चालीस सदस्यीय कैबिनेट का क्या? यह सच है कि थमा हुआ शपथ ग्रहण समारोह हुआ, लेकिन भूल-चूक लेन-देन हो जानी चाहिए और अगर कुछ गलत है तो मुख्यमंत्री को उसे सुधारना चाहिए। एक महीना बीत जाने के बाद भी राज्य के करीब ९ मंत्री और ५ राज्यमंत्रियों ने कार्यभार नहीं स्वीकारा है। यानी मंत्रियों ने काम शुरू नहीं किया है। यह सरकार इस नारे के साथ सत्ता में आई थी कि महाराष्ट्र अब नहीं रुकेगा, महाराष्ट्र गतिशील बनेगा, लेकिन गति और काम के मामले में सब कुछ गड़बड़ी दिखाई दे रहा है। मंत्री अपने कार्यालयों में नहीं फटक रहे हैं। क्योंकि मंत्रियों को उनके मन मुताबिक महकमे नहीं मिले हैं। अब मन मुताबिक का मतलब क्या है? ऐसे महकमे जहां पर भ्रष्टाचार और लूट-खसोट का खुला बाजार है उन मलाईदार रईस महकमों के न मिलने के चलते मंत्रियों के लिए मंत्रालय का माहौल दमघोंटू बन गया है। मौजूदा राज्य सरकार महाराष्ट्र के लिए अभिशाप है। इससे जनता में निराशा है और खुद मुख्यमंत्री भी
मन से अस्थिर
होते दिखाई दे रहे हैं। राज्य में महाविकास आघाड़ी की तीन दलों की सरकार थी। उस वक्त तिपहिया रिक्शा आदि शब्दों से उस सरकार का मजाक उड़ाया जाता था, लेकिन अब यह तिपहिया रिक्शा फडणवीस के नसीब में आ गया है! महाविकास आघाड़ी का रिक्शा तो दौड़ रहा था, लेकिन फडणवीस, शिंदे और अजीत पवार का रिक्शा रूठ कर वहीं का वहीं बैठा है। महाराष्ट्र का आधे से ज्यादा मंत्रिमंडल नाराज और रूठ कर बैठा है और मुख्यमंत्री ने अभी तक उन्हें सरकार के मुखिया के तौर पर आंखें तरेरने का साहस नहीं दिखाया है। गठबंधन सरकार की एक मजबूरी होती है। उसकी पीड़ा केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी, नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह ने व्यक्त की थी। पिछले पच्चीस वर्षों से महाराष्ट्र में आघाड़ी व गठबंधन सरकार रही है। इसलिए महाराष्ट्र नहीं रुकेगा जैसी शेखियां बघारने का कोई मतलब नहीं है। महाराष्ट्र में फिलहाल तीन पार्टियों की सरकार है, लेकिन सभी प्रमुख खाते भाजपा ने अपने पास रखे हैं। उप मुख्यमंत्री शिंदे का लालच यह है कि जो महत्वपूर्ण विभाग उनके पास आए, उनमें से शहरी विकास, गृहनिर्माण जैसे जबर्दस्त मलाईदार विभाग उन्होंने अपने पास रखे और अन्य विभाग अपने सहयोगियों को बांट दिए। जिन्हें केवल गाड़ी, बंगला और पॉकिटमनी चाहिए, उन्होंने बिना ना-नुकर किए शपथ ले ली। बाकी लोग निराशा में आहें भर रहे हैं। परिवहन मंत्री, सामाजिक न्याय मंत्री, मत्स्य बंदरगाह आदि विभाग के मंत्रियों ने प्रयोग के तौर पर अपने विभाग स्वीकार तो कर लिए, लेकिन उनके चेहरे पर अवसाद स्पष्ट है। यदि दत्तमामा भरणे ने उनको दिए गए विभाग को इसलिए नहीं संभाला क्योंकि उन्हें युवा कल्याण, खेल आदि विभाग नहीं चाहिए थे तो यह मामला गंभीर माना जाना चाहिए। आशीष शेलार की किस्मत में भी खराब हुआ मेवा ही आया है। शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा आदि को खराब प्याज की संज्ञा दी जाती है, इसलिए जिन लोगों को ये खाते मिले वे खुश नहीं हैं और संबंधित अहम महकमों को भी
अडानी के कारोबार के चलते
न्याय नहीं मिल पाएगा। हर कोई राजस्व, ग्राम विकास, शहरी विकास, आदिवासी विकास, उद्योग जैसे कमीशनबाज विभाग चाहता है। गृह विभाग का लालच तो हर एक को है। कई लोगों को इस बात की कसक हो रही होगी कि जब ५०० करोड़ की जमीन एक रुपए के हिसाब से लेने वाले चंद्रशेखर बावनकुले को जब राजस्व विभाग मिल सकता है तो हमसे क्या खता हुई? ‘ईडी’ जैसी जांच एजेंसियों को इसकी जांच करनी चाहिए कि जल संरक्षण और जलापूर्ति जैसे महत्वपूर्ण विभागों से भी पैसा वैâसे निकाला जाता है। इस विभाग के मंत्रियों ने तय कर लिया है कि केंद्र से मिलने वाला पैसा सिर्फ चोरी और लूट के लिए ही होता है। अगर पिछले ढाई साल के मंत्रियों से पूछा जाए कि ‘जलजीवन मिशन’ का पैसा कहां खर्च किया गया, तो यह समझ आएगा कि पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद महाराष्ट्र प्यासा क्यों है? यहां तक ​​कि स्वास्थ्य विभाग भी अब गरीबों की सेवा लिए नहीं रह गया है, बल्कि दवाओं की फर्जी खरीद-फरोख्त के जरिए पैसे कमाने का जरिया बन गया है। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों, सिविल सर्जनों आदि के प्रमोशन व तबादले में करोड़ों कमाए जाते हैं और ग्रामीण इलाकों, आदिवासी पाडों में इलाज के बिना लोग जान गवां देते हैं। यही सवाल है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस वैâसे बदलेंगे ये तस्वीर? राज्य में कई मंत्रियों ने मंत्री पद की शपथ लेकर भी कार्यभार नहीं संभाला है। जिन लोगों ने वह स्वीकार किया है वे अपने कमीशन बाजी की खेल में मशगूल हैं। जिन्होंने पदभार नहीं संभाला उनमें से कुछ नाराज हैं और कुछ कोने में रूठ कर बैठे हैं। बहुतों को अच्छे विभाग नहीं मिले इसलिए उनकी जिंदगी दयनीय हो गई। दरअसल हर महकमा काम करने के लिए होता है। अच्छा काम करके उस कबाड़ माने जाने वाले विभाग को लोकाभिमुख बनाया जा सकता है, लेकिन मौजूदा मंत्रियों के पास खुद अपनी कोई गारंटी नहीं बची है। कम दिनों में ज्यादा कमाएं। कल का क्या भरोसा? यही उनका रवैया है। ९ मंत्री और ५ राज्य मंत्रियों ने अभी तक काम शुरू नहीं किया है। फडणवीस, नए साल की शुरुआत हो गई है। इन मकड़जालों को साफ करो!

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