प्रयागराज में महाकुंभ शुरू होने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी ने इस धार्मिक महोत्सव की जोर-शोर से मार्केटिंग शुरू कर दी। इस तरह से राग अलापा जा रहा है कि जैसे कुंभ समारोह न पहले कभी हुआ है और न कभी होगा, क्योंकि मोदी आदि हैं तो यह योग १४४ वर्ष बाद आया है, अन्यथा यह संभव ही नहीं होता। कहा गया कि कुंभ समारोह को सुचारु रूप से संपन्न कराने के लिए दस हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन कुंभ स्नान के लिए आए आम लोग खुले में सो रहे हैं, कराह रहे हैं। क्योंकि सारी व्यवस्थाएं वीआईपी लोगों के लिए हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कल कुंभ स्नान के लिए पहुंचे। गंगा में डुबकी लगाई। रक्षा मंत्री सुरक्षित डुबकी लगा सकें इसलिए ‘घाट’ को पूरी तरह से बंद कर दिया गया। इससे साधु-संतों, संन्यासियों और जनता को परेशानी हुई। रक्षा मंत्री की ‘डुबकी’ से उम्मीद है कि लद्दाख में घुसे चीनी सैनिक पीछे हट जाएंगे और चीन भारत की उस जमीन को आजाद कर देगा जो उसने निगल ली है। एक बार ऐसे ही एक समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने दलितों के पैर धोए थे और उनका यह समारोह हम सभी ने देखा था। इससे दलितों के जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ा। इसके विपरीत देशभर में दलितों पर अत्याचार बढ़ गए। कुंभ समारोह पवित्र है और वर्षों से चला आ रहा है। कुंभ आयोजन का कभी भी राजनीतिकरण नहीं किया गया या श्रेय नहीं लिया गया, लेकिन अब यह चल रहा है। कहा जा रहा है कि कुंभ स्नान के लिए बीस करोड़ श्रद्धालु आएंगे। अखिलेश यादव का कहना है कि यह आंकड़ा फर्जी है। जब यहां भारत में ‘कुंभ’ उत्सव चल रहा था, तब यह बात सामने आई कि चीन ने व्यापार- उद्योग में एक बड़ी छलांग लगाई है। इस अवधि में चीन ने अपने विश्व व्यापार, निर्यात में आठ प्रतिशत की वृद्धि की। इससे वहां व्यापार और रोजगार में चमक आ गई। हमने विज्ञान और ज्ञान का मार्ग छोड़ दिया है और कुंभ में लीन हैं। भारत के वाणिज्य, रक्षा, उद्योग, रोजगार मंत्री स्नान के लिए घाट पर लाइन में खड़े हैं। वहां कई ऐसी चीजें हो रही हैं जो कुंभ की पवित्रता को नष्ट कर रही हैं। अनेक सुंदरियां खूबसूरत वेशभूषा धर
साध्वी होने की नौटंकी
कर रही हैं और उसका मॉडलिंग का पुलिंदा खुलता जा रहा है। कोई भी आकर खुद को साधु, साध्वी और संत, संन्यासी घोषित कर देता है। मीडिया उन्हें प्रचार देता है। भाजपा का आईटी सेल मार्वेâटिंग कर रहा है कि वैâसे लोग सर्वसंग परित्याग कर अध्यात्म की ओर बढ़ रहे हैं। अभय सिंह उर्फ आईआईटी बाबा इस काल में प्रसिद्ध हो गए, लेकिन यह उच्च शिक्षित युवक नशे का आदी होने के चलते उसे नशे में कुछ अलग ही ज्ञान बांट रहा था। गांजे और चिलम मारकर बेसुध नाचते हुए वीडियो प्रसिद्ध हो गया। इससे हिंदुत्व बदनाम हुआ। ये अभय सिंह उर्फ आईआईटी बाबा अब कुंभ से गायब हो गया है। अगर ये भाजपा का आदर्श हिंदुत्व