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संपादकीय : हिटलर जिंदा है!

विपक्षी नेता राहुल गांधी इस समय अमेरिका में हैं। गांधी ने बोस्टन में ब्राउन यूनिवर्सिटी में छात्रों से बातचीत की। छात्रों ने भारत में हो रही घटनाओं के बारे में सवाल पूछे और गांधी के भारत में तानाशाही, असंवैधानिक प्रक्रियाओं, महाराष्ट्र-हरियाणा चुनावों में घोटालों पर कठोर टिप्पणी करते ही भाजपा भक्तों के पेट में मरोड़ उठने लगी। भाजपा ने राग आलापा कि विदेशी धरती पर जाकर देश के मामलों की शिकायत करना उचित नहीं है, लेकिन विदेश में यह परंपरा नरेंद्र मोदी ने ही शुरू की। दूसरी बात यह कि जब किसी देश में स्वतंत्रता और लोकतंत्र को खतरा होता है तो लोकतांत्रिक और मानवतावादी नेता विदेश जाकर एक भूमिका लेते हैं और मदद भी मांगते हैं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजादी के लिए विदेशी ताकतों से मदद मांगी और इसके लिए वे जर्मनी गए और हिटलर से भी मिले। उन्हीं नेताजी की एक भव्य प्रतिमा मोदी ने दिल्ली के राजपथ पर लगाई है। राहुल गांधी अमेरिका में हैं और वहां की जनता सभी ५० राज्यों में सड़कों पर उतरकर ट्रंप की तानाशाही के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। न्यूयॉर्क-वॉशिंगटन समेत कई राज्यों में लोगों ने एकजुट होकर मोर्चे निकाले। ट्रंप की मनमानी और देश विरोधी नीतियों की निंदा की। प्रेसिडेंट ट्रंप लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए और अब ‘बादशाही’ तरीके से शासन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी ‘हमें ट्रंप की राजशाही अस्वीकार्य है।’ ‘ट्रंप चले जाओ जैसे नारे’ लगा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने ‘व्हाइट हाउस’ और अमेरिकी संसद को घेर लिया। प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व हीदर डन कर रहे हैं। बकौल हीदर ‘हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण है। हमारा इरादा किसी का अपमान करना या नुकसान पहुंचाना नहीं है। हम देश को एकजुट रखना चाहते हैं और संविधान की रक्षा करना चाहते हैं। इसका मतलब है कि ट्रंप मनमानी कर रहे हैं।’ वे लफ्फाजी कर लोगों को धोखा दे रहे हैं। ट्रंप खुद एक व्यापारी हैं और उन्हें
राजसी ढंग से जीने का
शौक है। वे राष्ट्रवाद, गरीबों के कल्याण पर भाषण देते हैं और उसके ठीक विपरीत कार्य करते हैं। यह ट्रंप की नीति है कि उनके खास दलाल और उद्योगपति मित्रों की मदद की जाए। ट्रंप प्रशासन के तानाशाही रवैये से देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए अमेरिकी जनता सड़कों पर उतर आई। प्रेसिडेंट ट्रंप दुनिया के चौधरी बनते हैं। अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को सलाह देते हैं, लेकिन असल में इस समय उनके अपने अमेरिका में नागरिक अराजकता मची है। जिस तरह भारत में जीएसटी, नोटबंदी जैसी नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था चरमरा गई उसी तरह ट्रंप की ‘टैरिफ’ नीति के चलते अमेरिकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। नतीजा यह हुआ कि शेयर बाजार धराशायी हो गया। बेरोजगारी बढ़ी। सरकारी नौकरियों में कटौती हुई। भारत की तरह अमेरिका में भी नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है और मानवाधिकारों को लेकर एक अस्पष्ट भ्रम है। प्रेसिडेंट ट्रंप और उद्योगपति मस्क ने मिलकर