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संपादकीय : क्या प्रधानमंत्रियों की जाति होती है?

राजनीति में अगर किसी के पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं है, तो वह अपनी जाति पर आ जाता है। खुद की जाति को उजागर करता है। जाति को लेकर उतावला हो जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी वही किया है। जब प्रधानमंत्री अपनी जाति आदि का रोना रोने लगे और उस पर वोट मांगने लगे तो समझ लेना चाहिए कि इस प्रधानमंत्री ने जनता और देश के लिए कुछ नहीं किया है और जाति ही उसका मुख्य आधार है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘मैं ओबीसी हूं।’ २०१४ में वे महंगाई और भ्रष्टाचार कम करने के मुद्दे पर वोट मांग रहे थे। साल २०१९ में उन्होंने ‘पुलवामा’ के शहीदों के नाम पर वोट मांगे और अब राम मंदिर के साथ वे खुद की जाति चलाने की कोशिश कर रहे हैं। ये धक्कादायक बात है। मोदी खुद को ‘ओबीसी’ बताते हैं। लेकिन ये उनकी चालबाजी है और मोदी देश को धोखा दे रहे हैं, यह खुलासा राहुल गांधी ने सबूत के साथ किया है। मोदी नकली ओबीसी हैं। मोदी का जन्म मोढ घांची जाति में हुआ। उत्तर में यह जाति ‘तेली’ के नाम से जानी जाती है। गुजरात में यह जाति पहले ओबीसी श्रेणी में शामिल नहीं थी। केंद्र में भाजपा की सत्ता आने पर उन्होंने अपनी मोढ घांची जाति को ‘ओबीसी’ में शामिल कर लिया। मोदी गुजरात के धनी और समृद्ध जाति में पैदा हुए और राजनीतिक लाभ के लिए उन्होंने खुद की जाति को ओबीसी में डाल दिया। इसलिए मोदी का यह आक्रोश कि वे ‘ओबीसी’ आदि हैं, झूठा है। गुजरात सरकार के समाज कल्याण विभाग ने २५ जुलाई १९९४ को एक अधिसूचना जारी की। तदनुसार, ३६ नई जातियों को ओबीसी श्रेणी में शामिल किया गया। जिसमें २५ (बी) क्रमांक पर मोढ घांची जाति शामिल है और उस जाति को ओबीसी में शामिल किया गया है। अब, हमारे प्रधानमंत्री मोदी जिस धनाढ्य मोढ घांची जाति से आते हैं, वह जाति दरअसल है क्या? इस जाति के लोग घानी से बनाए जाने वाले तेल का व्यापार करते हैं और उस व्यापार से वे काफी अमीर बन गए। इस जाति को गरीब या गरीबी रेखा से नीचे नहीं कहा जाता है। अर्थात वे कुछ भी हों फिर भी १० सालों तक प्रधानमंत्री पद का वैभव भोगने वाले व्यक्ति का मैं ओबीसी जाति का हूं इस तरह का प्रलाप करना क्या उचित है? मोदी के सूट-बूट १०-१५ लाख के, कलाई पर की घड़ी ५ लाख की, जेब में पेन ४ लाख की और अपनी उड़ान के लिए उन्होंने बीस हजार करोड़ का हवाई जहाज खरीदा। इसलिए ऐसे व्यक्ति के लिए बार-बार यह कहना कि मैं इस या उस जाति का हूं, अच्छा नहीं है। देश में आज कई राज्यों में ‘जाति बनाम जाति’ का संघर्ष उठ खड़ा हुआ है। महाराष्ट्र में ‘मराठा बनाम ओबीसी’ का टकराव पैदा हो गया है, जो कभी नहीं था और मोदी ने अपनी जाति का जिक्र कर इस टकराव में तेल ही उड़ेल दिया है। लोकमान्य तिलक, शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे खरे तौर पर तेलियों-तंबोलियों के नेता थे। सचमुच वे समाज के मेहनतकशों का नेतृत्व कर रहे थे। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, भगत सिंह, राजगुरु ने भी ‘जाति’ की बात नहीं की। पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रधानमंत्रियों पर भी ‘जाति’ का मुखौटा लगाकर विलाप करने की नौबत नहीं आई। क्योंकि उनका राष्ट्रीय कार्य, विकास कार्य बहुत बड़ा था और ये लोग निराशा से ग्रसित नहीं थे। प्रधानमंत्री मोदी के साथ ऐसा नहीं है। दस साल बाद भी वे बेहद असुरक्षित हैं और उसी आधार पर जाति-धर्म के मुद्दों की राजनीति करते हैं। मोदी को बार-बार झूठ बोलना पड़ता है। इतिहास के झूठे सबूत देने पड़ते हैं। देश का निर्माण करने वाले नेहरू जैसे महान व्यक्तित्व पर कीचड़ उड़ाना पड़ता है। क्योंकि खुद की उपलब्धियां दूसरों के बनिस्बत छोटी हैं। मंदिरों में जाना, पीतांबर पहनना, ध्यानमग्न फोटो खिंचवाना, माथे पर भस्म लगाना, उपवास आदि का प्रचार करना, अयोध्या से दुबई मंदिरों के उद्घाटनों का समारोह कर लोगों को मगन करना यह किसी प्रगतिशील राष्ट्र के नेता का काम नहीं है। लेकिन मोदी यही करते हैं। नेहरू ने ऐसा नहीं किया इसलिए मोदी नेहरू पर गंदी टिप्पणी करते हैं। नेहरू दुनिया भर की प्रौद्योगिकीय और विज्ञान में दिलचस्पी लेते रहे। १९४९ में नेहरू अमेरिका गए और अल्बर्ट आइंस्टीन से मिले। मुलाकात के अंत में नेहरू ने आइंस्टीन से कहा, ‘सर, आप जीनियस और महान हैं। आने वाली पीढ़ियां आपको हमेशा याद रखेंगी।’ इस पर आइंस्टीन ने जवाब दिया, ‘मिस्टर नेहरू, कौन कितना महान है, यह २१वीं सदी में पता चल जाएगा।’ आइंस्टीन के उत्तर में एक छिपा हुआ गूढ़ अर्थ था। उस मुलाकात के ७०वें वर्ष के बाद प्रत्येक भारतीय नागरिक को यह एहसास हुआ कि आइंस्टीन ने सौ फीसदी सच कहा था। क्योंकि आज भी देश का स्वयंभू ओबीसी प्रधान सेवक अपने हर अपराध से छुटकारा पाने के लिए देश के पहले मेधावी प्रथम सेवक की शरण में जाता है। ‘नेहरू नेहरू नेहरू’ का जाप करता है। जो व्यक्ति अपनी मृत्यु के ५६ साल बाद भी ५६ इंच की छाती रखने वाले प्रधानमंत्री को सुबह, शाम, रात लगातार याद आता है, वह व्यक्ति सचमुच कितना महान होगा? सचमुच अल्बर्ट आइंस्टीन जीनियस थे। उन्होंने अपनी पहली यात्रा में ही नेहरू की महानता को पहचान लिया। भले ही नेहरू का निधन ५६ साल पहले हो गया हो, लेकिन उनकी महानता कायम है। महान नेहरू ने जाति-धर्मनिरपेक्ष देश बनाने का सफल प्रयास किया। उनकी धर्मनिरपेक्षता के विषय में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन देश का मन बंटे ऐसा काम उन्होंने नहीं किया। खुद की जाति का प्रचार कर राजनीति करने का वक्त उन पर कभी नहीं आया। इतिहास हमें बताता है कि वे हर संकट के सामने धैर्यता से खड़े रहे। उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए इतिहास की व्यर्थ खोज में समय बर्बाद नहीं किया। उन्होंने लोगों को देश के निर्माण के लिए काम में लगाया। उन्होंने थालियां-तालियां, अक्षत, व्रत-क्रिया कलापों में लोगों को उलझाए नहीं रखा। उन्होंने लोगों को धर्म की अफीम गोली और जाति का गांजा नहीं दिया। उन्होंने ज्ञान के मंत्र को कायम रखा। इसलिए उन पर बार-बार खुद की जाति का उद्धार करने का वक्त नहीं आया। मोदी रोज खुद की जाति बताते हैं। सच तो यह है, प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की कोई ‘जाति’ नहीं होती। लेकिन मोदी को जाति में रमते हैं! इसलिए आइंस्टीन उन्हें कभी भी नहीं मिलेंगे!

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