मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : पहले लूट, फिर दरों में बढ़ोतरी!

संपादकीय : पहले लूट, फिर दरों में बढ़ोतरी!

एसटी के प्रवास किरायों में बेतहाशा बढ़ोतरी के चलते मौजूदा हुक्मरानों के खाने के दांत एक बार फिर सामने आ गए हैं। दो महीने पहले ही विधानसभा चुनाव के दौरान ‘लाडली बहन’, ‘लाडले भाई’ आदि योजनाओं की शेखी बघारते हुए जो चाहे वह मुफ्त देने की तैयारी दिखा रहे थे। यहां तक ​​कि वोटरों के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थे। बेशक, वे कभी भी अपने घर से या अपनी जेब से नहीं देनेवाले थे। उनका मकसद सरकारी खजाना लूटना और यह दिखावा करना कि हम दानी हरिश्चंद्र हैं। यह नौटंकी मौजूदा शासकों के दिखावे के दांत हैं। लेकिन चुनाव खत्म हो गए, सत्ता मिल गई, कुर्सियां मिल गर्इं, बंगले बंट गए, लाल बत्ती वाली गाड़ियां मिल गर्इं। इससे सत्ताधारियों के खाने के दांत सामने आने लगे हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण शुक्रवार से एसटी किराये में १५ फीसदी की बढ़ोतरी है। दिवाली के बाद से ही ऐसी सुगबुगाहट चल रही थी कि महाराष्ट्र में आम लोगों के लिए यात्रा का मुख्य साधन एसटी बस यात्रा महंगी हो जाएगी। लेकिन उस समय शासक चुनाव की सूरत में जनता का कोपभाजन नहीं बनना चाहते थे इसलिए उस वक्त
स्थगित की गई
एसटी की कीमत में बढ़ोतरी की आखिरकार अब घोषणा कर दी गई है। इस किराया वृद्धि की घोषणा करते समय महामंडल एवं परिवहन विभाग के मंत्री ने इसका मुख्य कारण बताया, वह है एसटी महामंडल का घाटा। एसटी का खर्च आय से अधिक है। प्रतिदिन तीन करोड़ रुपए का घाटा होने से एसटी महामंडल की स्थिति चरमरा गई है इसलिए यह किराया वृद्धि अपरिहार्य थी, ऐसा परिवहन मंत्री ने स्पष्टीकरण दिया। यदि परिवहन मंत्री का यह दावा सही है तो क्या उसी सरकार और उसी महामंडल का यह दावा था कि सितंबर २०२४ तक एसटी मुनाफे में थी झूठा था? अभी चार महीने पहले एसटी महामंडल के उपाध्यक्ष ने पत्रकारों को बताया था कि एसटी महामंडल किस तरह तेजी से वित्तीय छलांग लगा रहा है और वैâसे नौ साल बाद एसटी महामंडल ने १७ करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया है। एसटी उपाध्यक्ष ने इस उपलब्धि के लिए महामंडल के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को बधाई भी दी। एसटी के लाभ का दिलचस्प विवरण अखबारों में प्रकाशित हुआ तो इन चार महीनों में मिंधे मंडल ने ऐसा क्या किया कि १६ करोड़ ८६ लाख रुपए का मुनाफा कमानेवाली एसटी हर दिन तीन करोड़ रुपए के घाटे में डूब गई? इसका एक ही मतलब है कि सितंबर में वित्तीय छलांग का महामंडल का दावा झूठा था या वर्तमान परिवहन मंत्री का यह दावा कि एसटी वित्तीय संकट में है, झूठ है। दोनों में से सच्चाई क्या है? इस का
जवाब जनता को
कौन देगा? हाल ही में शिवसेना ने एसटी महामंडल में दो करोड़ रुपए के घोटाले का खुलासा किया था। निगम ने १,३१० निजी बसें खरीदने के लिए जो टेंडर जारी किए हैं, वह सीधे तौर पर सरकारी खजाने पर डाका है। ये ठेके गुजरात, तमिलनाडु और दिल्ली की कंपनियों को दिए गए। प्रति किलोमीटर दोगुनी-तिगुनी दरें वसूलने वाली कंपनियों को खैरात बांटी गई। शिवसेना के हमले के चलते मुख्यमंत्री ने निविदा रद्द कर दी और मिंधे मंडल के खाने के दांत तोड़ दिए, लेकिन वास्तव में एसटी और सरकार को चूना लगाने वाले ‘सेठजी’ समूहों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाने चाहिए, लेकिन इसके बदले सरकार एसटी की दरें बढ़ाकर जनता से ही ‘वसूली’ कर रही है। राज्य सरकार ने एसटी यात्रा का किराया १५ फीसदी बेतहाशा बढ़ाकर गरीब और आम यात्रियों की जेब काट ली है। हालांकि, एसटी महामंडल का आदर्श वाक्य ‘गांव जहां एसटी वहां और जहां सड़क वहां बस’ है, लेकिन ‘महामंडल जहां घोटाले वहां और घोटालों से खोके’ वर्तमान शासकों का आदर्श वाक्य बन गया है। इससे जनसेवा का व्रत लेने वाले एसटी महामंडल का खजाना लुट गया और इस लूट के घाटे का बोझ अब एसटी के आम यात्रियों पर डाला जा रहा है। इसका मतलब यह है कि ‘पहले लूट और फिर दरों में बढोतरी’ चल रही है। अब जनता को शासकों के खाने के दांत खट्टे कर देने चाहिए!

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