अमेरिका की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है। लोग मस्क से नाराज हैं और लोगों ने मस्क की ‘टेस्ला’ कारों के शोरूम को भी निशाना बनाया। प्रेसिडेंट ट्रंप अमेरिकी लोगों के बीच अलोकप्रिय हो गए हैं। जो अमेरिका में हो रहा, है वही भारत में हो रहा है। सत्ताधारी भाजपा सांसद खुलेआम सर्वोच्च न्यायपालिका पर हमला बोल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने की ये कोशिश निंदनीय है। पूर्व चुनाव आयुक्त का जिक्र, ‘आप मुसलमानों के आयुक्त बनते…’ के तौर पर करना चौंकानेवाला और बेशर्मी है। धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति देश को विघटन की ओर धकेल रही है। अमेरिका में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए लोग सड़कों पर उतरे हैं और इसका स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन भारत में तस्वीर क्या है? यहां होली, रामनवमी पर लोगों को मस्जिदों के सामने नाचने के लिए सड़कों पर लाया जाता है और उसके पीछे शासकों की प्रेरणा होती है। मोदी सरकार गरीबी कम करने का दावा करती है तो फिर ८० करोड़ लोगों को मुफ्त में ५-१० किलो अनाज और चुनाव के पहले महिलाओं के खाते में
हजार पांच सौ रुपए
क्यों जमा किए जाते हैं? इसका जवाब आज भाजपा प्रवक्ताओं के पास नहीं है। हिंदू-मुस्लिम को बांटकर रखना उनकी सरकार की नीति बन गई है। ट्रंप अमेरिका में उसी राह पर अलग तरीके से चल रहे हैं। ट्रंप के खिलाफ ५० राज्यों में विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं और भारत में कम से कम ५० करोड़ लोगों को धर्म की अफीम पिलाकर ‘गूंगा’ बनाया जा चुका है। ट्रंप जहां खुद को महासत्ताधीश मानते हैं, वहीं मोदी के भक्त मोदी के विश्वगुरु होने का डंका पीट रहे हैं। मोदी की शैली भी राजशाही है और हिटलरवादी रवैये से शासन चल रहा है। आश्चर्य की बात है कि मोदी की खिदमत में २० हजार करोड़ का शाही विमान है और वे खुद को फकीर मानते हैं। अमेरिका में प्रदर्शनकारियों का कहना है, ‘अमेरिका का कोई राजा नहीं है।’ भारत में उनके भक्त कहते रहते हैं कि मोदी भगवान के अवतार हैं इसलिए ईश्वर के अवतार के विरुद्ध आंदोलन करना देशद्रोह एवं राष्ट्रद्रोह है। प्रेसिडेंट ट्रंप के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे अमेरिकी प्रदर्शन्ाकारियों का कहना है, ‘हिटलरवाद और तानाशाही यहां नहीं चलेगी।’ कई युवा और बूढ़े हाथों में विरोध की तख्तियां लेकर ट्रंप विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए हैं। वे दादा-दादी दुनिया को चिल्ला-चिल्लाकर बता रहे हैं, ‘हम गहरे संकट में हैं और माता-पिता ने हिटलर के उदय के बारे में जो बातें कही हैं, वे डोनाल्ड ट्रंप से मेल खाती हैं। ट्रंप ने सत्ता बरकरार रखने के लिए अपने ही देश में फूट डाल दी है।’ भारत में इससे अलग और क्या हो रहा है? भारत में भी फूट डाल दी गई है। मोदी के शासन की तुलना हिटलर के प्रशासन से की जाती है। प्रेसिडेंट ट्रंप भी इस तरह काम कर रहे हैं मानो कि उनके शरीर में हिटलर संचार कर रहा है। अमेरिकी लोगों ने प्रेसिडेंट ट्रंप को हिटलर मान लिया है। प्रधानमंत्री मोदी प्रेसिडेंट ट्रंप के भक्त हैं। हिटलर विश्व विजेता बनना चाहता था। मोदी स्वयंभू विश्वगुरु के तौर पर घोषित किए जा चुके हैं। संक्षेप में, हिटलर जिंदा है!

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