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संपादकीय : मंत्रियों को भी दें ‘ड्रेस कोड’!

ऐसे वक्त में जब महाराष्ट्र में शिक्षा व्यवस्था अस्त-व्यस्त हुई है, शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने राज्य के शिक्षकों को भी यूनिफॉर्म देने की घोषणा की है। शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड लागू करने के लिए सरकार धनराशि उपलब्ध कराएगी। विद्यार्थियों की यूनिफॉर्म तो है ही, अब शिक्षक भी यूनिफॉर्म में नजर आएंगे। बीच में महाराष्ट्र के मंदिरों के पुजारियों और भक्तों के लिए भी ड्रेस कोड लागू किया गया था। राज्य में छात्रों को समय पर यूनिफॉर्म नहीं मिल रहा है, लेकिन यूनिफॉर्म के लेन-देन में घोटाला होने की बात सामने आई है। अब शिक्षकों के यूनिफॉर्म ‘खरीदने’ और ‘टेंडरबाजी’ में दलाली खाने की होड़ मचेगी। अगर राज्य के शिक्षकों को यूनिफॉर्म मिलेगा तो इसमें कोई हर्ज नहीं कि ये यूनिफॉर्म मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और प्रशासनिक अधिकारी को भी मिले। महाराष्ट्र विधानमंडल में सत्र के दौरान तो मानो ‘पैंâसी ड्रेस’ प्रतियोगिता होती है और अपनी अमीरी दिखाने की कोशिश की जाती है इसलिए शासन में यह समानता सभी स्तरों पर आवश्यक है। राजनेताओं की मंडली का ‘ड्रेस कोड’ सफेद है, लेकिन कुछ लोग चमकीले और रंगीन कुर्तों, झब्बों का प्रदर्शन करते हैं और कुछ लोग बेवजह ही मंत्रालय और विधानमंडल में सूट-बूट पहनकर साहबी ठाट का प्रदर्शन करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी दिन में चार बार अपना ‘ड्रेस’ बदलते हैं तो उनके ड्रेस कोड का क्या करें? फिर वे एक बार में १० लाख का सूट पहनते हैं। उनके बिल्कुल उलट योगी आदित्यनाथ का ड्रेस कोड है।
भगवा कुर्ता और धोती
उनका ड्रेस कोड उनकी आध्यात्मिक जीवनशैली को सुशोभित करता है, लेकिन वे राजनीति में हैं और मुख्यमंत्री भी हैं। दक्षिण में राजनेता सफेद लुंगी और शर्ट में घूमते हैं, लेकिन यह ड्रेस कोड उनके स्कूल के छात्रों पर लागू नहीं है। चिदंबरम संसद और वैâबिनेट की बैठकों में अपनी ‘लुंगी’ कस करके आते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वे इस्त्री किए हुए शर्ट, पैंट और काले कोट में ही आते हैं तो सवाल ये है कि कौन-सा ड्रेस कोड सही है। महाराष्ट्र में अब शिक्षकों को यूनिफॉर्म मुहैया कराने का पैâसला राज्य के शिक्षा मंत्री भुसे ने लिया है। महाराष्ट्र की तिजोरी में पैसा नहीं है। आर्थिक तंगी के कारण लाडली बहनों के मानधन की रकम १,५०० से घटाकर ५०० कर दी गई। शिक्षकों के यूनिफॉर्म पर कितने करोड़ खर्च करेगी सरकार? और ये यूनिफॉर्म टेंडर किसे मिलेगा? मूलत: शिक्षकों का वेतन समय पर नहीं मिलता। सरकार को यूनिफॉर्म की बजाय शिक्षकों के वेतन, प्रशिक्षण, स्कूल के बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना चाहिए। पुन: शिक्षकों की सही संख्या क्या है? राज्य के किन शिक्षकों को सरकार यूनिफॉर्म देगी? क्या केंद्रीय विद्यालयों और इंटरनेशनल स्कूलों में यूनिफॉर्म नियम लागू होंगे या केवल जिला परिषद शिक्षकों के लिए यूनिफॉर्म अनिवार्य होगा? फिर यदि महानगरपालिका स्कूलों के शिक्षकों को भी यूनिफॉर्म की जरूरत होगी तो वैâसे? महाराष्ट्र में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में ३ लाख से अधिक शिक्षक हैं। निजी सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों की संख्या भी लगभग दो लाख है। इन सभी को साल में कम से कम तीन यूनिफॉर्म देना होगा इसलिए
एक बड़ा वित्तीय कारोबार
ऐसा होगा और हर कोई उस कारोबार में हाथ धोएंगे। अब यूनिफॉर्म यानी ड्रेस कोड केवल शिक्षकों या पुलिस के लिए ही क्यों हो? आईएएस अधिकारियों को भी यूनिफॉर्म दिए जाने चाहिए और मंत्रियों को अपनी यूनिफॉर्म खुद तय करनी चाहिए। सिर्फ कपड़ों में ही नहीं, बल्कि हर मामले में समानता चाहिए। मंत्रियों के कार्यालय भी एक जैसे नहीं हैं। सरकारी दफ्तरों को माफिक बनाकर राजकोष पर बोझ डाल ही दिया गया है। सभी मंत्रियों के कार्यालय, उनका फर्नीचर और व्यवस्था एक जैसी होने में इसमें कोई हर्ज नहीं है। मंत्रियों को सरकारी गाड़ियां मिलती हैं! लेकिन वहां भी कोई ‘कोड’ नहीं है। ऐसा नियम क्यों नहीं है कि सभी मंत्री सरकारी वाहनों का उपयोग करें? हर कोई अपनी कूवत के माफिक मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू, रेंज रोवर जैसी विदेशी महंगी कारों से मंत्रालय और विधानमंडल में आते हैं, गांवों-देहातों में जाते हैं और सरकारी कारों में मंत्रियों के चेले-चपाटे बैठकर सरकारी पैसे उड़ाते हैं इसलिए मंत्रियों द्वारा कारों के उपयोग के संबंध में ‘समान’ नियम होने चाहिए। इस बात का जिक्र इसलिए क्योंकि शिक्षकों के यूनिफॉर्म का मामला उठा है। यह सारी रईसी ठाट-बाट खुद की मेहनत से नहीं आई है तो अब इसका भौंडा प्रदर्शन कर लोगों की गरीबी का मजाक क्यों उड़ाएं? जो लोग शिक्षकों को यूनिफॉर्म देने की नीति लागू करना चाहते हैं उन्हें महाराष्ट्र की समग्र गिरावट पर ध्यान देना चाहिए। मंत्री जी के दिमाग से कब क्या निकलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। शिक्षा का ही नहीं बल्कि सब गड़बड़ चल रहा है। ‘ड्रेस कोड’ लागू करने से क्या फर्क पड़ेगा?

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