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संपादकीय : जहां तहां गंगोपाध्याय!

मोदी काल राष्ट्र, संविधान और लोकतंत्र के लिए अशुभ काल है। सभी संवैधानिक संस्थाओं पर भाजपा ने ‘अपने’ लोगों को नियुक्त कर इस व्यवस्था की प्रतिष्ठा को धूल में मिला दिया है। यहां तक ​​कि चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्थाओं को भी राजनीति के हॉर्स ट्रेडिंग में खड़ा कर भाजपा ने संवैधानिक घोटाला किया है। कोलकाता हाई कोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने इस्तीफा दे दिया और सीधे भाजपा में शामिल हो गए। इस्तीफा देने के बाद इन महाशय ने प्रेस कॉन्प्रâेंस की और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ खूब आग उगला। अब साफ हो गया है कि जस्टिस महाराज भाजपा से चुनाव लड़ेंगे। इसका सीधा मतलब यह है कि न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय न्यायासन पर बैठकर भाजपा की एजेंटगीरी कर रहे थे और न्यायालय में भी ‘सत्यमेव जयते’ इस घोष वाक्य के नीचे बैठकर पैâसलों में पक्षपात कर रहे थे। पिछले दो वर्षों में इन गंगोपाध्याय महोदय ने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार के खिलाफ करीब २२ मामलों में सीबीआई जांच का आदेश दिया। तृणमूल कांग्रेस के कुछ मंत्रियों को जेल भेजा। यानी जस्टिस गंगोपाध्याय के पैâसलों पर भाजपा का प्रभाव था और उन्होंने सीधे पैâसले दिए जिससे तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी मुश्किल में पड़ गर्इं। इसलिए गंगोपाध्याय द्वारा दिए गए सभी पैâसलों की समीक्षा या पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। गंगोपाध्याय के राजनीति में प्रवेश बाबत और उनके पिछले पैâसलों पर सवाल उठना सहज ही है। गंगोपाध्याय का राजनीति में प्रवेश करने के निर्णय का मतलब न्यायपालिका का पतन है और ये इस बात का उदाहरण है कि देश की न्यायपालिका किसके प्रभाव में काम कर रही है। ‘इफ द कंडक्ट इज नॉट प्रॉपर इट शुड बी एक्सपोज्ड’, ‘यदि आचरण उचित नहीं है तो उसे उजागर किया जाना चाहिए।’ ऐसा पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.एन. भगवती ने कहा था। क्योंकि न्यायालय के आधार पर भारतीय लोकतंत्र खड़ा है और गंगोपाध्याय जैसे उसके खोखले स्तंभों को अब उखाड़ ही देना चाहिए। अदालतें लोगों के लिए हैं। वे लोगों के प्रति जिम्मेदार हैं। इसलिए लोगों को भी उनके दुराचार के बारे में पूछने का अधिकार है। हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में ऐसे कितने गंगोपाध्याय भाजपा ने बिठाकर रखे हैं और वे न्याय के आसन पर विराजमान होकर किस तरह की हॉर्स ट्रेडिंग कर रहे हैं इसका पता चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ सिंह को लगाना है। चंडीगढ़ मेयर घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई कि राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग चल रही है। चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में चुनाव अधिकारी ने मतपत्रों से छेड़छाड़ की और हारे हुए भाजपा उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया। जब मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो जस्टिस चंद्रचूड़ के सामने दोबारा वोटों की गिनती हुई और उन्होंने ‘आप’ के उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया। अगर चंद्रचूड़ की जगह कोई भाजपाई गंगोपाध्याय होता तो नतीजा क्या होता, इसका अंदाजा सभी को है। भाजपा की नीति चुनाव आयोग में गंगोपाध्याय, राजभवन में गंगोपाध्याय और सर्वत्र अपने गंगोपाध्याय को नियुक्त कर मन माफिक परिणाम प्राप्त कर और उसके आधार पर लोकतंत्र और स्वतंत्रता को कुचलना है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रशिक्षित किया जाए। क्योंकि हर जगह गंगोपाध्याय एक गुजरात पैटर्न है और सुप्रीम कोर्ट ने उस पर ताकीद दी है। एक स्वायत्त न्यायपालिका किसी भी गणतंत्र का हृदय होती है। इसी महान व्यवस्था पर लोकतंत्र की नींव, उसकी शाश्वत शक्ति का स्रोत, सब कुछ निर्भर है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने २४ मई, १९४९ को संविधान सभा में कहा था कि हमारे न्यायाधीश ‘प्रथम श्रेणी’ और ‘सर्वोच्च निष्ठावान’ व्यक्ति होने चाहिए और न्याय प्रशासन में सरकार या किसी अन्य द्वारा बाधा नहीं डालनी चाहिए, लेकिन जवाहरलाल नेहरू के ये मानदंड मौजूदा मोदी सरकार को स्वीकार्य नहीं हैं। उनके मुताबिक सरकार का मतलब मोदी-शाह है। देश में उनके राजनीतिक विरोधी न्याय के पात्र नहीं हैं। वे ऐसे न्यायाधीश चाहते हैं जो वही पैâसले दें जो मोदी-शाह चाहते हैं और इसीलिए भाजपा ने जगह-जगह ‘गंगोपाध्याय’ पैदा किए। न्यायपालिका के लोगों को यह भी भान नहीं रहा है कि उन्हें कम से कम कानून का पालन करना ही चाहिए। सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों को महत्वपूर्ण ‘स्थान’ चाहिए होता है और उसके लिए वे जब कुर्सी पर रहते हैं उसी वक्त शासकों के साथ मिलकर काम करते हैं। यही न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और गंगोपाध्याय निर्माण का उद््गम है। राम जन्मभूमि मामले में भाजपा को पैâसला सुनाने वाले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई तुरंत ही राज्यसभा के सदस्य बन गए। कुछ न्यायाधीश राज्यपाल बन गए, कुछ आयोग के अध्यक्ष बन गए, कुछ विदेश में हाई कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किए गए और कुछ सीधे राजनीति में प्रवेश कर ‘गंगोपाध्याय’ बन गए। यह भारतीय न्यायपालिका का अधोपतन है। इसे रोकना ही पड़ेगा!

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