देश आजाद होने के बाद पंडित नेहरू ने जनता को संदेश दिया, हर भारतीय को देश के निर्माण के लिए और ज्यादा मेहनत करनी होगी। (‘आराम हराम है’), लेकिन नेहरू की उल्टी-सुल्टी आलोचना करनेवाले ‘अमृतकाल’ वालों ने लगता है देश की ज्यादातर जनता को मुफ्तखोर और आलसी बनाने की ठान ली है। आराम करें, सरकार घर बैठे मुफ्त अनाज देगी, सुप्रीम कोर्ट ने इस ‘मुफ्तखोरी’ यानी रेवड़ियां संस्कृति पर फटकार लगाई है। प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का विचार रखा था, लेकिन क्या उनकी सरकार लोगों को ‘परजीवी’ बना रही है? ये सवाल सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है। चुनावों से पहले, ‘लाडली बहन’ या अन्य मुफ्त योजनाओं के कारण लोगों की इच्छा काम करने की नहीं होती है। ऐसा कहते हुए जस्टिस भूषण गवई ने महाराष्ट्र की ‘लाडली बहन’ योजना का उदाहरण दिया। मतलब साफ है, महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के कंधे पर बंदूक रखकर ‘लाडली बहन’ योजना को खत्म करती नजर आ रही है। ‘लाडली बहन’ योजना का वित्तीय बोझ महाराष्ट्र सरकार से नहीं झेला जा रही है और अब चुनाव जीत चुकी है तो लाडली बहनों की जरूरत खत्म हो गई है। यह कभी न कभी तो होना ही था, लेकिन यह इतनी जल्दी होगा नहीं सोचा था कि लोग आलसी हो गए हैं। लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त राशन और मासिक पैसा मिलने लगा है। इसकी वजह से पूरा सामाजिक ढांचा बिगड़ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कड़े शब्दों में कही है। महाराष्ट्र समेत पूरा देश कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। भारत की अर्थव्यवस्था २०५ लाख करोड़ के कर्ज के बोझ तले दम तोड़ रही है। भारत पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। महाराष्ट्र जैसे राज्य पर करीब
साढ़े छह लाख करोड़ का कर्ज
है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी वैâग ने महाराष्ट्र की वित्तीय दुर्व्यवस्था पर गंभीर चिंता जताई है। फिर भी चुनाव से पहले सरकारी खजाने पर बोझ डालकर वोट खरीदने की कोशिश की गई। देश में सब कुछ मुफ्त मिल रहा है इसलिए पेट की चिंता करने की कोई वजह नहीं है। इसका असर कृषि क्षेत्र, निर्माण व्यवसाय पर पड़ा। सरकार (मोदी) ८५ करोड़ लोगों को घर बैठे मुफ्त अनाज देती है। यह अनाज अधिक होने पर लोग उस अनाज को दोबारा दुकानदारों को बेचकर पैसा कमाते हैं। जिसके चलते मुफ्त में खाना और खर्च के लिए पैसे मिलते हैं। ऐसी रेवड़ियां योजनाएं लोगों को काम करने के लिए बाहर जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप निर्माण क्षेत्र में श्रमिकों की कमी हो जाती है, ऐसा लार्सन टुब्रो के अध्यक्ष श्री सुब्रह्मण्यम ने कहा। खुद जस्टिस गवई कहते हैं, ‘मैं एक किसान परिवार से हूं। महाराष्ट्र में चुनाव पूर्व मुफ्त घोषणाओं के कारण खेतिहर मजदूरों की कमी हो गई है। यह एक गंभीर मसला है।’ ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य के लिए श्रमिक उपलब्ध नहीं हैं। वे काम करने की बजाय घर पर बैठकर अपना पेट भर रहे हैं तो फिर मेहनत क्यों करें? यह सवाल है। मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली बिल, हर महीने बैंक में पैसा, मुफ्त अनाज, यानी ऐसी सभी योजनाएं सरकार की कर्ज लेकर दिवाली है। इसकी बजाय, अगर हर हाथ को काम और मजदूरों को उचित दाम दिया जाए, किसानों की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए तो ऐसी रेवड़ियां बांटने की नौबत नहीं आएगी। लोगों को आश्रय और हाथों को काम देना चाहिए। सिर्फ ‘राम’ देने से काम नहीं चलेगा। गर्व से कहा जाता है कि ५० करोड़ लोगों ने प्रयागराज के महाकुंभ में डुबकी लगाई है। उन्हें अध्यात्मिक सुख-शांति मिली ही होगी, लेकिन सुखी जिंदगी के लिए जरूरी नौकरियां और रोजगार का क्या? यह सब हासिल करने के लिए ये लोग कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन अंत में इन्हें
सरकार की ‘रेवाड़ी’ योजनाओं पर ही
निर्भर रहना पड़ता है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी ‘आत्मनिर्भर’ भारत का सपना दिखाकर सत्ता में आए, लेकिन वे हमेशा लोगों को परजीवी बनाकर हमेशा परग्रह या परदेश में घूमते रहते हैं। चुनावी जीत का जश्न मनाया जाता है। उस उल्लास में ये परजीवी शामिल होते हैं और ‘जय’ करनेवाले मुफ्त अनाज, ‘लाडली बहन-भाई’ योजनाओं के लाभार्थी हैं। यही ‘सब का साथ, सबका विकास’ नीति का अवमूल्यन है। महाराष्ट्र में सत्ता में आते ही मौजूदा शासकों ने लाडली बहनों का मानधन २,१०० रुपए बढ़ाने और किसानों का ३ लाख तक का कर्ज माफ करने का वादा भी किया था, लेकिन अब वे सभी योजनाओं को बंद करने जा रहे हैं। इसका असर शिव-भोजन थाली जैसी गरीबों की योजनाओं पर पड़ता है। मनरेगा जैसी योजना में बहुत गड़बड़ियां हैं। भ्रष्टाचार तो है ही। जो लोग काम नहीं करते उन्हें हाजिरी रजिस्टर में हाजिर दिखाकर पैसे निकाल लिए जाते हैं और उस पर भी रिमार्क किया गया है। लोगों को अकर्मण्य बनाकर अपनी दया पर जीने के लिए छोड़ दिया गया और इसीलिए ये रेवड़ी योजनाओं की बरसात चल रही है। किसी वक्त प्रधानमंत्री मोदी केजरीवाल की रेवड़ी संस्कृति पर हमला बोलते थे, लेकिन आश्चर्य की बात है कि वही मोदी काम या योजनाओं पर नहीं, बल्कि रेवड़ियों की वर्षा कर चुनाव जीतने लगे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर ध्यान दिया है, लेकिन फायदा क्या! सुनार कान छेदे और लोहार हथौड़ा मारे तब भी केंद्र सरकार अपनी मस्ती ही में रहेगी। सरकार सुप्रीम कोर्ट के कंधे पर बंदूक रखकर कई मुफ्त योजनाएं बंद कर देगी, यह तय है!