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संपादकीय : हारेंगे नहीं ‘गजाभाऊ’!

संयुक्त महाराष्ट्र की स्थापना के बाद मुंबई में मराठी मानुस की जो दयनीय स्थिति हुई थी उसी की पुनरावृत्ति फिर से होती दिखाई दे रही है। सोशल मीडिया पर देवेंद्र फडणवीस की आलोचना से फडणवीस के एक खासमखास ‘बाहरी’ समर्थक इस कदर गुस्साए कि उसने एक अज्ञात मराठी मानुस ‘गजाभाऊ’ को ‘दुनिया में जहां भी होगा, उसे उठाकर लाएंगे’ की धमकी दे डाली। उठाकर लाकर उसकी क्या पूजा करोगे? उठाकर लाएंगे और मारेंगे, खत्म करेंगे, यही उस धमकी का निहितार्थ है। यह इस बात का सटीक उदाहरण है कि कैसे इन लोगों ने मुंबई में भाजपा के समर्थन के चलते हंगामा बरपाया है और वे किस तरह मराठी जनता को धमकी दे रहे हैं। ‘गजाभाऊ’ किरदार सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय हैं। वे महाराष्ट्र, मराठी मानुस जैसे विषयों पर अपनी मजबूत राय व्यक्त करते रहते हैं। ये जनाब राज्य के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर मुखरता से अपनी राय रखते हैं और सोशल मीडिया पर इसे लेकर वाद-प्रतिवाद भी होते रहते हैं।
भाजपा के नामर्द मराठा
भाजपा कार्य ‘ट्रोल’ का जैसे को तैसा जवाब देने का महाराष्ट्र के ‘गजाभाऊ’ मर्द मावले की तरह कर रहे हैं और उसका दर्द भाजपा के समर्थकों के पेट में हो रहा है। आश्चर्य की बात है कि बात पेट दर्द से लेकर सीधी धमकियों तक पहुंच गई, लेकिन फडणवीस का ध्यान इस पर नहीं गया। यह सरेआम कहा जाता है कि फडणवीस की पार्टी के अधिकांश उम्मीदवार वोट शेयर से नहीं, बल्कि पैसे, जांच प्रणाली और ईवीएम हेर-फेर से जीते हैं इसीलिए यदि उनकी जीत पर कोई सवाल उठाता है तो उनके लोग आलोचकों पर टूट पड़ते हैं। यह स्वस्थ लोकतंत्र नहीं है। फडणवीस के जीतते ही, कई बैंक घोटालों, अपहरण और लूटमार जैसे अपराधों में फंसा एक व्यक्ति ‘सागर’ बंगले में जाता है और फडणवीस को अपने कंधों पर बिठाकर नाचता है, वही व्यक्ति बाद में मराठी मानुस को मारने की धमकी देता है और भाजपा के नामर्द मराठा इस पतन को खुली आंखों से देखते हैं। यह महाराष्ट्र धर्म की अवमानना ​​है।
‘गजाभाऊ’ का दुश्मन, महाराष्ट्र का दुश्मन।
‘गजाभाऊ’ को एक व्यक्ति नहीं, बल्कि मराठी जनमानस का प्रतीक माना जाना चाहिए और जो कोई भी उन्हें सार्वजनिक रूप से धमकी देता है उसे महाराष्ट्र और मराठी जनमानस का दुश्मन माना जाना चाहिए। यदि इस शत्रु ने फडणवीस को उठाकर नचाया होगा तो महाराष्ट्र की जनता को यह छवि अपने मस्तिष्क में अंकित कर लेनी चाहिए। आज हमारे पास सत्ता नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कल नहीं आएगी। राजनीति में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। पांच साल पहले चंद्राबाबू आंध्र में हार गए थे, लेकिन आज वह पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए और उनकी बैसाखी पर मोदी प्रधानमंत्री बने। सत्ता में आते ही चंद्राबाबू ने सबसे पहले क्या किया, जिन लोगों ने, जब वे सत्ता में नहीं थे, उन पर और उनके लोगों पर हमले किए, अपमानित किया और तेलुगू अस्मिता पर हमला किया, ऐसे लोगों को अच्छी तरह सबक सिखाया। कुछ लोगों के हाथ-पैर काट छांट दिए गए। जगनमोहन रेड्डी ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर जो कुछ हुआ उसका रक्तरंजित चित्रमय प्रदर्शन किया, लेकिन राजनीति में बदला लेने का फॉर्मूला कायम है और अब बदले के शस्त्र भी बदल गए हैं।
शहादत का अपमान
एक मराठी मानुस को उठाकर ले आने और खत्म करने की भाषा बोलनेवालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। मुंबई के खून को चूसकर कमाई के टॉवर्स बढ़े हैं। मुंबई की उस मिट्टी के नीचे १०५ शहीदों के प्राण और आत्माएं हैं। १०५ शहीदों की शहादत की वजह से मुंबई महाराष्ट्र को मिली। मराठी मानुस के श्रम और रक्त से प्राप्त मुंबई का मोल शायद ‘कमला’ बाई के भक्तों को नहीं है, क्योंकि वे महाराष्ट्र के संघर्ष में कभी नहीं थे, लेकिन असंख्य स्वाभिमानी ‘गजाभाऊ’ तब भी थे और आज भी हैं। इनमें से असंख्य गजाभाऊ ने लाठियां खार्इं, कारावास भोगा, गोलियां खार्इं और महाराष्ट्र के दुश्मनों को गाड़ दिया। आज मुंबई में अडानी, लोढ़ा, गुंडों का झुंड ही घुस आया है और मराठी लोगों की नाकेबंदी शुरू कर दी। अब मराठी मानुस को उठाकर लाने मारने की भाषा शुरू हो गई है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी धमकी देनेवाले लोग फडणवीस के भीतरी वैंâप के हैं! इसलिए मराठी मानुस को अधिक एकजुट और सावधान रहना होगा। साथ ही उतना ही निर्भय होकर ‘हर-हर महादेव’ का जयघोष भी करना है।
फडणवीस जवाब दें
बेशक ये अच्छा हुआ, इस बहाने भाजपा के पेट में पल रही मराठी नफरत की उबकाई बाहर आ गई। अब महाराष्ट्र राज्य का नेतृत्व उन्हीं के हाथ में जा रहा है इसलिए लड़ाई को रोका नहीं जा सकता। गजाभाऊ, अब क्या करोगे? वे ‘मारते-मारते-मरो’ मंत्र को जागृत करके लड़ेंगे और महाराष्ट्र के शत्रुओं को मारेंगे। फडणवीस, आप किसके पक्ष में खड़े होंगे? गजाभाऊ या आपको कंधे पर उठाकर नाचनेवाले महाराष्ट्र के दुश्मनों के पक्ष में? जो भी है एक ही बार में बता दीजिए!

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