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संपादकीय : सरकारी अनुदान …वारकरियों को क्यों ‘लाचार’ बना रहे हो?

राज्य की वर्तमान सरकार का ‘डीएनए’ ही खोकों और लाचारी का है। ये खुद तो लाचार हैं ही, लेकिन सरकारी पैसों के दम पर राज्य के सामाजिक घटकों को भी ‘लाचार’ बनाने की कोशिश करते हैं। अब इस भ्रष्ट सरकार की दुष्ट नजर गरीब वारकरियों (तीर्थ यात्रियों) पर पड़ गई है। आषाढ़ी एकादशी के मौके पर पंढरपुर जानेवाले वारी (यात्रा) में सहभागी होने वाले प्रति दिंडी (जत्थे) को राज्य के मुख्यमंत्री ने २० हजार रुपए की ‘अनुदान’ देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री को अचानक वारकरियों को अनुदान देने की ये ‘हिचकी’ क्यों लगी? यह वारकरियों के प्रति प्रेम के कारण नहीं है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के कारण मुख्यमंत्री ने वारकरियों को यह अनुदान का लालच दिखाया है। यह अनुदान नहीं बल्कि वारकरियों को ‘खरीदने’ की चाल है। संत तुकाराम महाराज के वंशज, प्रशांत महाराज मोरे और वारकरियों ने इस तरीके का खुलकर विरोध किया है। वारकरियों ने तंज कसते हुए कहा है कि उन्हें ‘लाचार’ मुख्यमंत्री के अनुदान की जरूरत नहीं है। मूल रूप से वारी में शामिल होने वाले दिंडी और वारकरी, निरपेक्ष भक्ति का एक सुंदर रूप है। वारी के पथ पर उनकी मदद के लिए हजारों निरपेक्ष हाथ वर्षों से सामने आते हैं। वारकरियों की स्वयं की कमाई से लेकर रास्ते में विभिन्न स्थानों पर अन्नदान तक, यह पूर्ण समर्पित भक्ति का अनोखा समारोह हर साल होता है। पुरुष और महिला वारकरी यात्रा करते हैं और पंढरपुर में प्रत्यक्ष रूप से विठुराया (विट्ठल, विष्णु के अवतार) के दर्शन करने की अपनी इच्छा पूरी करते हैं। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी वैष्णवों का यह मेला दिंडी-पताका को नचाते हुए आषाढ़ी की यात्रा पूरी करते हैं। उनके इस निरपेक्ष भक्ति के समाधान में राज्य की लाचार सरकार को अनुदान के ‘नमक की डली’ डालने की क्या जरूरत थी? जब वारकरियों की कोई मांग नहीं है तो प्रत्येक दिंडी को २० हजार रुपए के सरकारी अनुदान देने की नौटंकी क्यों की जा रही है? वारकरियों को जो कुछ मांगना होगा वह अपने विठुराया से मांगेंगे। क्या उन्होंने आपसे कुछ मांगा है? एक सरकार के तौर पर देखिए कि वैâसे हजारों-लाखों वारकरियों को बेहतर सुविधाएं, साफ पीने का पानी, मोबाइल शौचालय, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल मिल सकता है। उन्हें किसी चीज की कमी न हो इस बात का ध्यान रखें। उनकी सुरक्षा पर ध्यान दें। उन्हें बीमा कवच दीजिए। लेकिन इसे अनदेखा कर, हर दिंडी को सरकारी अनुदान देने की घोषणा यानी लाचार सरकार की गरीब वारकरियों को अपने फंदे में बांधने की एक चाल है। बिना किसी की मदद लिए, वारी के रूप में ‘एकमेकां सहाय्य करू अवघे धरू सुपंथ’ एक दूसरे की मदद कर सुपंथ राह से वारी के रूप में भक्ति का प्रवाह राज्य के हर कोने से पंढरपुर की दिशा की ओर बढ़ता रहता है। इस पवित्र भक्ति प्रवाह को सरकारी अनुदान से दूषित करने का अधिकार आपको किसने दिया? वारकरी पूर्ण भक्ति के सर्वोच्च आदर्श ज्ञानोबा-तुकोबाराया (संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम) के उत्तराधिकारी हैं। वे भक्ति के भूखे हैं; आपकी सरकारी अनुदान के नहीं। लाचारी आपकी मजबूरी होगी, वारकरियों की नहीं। ‘खोके’ आपका ईमान होगा, वारकरियों का नहीं। वह स्वयंसिद्ध आध्यात्मिक परंपरा के सच्चे पुरोधा हैं। उन पर सरकारी अनुदान के प्रलोभन का लेशमात्र असर नहीं होगा। सरकारी अनुदान की गंदी राजनीति करने की बजाय वारकरियों के लिए आवश्यक सेवाओं और सुविधाओं को सशक्त बनाएं। वारी मार्ग की कठिनाइयों को दूर करने के लिए सरकारी खजाने से धन का उपयोग करें और देखें कि वारकरियों की आध्यात्मिक खुशी किस तरह दोगुनी हो सकती है। आप सत्ता के लिए ‘लाचार’ बन गए हैं, लेकिन जिन ईमानदार और निरपेक्ष वारकरियों की शक्ति केवल विट्ठल भक्ति है, उन्हें सरकारी अनुदान का गाजर दिखाकर आप ‘लाचार’ क्यों बना रहे हैं? राज्य के शासकों को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि आपने ईमान बेच दिया है, वारकरी भी अनुदान के लिए अपना आध्यात्मिक ईमान बेच देंगे। वारकारियों द्वारा लाचार शासकों की इस अघोरी चाल की धज्जियां उड़ाकर विफल करने के लिए हम समस्त वारकरी संप्रदाय का अभिनंदन करते हैं।

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