है तो ये सब कुछ आनंद है। मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने वाले गांजा का सेवन करने वाले आध्यात्मिक पुजारी वैâसे हो सकते हैं? अध्यात्म के नाम पर ऐसे नशे के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हमारे वारकरी संप्रदाय के लाखों लोगों की दिंडी ही पवित्र कुंभ है, लेकिन उस दिंडी में ऐसी तुच्छ और नशीली बातें बर्दाश्त नहीं की जातीं। संत तुकाराम महाराज ने जोर देकर कहा है,
ऐसे संत जाते कळी। तोंडी तमाखूची नळी।। स्नानसंध्या बुडविली। पुढे भांग वोडवली।। भांग भुको, हे साधन। पची पडे मद्यपान।। तुका म्हणे अवघे सोंग। तेथे कैचा पांडुरंग।।
कुंभ में अनेक प्रताप और प्रमाद हो रहे हैं। इस मौके पर दूसरे धर्मों को भी बदनाम करने की कोशिश की गई। किसी हिंदू लड़के ने मुस्लिम नाम लेकर कुंभ में हमले की धमकी दी तो किसी हिंदू युवक ने फर्जी शेख बनकर कुंभ में ‘प्रैंक’ कर रहा था। नागा साधुओं के
अघोरीपने का भी प्रदर्शन
हुआ। नागा साधु श्मशान भूमि में अघोरी साधना करते हैं। वे गले में इंसानी खोपड़ियां और हड्डियां डालकर कुंभ में घूमते हैं… मनुष्य की हड्डियां खाकर अघोरी साधना करते हैं, ऐसा उस ‘आईआईटी’ बाबा ने कहा। भारत की युवा पीढ़ी के लिए यह आदर्शवाद क्या निर्धारित करेगा? ज्ञान, विज्ञान या श्मशान का यह अघोरवाद, इसका पैâसला करने की यह घड़ी है। लोकमान्य तिलक और आगरकर ने इस बात पर बहस की कि पहले आजादी या पहले सामाजिक सुधार। क्योंकि लोग ऐसी रूढ़ि, परंपरा व अघोरी क्रिया-कर्मों में फंस गए थे और उन्हें यह अंधविश्वास हो गया कि यही उनका हिंदू धर्म है। उन्हें उन अघोरी परंपराओं से निकालकर आजादी की लड़ाई में ले जाना आसान नहीं था। जनता को इन सभी अघोरीपन से बाहर निकाला गया और देश में प्रगति हुई, लेकिन मोदी युग में जनता को फिर से धार्मिक भांग का नशा करा के अवैज्ञानिक, पाखंडी, सड़े हुए और अघोरी अध्यात्मवाद की ओर धकेला जा रहा है। जो शिक्षित हैं वे त्यागकर नशेबाज आईआईटी बाबा की तरह चिलम फूंकते घूमें। यानी महंगाई और रोजगार जैसी समस्याओं की सुध ही नहीं रहेगी। मंत्री के ‘वीआईपी’ बनकर शाही स्नान की डुबकियां लगाने से संत जनता को चीन के हमले की कोई फिक्र ही नहीं होगी। कुंभ के कुछ नकली साधुओं ने युवा लड़कियों को ‘नशा’ देकर उनका अपहरण करने की कोशिश की। पुलिस की मदद से ये लड़कियां सुरक्षित अपने माता-पिता के पास पहुंच गर्इं, यह गंगामाई की कृपा थी। कुंभ समारोह पहले आयोजित किए गए थे। इसमें दुनियाभर के लोगों ने भी हिस्सा लिया। यह एक पवित्र पर्व है, एक धार्मिक कार्य है। हमारा धर्म तभी बचेगा जब इसकी पवित्रता बचेगी। हिंदू धर्म संस्कारी है। अघोरी और भ्रष्ट नहीं। गंगामाई सबकी है। तभी तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई गंगामईया को आनंदित करती रही। आज गंगा को भी अघोरी और संकुचित करने का प्रयास किया जा रहा है, जो अच्छा नहीं है। सामाजिक सुधारों की वास्तविक जरूरत आज है!