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संपादकीय : रशिया की धरती से…मोदी के शांति आख्यान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर हैं। जुलाई माह में भी वे वहां गए थे। अब वे १६वें ‘ब्रिक्स’ सम्मेलन के मौके पर रूस गए हैं। वैसे भी मोदी किसी न किसी वजह से विदेश घूमते रहते हैं। मौका मिलते ही उनका विमान किसी देश के लिए उड़ान भरता है। जुलाई महीने की तरह अब भी रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने मोदी से मुलाकात की। इस बार पुतिन की ओर से की गई मजाकिया टिप्पणी को ही नया कहा जा सकता है। पुतिन ने कहा, ‘हमारे संबंध इतने घनिष्ठ हैं कि हमें किसी अनुवादक की जरूरत नहीं है।’ इस पर मोदी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए। अब पुतिन ने जो बात कही वह मोदी को वैâसे समझ आ गई? या तो पुतिन हिंदी में बोले होंगे या मोदी चूंकि विश्वगुरु हैं इसलिए रशियन भी जानते होंगे। लेकिन हिंदी अनुवाद की वजह से मोदी को पुतिन की टिप्पणी समझ में आई! मोदी-पुतिन की मुलाकात तीन महीने में दो बार होती है, चर्चाओं का दौर चलता है, अत: मोदी-पुतिन के रिश्ते घनिष्ठ होंगे! पुतिन और मोदी दोनों के स्वभाव की विशिष्टताएं, कार्यशैली, अहंकार, दोहरापन जैसी कई चीजें एक सी हैं। पुतिन ने अपनी जिद और अहंकार के चलते यूक्रेन पर युद्ध थोप दिया। वहां लाखों निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं लेकिन पुतिन पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। मोदी उनसे कहां अलग हैं? मणिपुर जैसा संवेदनशील सीमावर्ती राज्य डेढ़ साल से जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है। इसमें हजारों निर्दोष लोग मारे गए हैं। लेकिन मोदी भी शांत हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध बंद होना चाहिए, उनके बीच की समस्याएं शांति से सुलझ सकती हैं, रूस-यूक्रेन की धरती पर जाकर ऐसे आख्यान देने वाले मोदी जब भारत में होते हैं तब वे न तो मणिपुर की हिंसा की बात करते हैं और न ही उन्हें इस बात का आत्मबोध होता है कि यहां की समस्याएं भी शांति के मार्ग से सुलझ सकती हैं। जुलाई में मोदी यूक्रेन की जंग के मैदान में गए थे। उस वक्त भी उन्होंने बोधामृत उपदेश दिया कि ‘विश्व को युद्ध की नहीं, शांति की आवश्यकता है।’ अब भी उन्होंने रूस की धरती से वही टेप दोबारा बजाया। ‘समस्याओं को शांति से हल किया जा सकता है, हम हरसंभव सहायता देने के लिए तैयार हैं।’ ऐसे शांति के कबूतर उन्होंने रूस के कजान में उड़ाए। क्यों मोदी जी, आपको ऐसा नहीं लगता कि शांति के इन कबूतरों को मणिपुर के लिए भी उड़ाना चाहिए? यूक्रेन और रूस के बीच शांति के लिए आप जरूर मदद करें, लेकिन पहले अपने पैरों के नीचे जल रहे मणिपुर पर नजर डालें! ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कॉम की गुहार आपका दिल क्यों नहीं पसीज पाई? मासूम यूक्रेनियनों की चीखों से पुतिन के कान के पर्दे भी कहां कांप रहे हैं? एक ओर पुतिन ‘यूक्रेन संघर्ष का समाधान शांतिपूर्ण चर्चा में ही है’ ऐसा कहने वाले मोदी से खुशी-खुशी गले मिलते हैं और दूसरी तरफ उनके शांति के प्रवचनों को अनदेखा करते हुए यूक्रेन पर बम बरसाना जारी रखते हैं। मोदी भी रूस की धरती से विश्व शांति के कबूतर उड़ाते हैं। वे, ‘सभी समस्याओं का समाधान शांति से हो सकता है’ इस तरह का बोधामृत प्रदान करते ​​हैं और भारत लौटने पर उनके मन को यह विचार भी नहीं छूता कि मणिपुर समस्या का समाधान शांति में है। एक ‘विश्वगुरु’ के रूप में वह ‘शांति दूत’ बनने की कोशिश करते हैं, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री के रूप में मणिपुर के लिए शांति दूत नहीं बनते। उनकी पार्टी के विचारों की ‘संतुष्टि’ धार्मिक ध्रुवीकरण और भड़काने में है, पिछले १० वर्षों के कृत्यों से यह साबित करने वाले मोदी रूस की धरती से शांति का आख्यान देते हैं। पुतिन और मोदी के बीच ‘बिना अनुवादक के समझे जा सकने वाले घनिष्ठ संबधों’ का राज दोनों के इसी पाखंड में छिपा होना चाहिए!

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